बच्चों की गुमशुदगी से कैसे मिले निजात

Last Updated 27 Jan 2015 12:14:33 AM IST

गुमशुदा बच्चों की समस्या कम करने के लिए जो सार्थक प्रयास शासन-प्रशासन की ओर से होने चाहिए थे, वह नहीं हुए हैं.


बच्चों की गुमशुदगी से कैसे मिले निजात

यही कारण है कि यह समस्या दिन-ब-दिन गंभीर रूप लेती जा रही है. महत्वपूर्ण अदालती निर्देशों से यह संभावना जरूर उत्पन्न हुई है कि अब इस गंभीर समस्या की पहले जैसे उपेक्षा नहीं होगी. इस अवसर का लाभ उठाकर गुमशुदा बच्चों को अधिक से अधिक राहत पंहुचानी चाहिए और साथ में बच्चों के खो जाने की संभावना को कम करने के लिए भी असरदार कदम उठाने चाहिए. न्यायालयों विशेषकर सुप्रीम कोर्ट के साथ कुछ सामाजिक संगठनों और संवेदनशील अधिकारियों ने भी इस क्षेत्र में जो अच्छी पहल की है, उसे जारी रखना और कई स्तरों पर आगे बढ़ाना जरूरी है.

मेले में खोए हुए बच्चे पर लिखी मुल्कराज आनन्द की विख्यात कहानी ‘द लौस्ट चाइल्ड’ में बच्चे को मिठाई, खिलौने देकर हर तरह से बहलाने का प्रयास किया जाता है, पर बच्चा हर प्रस्ताव को नकार कर केवल एक ही मांग करता है कि मुझे तो बस मेरे माता-पिता के पास पहुंचना है.

वास्तव में माता-पिता या अपने परिजन से बिछुड़े बच्चों को उनके परिवार से  मिला देना दिल की गहराई तक संतोष देने वाला ऐसा अनुभव है जो महज प्रशासनिक कार्यवाही से कहीं ऊपर है. इस भावना के साथ संबंधित अधिकारियों को इस जिम्मेदारी को निभाना चाहिए व इसी भावना के साथ जागरूक नागरिकों को इस कार्य से जुड़ना चाहिए.

केवल एक लापता बच्चे की मन:स्थिति की कल्पना करें तो मन बुरी तरह बेचैन हो जाता है. उस पर जब यह बताया जाता है कि प्रतिवर्ष ऐसे हजारों बच्चे गुम होने के बाद महीनों तक नहीं मिल पाते हैं या कभी नहीं मिलते हैं तो दिल कांपने लगता है. फिर यदि इस जानकारी को ध्यान में रखें कि गलत हाथों में पहुंचने वाले कई बच्चों को यातनाएं दी जाती हैं या उनसे अवांछनीय कार्य करवाए जाते हैं तो यह स्थिति और भी असहनीय हो जाती है.

इस तरह की असहनीय स्थिति ने ही अदालतों को यह कहने पर मजबूर किया है कि गुमशुदा बच्चों का समय पर पता लगाने के लिए कड़े निर्देश दें. पर यह सवाल आज भी सामने है कि मौजूदा समस्याओं के बीच इन आदेशों का पालन कहां तक हो सकेगा. प्राय: माना गया है कि खोए हुए बच्चों को खोजने में आरंभिक घंटे बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. यदि उस समय समुचित प्रयास नहीं किए गए तो बाद में बच्चों को खोजना काफी कठिन हो सकता है.

फिर भी विभिन्न समस्याओं और सीमाओं के बीच जितना बेहतर से बेहतर प्रयास हो सके, उतना तो करना ही चाहिए और इसमें अदालती निर्देशों से सहायता मिलेगी. इस बारे में दबाव पड़ने पर किसी तरह का कवर-अप नहीं होना चाहिए. जो सही स्थिति है वह लोगों के सामने व अदालत के सामने रखनी चाहिए. दिल्ली में आपरेशन सर्च आरंभ किया गया है.

इससे खोए हुए बच्चों के संबंध में पूरी जानकारी व चित्र बाल कल्याण गृहों तक मुस्तैदी से भेजे जाते हैं ताकि खोए बच्चों को परिवार से मिलाने में मदद मिल सके. उत्तर प्रदेश सरकार ने खोए बच्चों को परिवार से मिलाने के लिए ऑपरेशन स्माइल शुरू किया है. राज्य सरकारों ने अपने स्टैंर्डड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) तय किए हैं जिन्हें सुधारने के प्रयास हो रहे हैं.

इससे संबंधित वेब साइट को बेहतर करने के प्रयास भी हो रहे हैं. इस तरह की विभिन्न पहल हो रही है फिर भी संदेह बना हुआ है कि पूरे तथ्य सामने नहीं आ रहे हैं. इस संदर्भ में अब तक के सबसे क्रूर व चर्चित निठारी कांड के बारे में भी यही माना जा रहा है कि पूरी सच्चाई सामने नहीं आ सकी. कई सवाल है जिनके उत्तर नहीं मिल सके.

आंकड़े बता रहे हैं एक वर्ष में देश से लगभग एक लाख बच्चे गुम हो रहे हैं. इनमें से कुछ मिल जाते हैं पर हजारों का फिर भी पता नहीं लगता है. प्रतिवर्ष न मिलने वाले हजारों बच्चों की संख्या को यदि जोड़कर देखा जाए तो समस्या की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है. उपलब्ध जानकारियों में कई गैप हैं. जितनी जानकारी उपलब्ध है, उसका अधिक बेहतर विश्लेषण होना अभी जरूरी है.

एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जो बच्चे खोने के बाद मिल गए, उनके अनुभव क्या बताते हैं. क्या इन बच्चों को किसी गिरोह ने पकड़ा था व क्या इनका शोषण हुआ था. फिर वे मिले या लौट पाए तो किस तरह के प्रयास से लौट पाए. एक अन्य प्रश्न यह है कि बच्चे किन परिस्थितियों में गुम हुए. इस तरह की जानकारी एकत्र कर उसे वर्गीकृत किया जा सकता है. फिर इस आधार पर जरूरी सावधानियां अपनाने में मदद मिलेगी.

इस समस्या की बेहतर समझ उपलब्ध जानकारियों के वैज्ञानिक विश्लेषण से प्राप्त करने के बाद ही इसके नियंत्रण की असरदार योजना तैयार हो सकेगी. न तो किसी सच्चाई को दबाना चाहिए और न अनावश्यक सनसनी उत्पन्न करनी चाहिए. तथ्यों के आधार पर चलना चाहिए. इस समस्या का अंतरराष्ट्रीय संदर्भ भी हो सकता है जो यौन शोषण, अंग व्यापार या अन्य गंभीर अपराधों से भी जुड़ा हो सकता है. उस पर भी सावधानी से नजर रखनी होगी.

आखिर जो इतनी चाईल्ड पोर्नोग्राफी बन रही है, उसमें किन बच्चों का उपयोग हो रहा है, ऐसे कठिन सवाल भी पूछने होंगे. इस बारे में जो जानकारी अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ही उपलब्ध है, उसका भी अध्ययन करना होगा.

इस तरह की अधिक विस्तृत जानकारियां उपलब्ध होने से पहले भी कुछ सुझाव निश्चय ही दिए जा सकते हैं. एक तो यह कि निर्धन लोगों की बस्तियों में अधिक क्रेच या बालवाड़ी शुरू करने से बच्चों के खो जाने की समस्या कुछ कम हो सकती है.

ऐसे संदेश बार-बार प्रसारित होने चाहिए कि ऐसा कोई बच्चा गिरोह या अपराधियों के जाल से बच निकले तो उसे सरकार की सहायता अवश्य मिलेगी. इसके लिए पुलिस थानों व ट्रैफिक पुलिस तक कड़े निर्देश होने चाहिए कि इस स्थिति का कोई भी बच्चा उनके पास आए तो वे उसे तुरंत संरक्षण प्रदान करें. इससे गिरोहों को गिरफ्त में आये बच्चों का बचना अपेक्षाकृत सरल हो जाएगा. हालांकि कुछ खतरे उनके लिए फिर भी बने रहेंगे.

भारत डोगरा
लेखक


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