देशी जीपीएस की तरफ बढ़ते कदम

Last Updated 01 Apr 2015 02:22:36 AM IST

अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए इसरो ने भारत के चौथे नेवीगेशन सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1डी का पीएसएलवी-सी27 के जरिए सफल प्रक्षेपण कर दिया.


देशी जीपीएस की तरफ बढ़ते कदम

यह नौवहन प्रणाली के तहत छोड़े जाने वाले कुल सात उपग्रहों में से एक है. इसे सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने के साथ ही भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है जिनके पास इस तरह की प्रणाली है. इस तरह अमेरिका के जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की तरह भारत ने खुद का नेवीगेशन सिस्टम स्थापित करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है. यह अभियान देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई दिशा प्रदान कर रहा है. इस प्रक्षेपण से देश इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) शुरू करने के लिए तैयार है क्योंकि भारत ने सात उपग्रहों के समूह में से चार उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया है.  इस परियोजना के निदेशक ने कहा, ‘यह मिशन इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि हम नेविगेशनल प्रक्रिया शुरू करने के लिए कक्षा में चार उपग्रह की न्यूनतम जरूरत पूरा कर रहे हैं.

पीएसएलवी सी27 ने कुल 1425 किग्रावजन वाले नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1डी को उसकी निर्दिष्ट कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया.

यह उपग्रह नेविगेशनल, ट्रैकिंग और मानचितण्रसेवा मुहैया कराएगा और इसका जीवन 10 वर्षो का होगा. एक बार सभी उपग्रह प्रक्षेपित होने के बाद आईआरएनएसएस अमेरिकी जीपीएस नेवीगेशनल प्रणाली के समकक्ष होगा. चार उपग्रह आईआरएनएसएस का काम शुरू करने के लिए पर्याप्त होंगे, बाकी तीन उपग्रह उसे और सटीक एवं कुशल बनाएंगे.  

आईआरएनएसएस प्रणाली को इस वर्ष तक पूरा करने की योजना बनाई गई है जिस पर कुल 1420 करोड़ रुपए का खर्च आएगा. यह दक्षिण एशिया पर लक्षित होगा और इसे देश के साथ ही उसकी सीमा से 1500 किमी तक के उपयोगकर्ताओं को सटीक स्थिति की सूचना मुहैया कराने के लिए डिजाइन किया गया है.  इसके जरिये स्थलीय और समुदी नेविगेशन, आपदा प्रबंधन, वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन, पर्वतारोहियों और यात्रियों के लिए दिशासूचक सहायता तथा गोताखोरों के लिए दृश्य एवं आवाज नेविगेशन सुविधा मुहैया कराई जाएगी. 

आईआरएनएसएस प्रणाली दो तरह की सेवाएं मुहैया कराएगी जिसमें एक मानक पोजीशनिंग सेवा जो सभी उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध होगी, तथा सीमित सेवा जो कूट सेवा होगी एवं केवल अधिकृत उपयोगकर्ताओं को ही मुहैया होगी. इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) इसरो की एक महत्वाकांक्षी योजना है. इसके तहत सात उपग्रहों को स्थापित किया जाना है. इसरो ने आईआरएनएसएस का विकास इस तरह किया है कि यह अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के समकक्ष खड़ा हो सके. यह अमेरिका के जीपीएस के अलावा रूस के ग्लोनास, यूरोप के गैलिलियो, चीन के बीदयू सेटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम और जापान के क्वासी जेनिथ सेटेलाइट सिस्टम की तरह ही है.

जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम)  एक उपग्रह प्रणाली पर काम करता है. जीपीएस सीधे सेटेलाइट से कनेक्ट होता है और उपग्रहों द्वारा भेजे गए संदेशों पर काम करता है. जीपीएस डिवाइस उपग्रह से प्राप्त सिगनल द्वारा उस जगह को मैप में दर्शाता रहता है. वर्तमान में जीपीएस तीन प्रमुख क्षेत्रों से मिलकर बना हुआ है- स्पेस सेगमेंट, कंट्रोल सेगमेंट और यूजर सेगमेंट. जीपीएस रिसीवर अपनी स्थिति का आकलन पृथ्वी से ऊपर रखे गए जीपीएस सैटेलाइट द्वारा भेजे जाने वाले सिगनलों के आधार पर करता है. प्रत्येक सेटेलाइट लगातार मैसेज ट्रांसमिट करता रहता है. रिसीवर प्रत्येक मैसेज का ट्रांजिट समय नोट करता है और प्रत्येक सैटेलाइट से दूरी की गणना करता है.

