धरती को बचाना सबसे बड़ा संकल्प

Last Updated 22 Apr 2015 01:05:50 AM IST

हनुमान चालीसा की एक चौपाई में सूरज और पृथ्वी के बीच की दूरी कुछ यूं समझाई गई है- ‘युग सहस्त्र योजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू.’


धरती को बचाना सबसे बड़ा संकल्प

एक युग यानी 12,000 वर्ष, एक सहस्त्र यानी 1000 तथा एक योजन का मतलब आठ मील. (एक मील, 1.6 किलोमीटर के बराबर होता है) इस प्रकार एक हजार युग योजन का मतलब हुआ- 12000 गुणा 1000 गुणा 8 गुणा यानी  153.60 करोड़ किलोमीटर. अर्थात पृथ्वी सूर्य से 153.60 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित ग्रह है. गोस्वामी तुलसीदास ने यह वैज्ञानिक आंकड़ा एक चैपाई के रूप में पेश किया और नासा ने भी सूर्य से पृथ्वी की लगभग यही दूरी मानी है. पृथ्वी में जीवन का प्रथम संचार, समुद्र में विराजमान मूंगा भित्ति यानी कोरल रीफ में हुआ. यह वैज्ञानिक सत्य है. भारतीय कालगणना के अनुसार, भारतीय नववर्ष का पहला दिन, सृष्टि रचना की शुरु आत का दिन है. आईआईटी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. बिशन किशोर कहते हैं कि यह एक तरह से पृथ्वी के जन्मदिन की तिथि है.

जाहिर है कि इन जानकारियों का 22 अप्रैल यानी पृथ्वी दिवस से कोई लेना-देना नहीं है और यह दिन पृथ्वी का जन्म दिवस भी नहीं है. दरअसल मौजूदा समय में जब पहली बार पृथ्वी दिवस का विचार सामने आया तो पृष्ठभूमि में विद्यार्थियों का एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन था, पृथ्वी का पर्यावरण नहीं. युद्ध के विरोध में उठ खड़े विद्यार्थियों का एक संघर्ष! 1969 में सांता बारबरा (कैलिफोर्निया) में बड़े पैमाने पर बिखरे तेल से आक्रोशित विद्यार्थियों को देखकर गेलॉर्ड नेल्सन के मन में ख्याल आया कि यदि इस आक्रोश को पर्यावरणीय सरोकारों की तरफ मोड़ दिया जाए तो कैसा होगा! नेल्सन, विसकोसिन से अमेरिकी सीनेटर थे.

उन्होंने इस मौके को पर्यावरण हेतु शिक्षित करने के रूप में लिया. अमेरिकी कांग्रेस के पीटर मेकेडलस्की ने उनके साथ कार्यक्रम की सह अध्यक्षता की. डेनिस हैयस को राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया. गेलॉर्ड नेल्सन की युक्ति का नतीजा यह रहा कि 22 अप्रैल, 1970 को अमेरिका की सड़कों, पार्कों, चौराहों, कॉलेजों, दफ्तरों पर स्वस्थ-सतत पर्यावरण को लेकर रैली, प्रदर्शन, प्रदर्शनी, यात्रा आदि आयोजित हुए. विश्वविद्यालयों में पर्यावरण संरक्षण को लेकर बहस चली. ताप विद्युत संयंत्र, प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयां, जहरीला कचरा, कीटनाशकों के अति प्रयोग तथा वन्य जीव व जैव विविधता सुनिश्चित करने वाली अनेकानेक प्रजातियों के खात्मे के खिलाफ एकमत हुए दो करोड़ अमेरिकियों की आवाज ने इस तारीख को पृथ्वी के अस्तित्व के लिए अहम बना दिया. तब से लेकर आज तक यह दिन दुनिया के तमाम देशों के लिए खास बना हुआ है.

दुनिया के करीब 184 देशों के हजारों अंतरराष्ट्रीय समूह आज इस दिवस का संदेश आगे ले जा रहे हैं.1970 के प्रथम पृथ्वी दिवस आयोजन के बाद संयुक्त राष्ट्र को लगा कि पर्यावरण सुरक्षा हेतु एक एजेंसी बनाई जाये. 1990 में इस दिवस को लेकर एक बार उपयोग में लाई जा चुकी वस्तु के पुनप्र्रयोग का ख्याल व्यवहार में उतारने का काम विश्वव्यापी संदेश का हिस्सा बना. 1992 में रियो डी जिनेरियो में हुए पृथ्वी सम्मेलन ने दुनिया की सरकारों और स्वयंसेवी जगत में नई चेतना व कार्यक्रमों को जन्म दिया. पृथ्वी दिवस के नामकरण में जुड़े संबोधन ‘अंतरराष्ट्रीय मां’ ने इस दिन को पर्यावरण की वैज्ञानिक चिंताओं से आगे ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भारतीय संस्कृति से आलोकित व प्रेरित होने का विषय बना दिया है.

