सियासी धोखाधड़ी है सेकुलरिज्म

Last Updated 01 Feb 2015 02:07:39 AM IST

‘सेकुलर’ पर फिर से बहस है. शब्दकोष में सेकुलर का अर्थ भौतिक या प्रत्यक्ष है.


सियासी धोखाधड़ी है सेकुलरिज्म

संविधान की उद्देशिका में सेकुलर है. इसका अधिकृत अनुवाद ‘पंथनिरपेक्ष’ है. आस्था के प्रश्न सेकुलर परिधि में नहीं आते. भारत पंथनिरपेक्ष राष्ट्र-राज्य है. राजकोष संग्रह या कराधान में भी आस्था नहीं देखी जाती. किसी विशेष सम्प्रदाय पर राजकोष व्यय करना पंथनिरपेक्षता नहीं है. लेकिन भारत में हजयात्रा पर सबसिडी है. प. बंगाल ने इमामों व मुअज्जिनों के लिए मानदेय व उत्तर प्रदेश ने योजनाओं में मुस्लिम समुदाय के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण के प्रस्ताव किए थे. भारतीय राजनीति में पंथनिरपेक्ष शब्द की जगह धर्मनिरपेक्ष जैसा गलत प्रयोग जारी है. पंथनिरपेक्षता जीवनमूल्य है और धर्म निरपेक्षता मूल्यविहीनता. धर्म निरपेक्षता साम्प्रदायिक पाखण्ड है.

सेकुलरवाद यूरोप से आया है. चर्च राज्यव्यवस्था पर नियंत्रण कर रहे थे. रोमन राज्यों और चर्च में लम्बा टकराव चला. ब्रिटिश राजा हेनरी चतुर्थ ने चर्च नियंत्रण के विरुद्ध मोर्चा खोला. पोप के सामने उसकी नहीं चली. चर्च और राज्यव्यवस्था के अधिकारों पर बहस चली. इटली के दांते जैसे विद्वान पोपवाद के विरोध में आए. बाद में ब्रिटेन के राजा हेनरी अष्टम ने भी विरोध किया. राज-समाज को ईरीय देन के बजाय ‘सामाजिक अनुबंध’ बताने वाले हॉब्स, लॉक आदि के विचारों ने धमाका किया. सितम्बर 1870 में पोप के रोम पर इटली का अधिकार हो गया. पोप बनाम स्वतंत्र राज्य इटली को लेकर मतदान हुआ. पोपवाद हार गया. इटली की संसद ने ला आफॅ पेपर गारंटी पारित किया.

पोप को उनका निवास और पड़ोसी क्षेत्र वेटिकिन देकर सर्वोच्च शासक बनाया गया. शेष रोम पोप और चर्च के नियंत्रण से अलग हो गया. फ्रांस ने भी सेकुलर-भौतिक विषयों पर राजव्यवस्था के ही अधिकार पर कानून बनाया. सिद्धांत बना कि राजा का  भाग राजा को मिले और ईर का ईर को. राजा को भौतिक समृद्धि और दंड व्यवस्था का अधिकार मिला. यह भाग सेकुलर था. ईर आस्था चर्च के जिम्मे आई. राजकाज में पोप, पादरी, मौलवी या अंध आस्था से मुक्ति ही सेकुलरवाद है. पंथ मजहब से मुक्त राज्य संचालन पंथनिरपेक्षता है.

भारतीय लोकजीवन में सभी आस्थाओं के प्रति श्रद्धाभाव रहा है. अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त (12.1.45) में प्रार्थना है-हे माता! आप विभिन्न भाषा भाषी विभिन्न आस्थाओं वाले लोगों को एक परिवार की तरह आश्रय व ऐर्य दें. यही भारतीय पंथनिरपेक्षता और सर्वपंथ समभाव है. भारत में आस्था और राजव्यवस्था का कभी कोई टकराव नहीं हुआ. यहां चर्च की तरह कोई संगठित पंथिक संस्था नहीं थी. राजव्यवस्थाएं लोकहित में काम करती थीं. यजुव्रेद में राज्याभिषेक के मनभावन मंत्र हैं-‘हे राजा! हम सब आपको कृषि समृद्धि के लिए धन सम्पदा के वृद्धि-संरक्षण के लिए अभिसिक्त करते हैं.’

कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ परिशुद्ध पंथनिरपेक्ष कृति है और वात्स्यायन का ‘कामसूत्र’ भी. दोनों ग्रंथ यहां आस्थाहीन आचार शास्त्र है. अर्थ धन प्राप्ति का उद्यम है और काम सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति का क्षेत्र. कुछ लोग अध्यात्म को संसारी या भौतिक नहीं मानते. पर वास्तविकता ऐसी नहीं है. भारतीय चिंतन में संसार को समझने का कौशल भौतिकवाद है और अध्यात्म स्वयं का ज्ञान. अथर्ववेद से लेकर संपूर्ण उपनिषद् साहित्य में अध्यात्म को स्वयं के भीतर का अध्ययन ही बताया गया है. गीता में कृष्ण ने बताया स्वभाव ही अध्यात्म है-स्वभावों अध्यात्म उच्यते.

भारतीय धर्म आस्था या अंधविश्वास नहीं है. बेशक कतिपय कर्मकांड अंधविश्वासी कहे जा सकते हैं लेकिन वैदिक दर्शन में सारे अंधविश्वासों का खंडन है. धर्म गुण-कर्म का पर्यायवाची है, आस्था का नहीं. इस तरह, धर्म निरपेक्ष का अर्थ कर्महीन या कर्मनिरपेक्ष हुआ. राजनैतिक धर्मनिरपेक्षता सरासर धोखाधड़ी है. पंथनिरपेक्षता भारत का स्वभाव है. आस्था पंथ से निरपेक्ष दृष्टिकोण ही पंथनिरपेक्षता है. पंथ, मजहब और क्षेत्र आदि के आधार पर विभेद न करना संविधान में मौलिक अधिकार है. सभी नागरिकों के अधिकार एक समान हैं.

हृदयनारायण दीक्षित
लेखक


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