ऐसा माना जाता है कि रिसीवर बेहतर गणना के लिए चार सैटेलाइट का इस्तेमाल करता है. इससे यूजर की थ्रीडी स्थिति (अक्षांश, देशांतर रेखा और उन्नतांश) के बारे में पता चल जाता है. एक बार जीपीएस की स्थिति का पता चलने के बाद जीपीएस यूनिट दूसरी जानकारियां जैसे कि स्पीड, ट्रैक, ट्रिप, दूरी, जगह से दूरी, सूर्य के उगने और डूबने के समय के बारे में जानकारी एकत्र कर लेता है.

आईआरएनएसएस के तहत भारत अपने भौगोलिक दायरे तथा अपने आसपास के कुछ क्षेत्रों तक नेविगेशन की सुविधा रख पाएगा. इसके तहत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा कुल सात नेविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए जाने है, जो 36000 किमी की दूरी पर पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएंगे. यह भारत तथा इसके आसपास के 1500 किमी के दायरे में चक्कर लगाएंगे. जरूरत पड़ने पर उपग्रहों की संख्या बढ़ाकर नेविगेशन क्षेत्र में और विस्तार किया जा सकता है.

आईआरएनएसएस दो माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी बैंड एल-5 और एस पर सिगनल देते हैं. यह स्टैंर्डड पोजिशनिंग सर्विस तथा रिस्ट्रिक्टेड सर्विस की सुविधा प्रदान करेगा. इसकी स्टैंर्डड पोजिशनिंग सर्विस सुविधा जहां भारत में किसी भी क्षेत्र में, किसी भी आदमी की स्थिति बताएगी, वहीं रिस्ट्रिक्टेड सर्विस सेना तथा महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के लिए सुविधाएं प्रदान करेगी.

भारतीय आईआरएनएसएस अमेरिकन नेविगेशन सिस्टम ‘जीपीएस’ से बेहतर है. मात्र सात सैटेलाइट के जरिए यह अभी 20 मीटर के रेंज में नेविगेशन की सुविधा दे सकता है, जबकि उम्मीद की जा रही है कि यह इससे भी बेहतर 15 मीटर रेंज में भी यह सुविधा देगा. जीपीएस की इस कार्यक्षमता के लिए 24 सैटेलाइट काम करते हैं, जबकि आईआरएनएसएस के लिए मात्र सात सैटेलाइट जरूरी हैं. लेकिन यहां यह ध्यान रखना जरूरी है कि जीपीएस की रेंज विश्वव्यापी है जबकि आईआरएनएसएस की रेंज भारत और एशिया तक ही सीमित है. सुरक्षा एजेंसियों और सेना की जरूरतों की दृष्टि से भी आईआरएनएसएस काफी बेहतर है.

यह प्रणाली देश तथा देश की सीमा से 1500 किमी की दूरी तक के हिस्से में उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देगी. यह इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र भी है. नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस के अनुप्रयोगों में नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना, समय का बिल्कुल सही पता लगाना, चालकों के लिए दृश्य और ध्वनि के जरिए नौवहन की जानकारी, मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों व लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि शामिल हैं.

आईआरएनएसएस के सात उपग्रहों की यह श्रृंखला स्पेस सेगमेंट और ग्राउंड सेगमेंट, दोनों के लिए है. सातों उपग्रह इस साल के अंत तक कक्षा में स्थापित कर दिए जाएंगे और तब आईआरएनएसएस प्रणाली शुरू हो जाएगी.

आईआरएनएसएस-1डी का सफल प्रक्षेपण एक बड़ी कामयाबी है जिससे भारत अपना खुद का नेवीगेशन सिस्टम बनाने की दिशा में सफलतापूर्वक बढ़ रहा है. यह देश के लिए गर्व का विषय है क्योंकि ऐसी प्रणाली विश्व के चुनिंदा देशों के पास ही है.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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