पृथ्वी दिवस के सरोकार व्यापक हैं और दायित्व विविध. उपभोग और प्रकृति के नुकसान की दृष्टि से देखें तो यह दायित्व निश्चय ही विकसित देशों का ज्यादा है, किंतु मानव उत्पत्ति के मूल स्थान के लिहाज से यह दायित्व सबसे ज्यादा हिमालयी देशों का है. कारण, सृष्टि में मानव की उत्पत्ति हिमालय की गोद में बसे वर्तमान तिब्बत क्षेत्र में मानी जाती है. हमारे लिए यह अमल इसलिए जरूरी है, क्योंकि 40 वर्षो के छोटे से कैलेंडर में प्रकृति के खो गये 52 फीसद दोस्तों के रूप में भारत ने भी बहुत कुछ खोया है.

समुद्रों का तल 6 से 8 इंच बढ़ने की खबर का असर भारत के सुंदरबन से लेकर पश्चिमी घाटों तक नुमाया है. भारत में सर्वाधिक जैव विविधता वाले गंगाजल का अमरत्व यानी अक्षुण्णता नष्ट हुई है. नदियां, नाला बनी हैं. भूजल घटा है. तालाब सूखे कटोरे में तब्दील हुए हैं. प्रकृति से दूर होती जीवन शैली के कारण जीवन में अवसाद व तनाव बढ़े हैं. आज 80 फीसद बीमारियों की मूल वजह पानी का प्रदूषण, कमी या अधिकता बताया गया है. एक अध्ययन ने जल प्रदूषण व पानी की कमी को पांच वर्ष तक के बच्चों के लिए ‘नंबर वन किलर’ करार दिया है. पानी का संकट बढ़ेगा, तो जीवन पर संकट गहराएगा ही. खुद भारत ने जलदान को महादान बताने वाली जल संरक्षण संस्कृति का क्षरण किया है. इसे रोकने के लिए पृथ्वी दिवस का संदेश सुनना जरूरी है.

चाहें तो बच्चों को पृथ्वी की चुनौतियों व समाधान में उनकी भूमिका की चर्चा कर सकते हैं. उनकी नदी, बरगद, गोरैया से मित्रता करा सकते हैं. उन्हें बता सकते हैं कि यदि वे कॉपी के पन्ने बर्बाद न करें तो कैसे धरती को मदद मिलेगी. जिस चीज का ज्यादा अपव्यय करते हों, उसके त्याग या अनुशासित उपयोग का संकल्प जरूरी है. यदि बाजार से घर आकर कचरे के डिब्बे में जाने वाली पॉलीथीन की थैलियां घर आने से रोक दी जाएं तो निसंदेह एक परिवार अपनी जिंदगी में कई सौ किलो कचरा कम कर देगा. तय है हम जो बचायेंगे, उससे पृथ्वी का हित होगा. इससे धरती बचेगी और हम भी. विचार करना चाहिए कि कौन से कारण पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहे हैं. कौन से कार्य उसकी हवा, पानी, मिट्टी प्रदूषित कर रहे हैं? किन वजहों से धरती गर्म हो रही है? वनस्पतियां, पृथ्वी माता के फेफड़े और नदियां धमनियां हैं. इनके निर्बाध संचालन में कौन क्यों और कैसे रु कावट डाल रहा है? सोचें कि प्रकृति के बनाये ढांचों को नष्ट किए बगैर, इंसान अपने लिए जरूरी ढांचे कैसे बना सकता है? पृथ्वी दिवस पर एक पौधा लगा उसकी सेवा का संकल्प इसमें मददगार हो सकता है.

पृथ्वी एक गोला मात्र नहीं है. हमारे दर्शन के मुताबिक यह पंचतत्वों से निर्मिंत जीवंत प्रणालियों का अनोखा रचना संसार है. रचना और विनाश, इसे हमेशा नूतन और सक्रिय बनाये रखते हैं. इसमें अमीबा और चींटी से लेकर विशालकाय हाथी और हिंसक जीवों की अपनी-अपनी महत्ता है. भूमिका पहाड़, पठार, रेगिस्तान, तालाब, झील, समंदर और नमी से लेकर उस पत्थर की भी है, जो नदी के बीच खड़ा उसके प्रवाह को चुनौती देता प्रतीत होता है. जब-जब इस भूमिका का निर्वाह करने में चूक होती है, पृथ्वी हम चेताती है. यदि हम धरती की चुनौतियों और इनके समाधान में प्रत्येक की भूमिका समझने का थोड़ा भी प्रयास करें तो हमें अपनी भूमिका स्वयंमेव समझ आ जायेगी. इसे समझे और समझाएं.

अरुण तिवारी
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment