राजपथ पर नारी शक्ति का बुलंद परचम

Last Updated 28 Jan 2015 01:55:27 AM IST

बदलते भारत और इस बदलाव में महिलाओं की भूमिका की झलक 66वें गणतंत्र दिवस पर बखूबी दिखी.


राजपथ पर नारी शक्ति का बुलंद परचम

राजपथ पर गणतंत्र के मौके आयोजित परेड की थीम नारी शक्ति थी. इसीलिए परेड की शुरुआत महिला मार्चिंग दस्ते के नेतृत्व में हुई. पहली बार थलसेना, नौसेना और वायुसेना के महिला सैन्यदल गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुए. नारी शक्ति के बढ़ते कदमों पर मुख्य अतिथि बराक ओबामा ने भी भारतीय महिलाओं की कामयाबी व भागीदारी की बात की. उन्होंने कहा कि देश तभी शानदार कामयाबी हासिल कर पाते हैं जब वहां की महिलाएं कामयाब होती है. महिलाएं काम करती हैं तो परिवार तरक्की करता है. ओबामा के अनुसार भारतीय परिवारों में मां की भूमिका अहम होती है.

सेना में महिलाओं की भागीदारी को देखते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सेना में महिलाओं को देखना गर्व की बात है. विशेष रूप से एक महिला सैन्य अधिकारी द्वारा मेरे भारत पहुंचने पर गार्ड ऑफ ऑनर का नेतृत्व किया जाना. दुनिया सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति के विचार यकीनन हमारे देश में महिलाओं की हर क्षेत्र में बढ़ती भागीदारी को रेखांकित करते हैं. अमेरिकी एनएससी ने भी ट्वीट कर नारी शक्ति पर आधारित परेड की बहुत तारीफ की. गौरतलब है कि मंगल मिशन की कामयाबी के बाद भारतीय महिला वैज्ञानिक भी दुनिया में खूब प्रशंसा पा चुकी हैं. हालांकि सैन्य बल और अंतरिक्ष- दोनों क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति बाकी क्षेत्रों की तुलना में अब भी कम है लेकिन देश की आधी आबादी सफलता की नई इबारत कुशलता से लिख रही है.

भारतीय महिलाएं आज हर क्षेत्र में प्रभावपूर्ण उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. वे हर बाधा को पार करते हुए आगे बढ़ रही हैं. निजी क्षेत्र की कंपनियों में कुल वर्कफोर्स की 24. 5 फीसद भागीदारी महिलाओं की है. सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनियों में महिलाओं की यह हिस्सेदारी तकरीबन 17. 9  प्रतिशत है. किसी समय पुरुषों के एकाधिकार वाले कई क्षेत्रों में अब महिलाएं भी खासा दखल रखती हैं. घर से लेकर दफ्तर तक उनका अतुलनीय योगदान है. महिलाएं भारतीय कार्यबल का अभिन्न अंग हैं.

देश की प्रत्यक्ष श्रमशक्ति में 40 तथा अप्रत्यक्ष श्रमशक्ति में 90 फीसद योगदान महिलाओं का है. जनसंख्या में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है और वह विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. एक अनुमान के मुताबिक 2025 तक भारत दुनिया को 13 करोड़ कर्मचारी प्रदान कर सकेगा. इस श्रमशक्ति का बड़ा हिस्सा महिलाएं भी होंगी विशेषकर युवा महिलाएं जो शिक्षा, बैंकिंग, आईटी यहां तक कि सैन्य बलों में भी अपना स्थान बना चुकी हैं. इसके अलावा भारत जैसे कृषि प्रधान देश में महिला श्रम शक्ति की बड़ी भूमिका खेती बाड़ी में भी है.

भारत में 48 फीसद महिलाएं स्वरोजगार किसान हैं और डेयरी उद्योग में 75 लाख महिलाएं काम कर रही हैं. अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित अनुसंधान इसकी पुष्टि करते हैं कि भोजन के उत्पादन में केंद्रीय भूमिका महिलाओं की है. 2001 में जहां ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रम की भागीदारी दर 30.79 प्रतिशत थी वहीं शहरी क्षेत्रों में 11.88 प्रतिशत. प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करना, उनसे आय अर्जित करना और घरेलू खाद्य और पोषण सुरक्षा की देख रेख में महिलाओं की भूमिका अग्रणी है. बीते एक दशक में देश के कार्यबल में महिलाओं की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं मुख्य रूप से कृषि कार्यों में शामिल होती हैं जबकि शहरी क्षेत्रों में, लगभग 80 फीसद महिला श्रमिक संगठित क्षेत्रों में काम करती हैं.

