घाटे से उबरती एयर इंडिया

Last Updated 02 Apr 2015 01:06:23 AM IST

इस बीच कहा जाने लगा था कि एयर इंडिया के कायाकल्प का एकमात्र विकल्प निजीकरण है, लेकिन यह धारणा गलत सिद्ध होती दिख रही है.




घाटे से उबरती एयर इंडिया

वित्त वषर्-2014-15 की तीसरी तिमाही में एयर इंडिया ने 14.6 करोड़ रुपये का लाभ दर्ज किया है, जबकि उससे पहले साल की समान अवधि में इसे 168.7 करोड़ का नुकसान हुआ था. बीते वित्त वर्ष की दिसम्बर तिमाही में इसका परिचालन लाभ 183 करोड़ था, जबकि उससे पूर्व के वर्ष इसे महज 2 करोड़ का परिचालन लाभ हुआ था. एयर इंडिया का लाभ में आना हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में कमी और राजस्व में बढ़ोतरी माना जा रहा है लेकिन योजनाबद्ध रणनीति भी इसका बड़ा कारण है.  एयर इंडिया के ऑन-टाइम प्रदर्शन में सुधार हुआ है.

फरवरी में चार महानगरों में इसकी 70 प्रतिशत उड़ानों की आवाजाही समय पर हुई है. नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) के अनुसार फरवरी में एयरलाइन का ऑन टाइम प्रदर्शन 52.1 फीसद था.  हैदराबाद हवाई अड्डे पर 81.3 प्रतिशत विमानों की उड़ान या लैंडिंग समय पर हुई. बेंगलूरु , दिल्ली, मुंबई हवाई अड्डों पर यह प्रतिशत क्रमश: 72.2, 71 एवं 67.3 रहा है. ऑन-टाइम प्रदर्शन में सुधार के लिए नागर विमानन मंत्रालय एयर इंडिया पर लगातार निगाह रखे है. कर्मचारियों को प्रशिक्षित व जागरूक करने के साथ उड़ानों में देरी के लिए जिम्मेदार कर्मचारियों का वेतन में काटा जा जा रहा है.

पूर्व नागर विमानन मंत्री अजित सिंह चाहते थे कि एयर इंडिया का निजीकरण हो, क्योंकि इसके कायाकल्प के लिए 2020-21 तक 30000 करोड़ के पूंजी निवेश की बात कही गई थी. एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय के वक्त यह 100 करोड़ रु पये के लाभ में थी लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण बाद में घाटे में आती गयी. अदालत में दायर एक जनहित याचिका के मुताबिक पूर्व नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल (2004-2008) में विदेशी विनिर्माताओं को फायदा पहुंचाने के लिए 67000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गए. करोड़ों-अरबों खर्च करके विमानों को पट्टे पर लिया गया एवं निजी विमानन कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए फायदे वाले हवाई मार्गों पर एयर इंडिया की उड़ानें जानबूझकर बंद की गई. नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी इन अनियमितताओं की पुष्टि की है.

बहरहाल, नेतृत्व एवं संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से अब एयर इंडिया लाभ में है. बीते महीनों में पुनर्वास के लिए उसने बाजार में यात्रियों की संख्या बढ़ाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया, जिससे इसकी बाजार हिस्सेदारी 18.2 से बढ़कर 20.60 प्रतिशत हो गई है, जबकि इंडिगो की बाजार हिस्सेदारी 27.6 से घटकर 27.00 प्रतिशत हो गई है. फिलहाल, जेट एयरवेज की 18.9, उसकी सहयोगी कंपनी जेटलाइट की 6.7 और स्पाइसजेट की 19.20 प्रतिशत बाजार हिस्सेदारी है.

‘के 787 ड्रीमलाइनर’ को सितम्बर, 2012 में एयर इंडिया के बेड़े में शामिल किया गया था. 256 सीटों वाला ड्रीमलाइनर दस से तेरह घंटे बिना किसी बाधा के उड़ान भर सकता है. सीटों की डिजाइनिंग व ईधन क्षमता के मामले में यह बोइंग 777-200 एलआर से बेहतर है. एयर इंडिया ड्रीमलाइनर की बेहतर क्षमता का उपयोग करके एयर इंडिया ज्यादा लाभ कमा सकता है. बड़े विमानों में एयर इंडिया के पास 777-200 एलआर (8), 777-300 ईआर (12) और बी 747-400 (3) है. छोटे विमानों में ए 320 (12), ए 319 (19) एवं ए 321 (20) हैं. इसके अतिरिक्त इसने 19 छोटे व बड़े विमान लीज पर लिये हैं. इनमें बैठने की क्षमता 122 से 423 सीटों की है. 