महिलाओं के मजबूत इरादों से साल दर साल उनकी उपलब्धियां बढ़ रही हैं. हालांकि हमारे सामाजिक पारिवारिक ढांचे में महिलाओं को उनके हिस्से आये दायित्वों के निर्वहन में कोई छूट नहीं मिली है. आज भी भारतीय महिलाओं के समक्ष अनिगनत चुनौतियां हैं पर यह उनकी काबिलियत और हिम्मत ही है कि वे हर बाधा को पार करने का माद्दा रखती हैं. दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए भी देश की अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी साल दर साल बढ़ ही रही है.

एक समय था जब घर परिवार की जिम्मेदारी आते ही उनका करियर दोयम  दज्रे पर आ जाता पर अब एक पत्नी और मां की भूमिका निभाते हुए वे प्रोफेशनल फ्रंट पर भी पूरी तरह सफल हैं. कुछ समय पहले ‘यूएस नेशनल स्टडी ऑफ चेंजिंग वर्कफोर्स’ रिपोर्ट में ‘फेमेली एंड वर्क इंस्टीट्यूट’ द्वारा करवाये गए एक सर्वे के मुताबिक तरक्की को लेकर बच्चों की जिम्मेदारी संभालने वाली महिलाओं की इच्छा में कोई परिवर्तन नही आता है. 1992 में ‘नेशनल स्टडी ऑफ चेंजिंग वर्कफोर्स’ के पहले सर्वे में सामने आया कि करीब 70 प्रतिशत मां करियर में पदोन्नति चाहती थीं.

महिला श्रमशक्ति की योग्यता व क्षमता को मौजूदा दौर के मैनेजर्स खुलकर स्वीकारने लगे हैं. यही वजह है कि वे ऐसी नीतियां बना रहे हैं जो मां बनने के बाद ब्रेक लेने वाली महिला कर्मचारियों को प्रोफेशनल फ्रंट पर वापसी की राह आसान बनायें. जहां एक ओर आर्थिक विशेषज्ञ मानते हैं कि आज हर फ्रंट पर वुमन वर्कफोर्स की न केवल दरकार है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को संबल देने में भी उनकी प्रभावी भूमिका हो सकती है वहीं बिहेवियर एक्सपर्टस का कहना है कि अर्थव्यवस्था में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का कारण उनमें मौजूद प्रतिबद्धता व दूरदर्शिता का भाव है. इसीलिए अर्थव्यवस्था में वुमन वर्कफोर्स की प्रभावी भागीदारी का महत्व समझते हुए कई छोटी बड़ी कई कंपनियां कामकाजी माओं को दूसरी पारी  की शुरुआत करने में मदद करती हैं. कई कंपनियां कार्यस्थल पर बच्चों की देखभाल व सुरक्षित यातायात की सुविधा भी मुहैया करा रही हैं.

देश के सर्वागीण विकास के लिए श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ना जरूरी है. उन्हें हर क्षेत्र में सुरक्षा और सम्मान के साथ काम करने का अवसर मिलें. एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में शिक्षा के प्रसार के बावजूद शिक्षित युवाओं को उनकी योग्यता के अनुरूप रोजगार नहीं मिल पाता. ऐसे में काबिल होने बावजूद घर बैठ जाने वालों में महिलाओं का प्रतिशत सबसे ज्यादा होता है इसीलिए जरूरी है कि सरकार ऐसा विकास मॉडल अपनाए जो अधिक से अधिक महिलाओं को उनकी योग्यता के अनुरूप रोजगार मुहैया करवाये, उन्हें आत्मनिर्भर व सशक्त बनने में मददगार साबित हो. स्त्रियों का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना उनके सशक्तिकरण का पहला कदम है.

मोनिका शर्मा
लेखक


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