विमानों के सुनियोजित परिचालन से राजस्व और बढ़ाया जा सकता है. जिस मार्ग पर यात्रियों का आवागमन अधिक है, वहां एक से अधिक विमानों का उपयोग किया जाये. वैसे विमानों का ज्यादा उपयोग किया जाये, जिनमें कम ईधन की खपत हो. अब तक लंबी दूरी वाले विमानों का उपयोग मध्यम तथा छोटी दूरी वाले मार्गों में उड़ान भरने के लिए किया जाता रहा है. बोइंग 777-200 एलआर लंबी दूरी तय करने वाला विमान है. यह लगातार पंद्रह-सोलह घंटे उड़ान भर सकता है, लेकिन इनका इस्तेमाल नौ से दस घंटे की दूरी तक के लिए भी किया जा रहा है. विमान के गलत इस्तेमाल से ईधन की ज्यादा खपत होती है. फ्रैंकफर्ट, पेरिस, हांगकांग, शंघाई जैसे शहरों, जहां पहुंचने में दस घंटे का समय लगता है, की उड़ान में अगर ड्रीमलाइनर का प्रयोग हो तो यात्रा की लागत प्रति किलोमीटर 25 प्रतिशत तक कम हो सकती है. 

वर्तमान में करीब 550-600 यात्री प्रतिदन दिल्ली से सिडनी व मेलबर्न की यात्रा करते हैं. इस मार्ग पर भारत से कोई सीधी उड़ान नहीं है इसलिए, गंतव्य तक पहुंचने में यात्रियों को पच्चीस से पैंतीस घंटे का समय लगता है. चीन व दक्षिण अफ्रीका के साथ विगत वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार बढ़ा है. दोनों देशों के बीच यात्रियों की आवाजाही बढ़ी है. इनके लिए एयर इंडिया अपनी सेवा शुरू कर सकता है. यूरोपीय देशों में एयर इंडिया की उपस्थिति नगण्य है. इसका दायरा फिलवक्त फ्रैंकफर्ट, पेरिस व लंदन तक सीमित है.

ड्रीमलाइनर की बदौलत एयर इंडिया अपना दायरा ब्रुसेल्स, मिलान, रोम तथा बार्सीलोना तक बढ़ा सकता है. दिसम्बर तिमाही में लाभ में आने के बावजूद एयर इंडिया में अभी और सुधार की जरूरत है. विमानन कंपनियों की आय का जरिया यात्री किराया है एवं व्यय के मद हैं- ईधन, रख-रखाव और मानव संसाधन. यात्रियों को लुभाने के लिए विज्ञापन का सहारा लिया जा सकता है. यात्री किराये में कमी अच्छा विकल्प है. त्योहारों में या रूट के हिसाब से या पीक सीजन के अनुसार बेसिक किराये में कमी कर या सौगात देने वाली योजनाओं के माध्यम से यात्रियों को लुभाया जा सकता है.

कम किराये की भरपाई विमानों के अधिक फेरे लगाकर हो सकती है. प्रतिबद्ध तथा गुणवत्ता पूर्ण सेवा द्वारा भी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. मानव संसाधन के स्तर पर असंतुलन होने के कारण पायलट आए दिन हड़ताल करते हैं. उनके रोष का प्रमुख कारण है- इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के बीच हुए विलय के उपरांत, उनके वेतन, भत्ते एवं प्रोन्नति से जुड़ी समस्याओं का समाधान नहीं किया जाना.  द्विपक्षीय वार्ता एवं खुले दृष्टिकोण से इस समस्या से निजात पायी जा सकती है.

इस पड़ताल से स्पष्ट है कि एयर इंडिया की बदहाली के लिए मूल रूप से नेता और नौकरशाह जिम्मेदार रहे हैं. लेकिन अब धीरे-धीरे वह बदहाली के दौर से निकल रहा है. उसने साबित किया है कि योजनबद्ध तरीके से काम करके असंभव को भी संभव किया जा सकता है.

सतीश सिंह
लेखक


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