मोदीमय मीडिया, मीडियामय मोदी

Last Updated 28 Dec 2014 04:36:36 AM IST

यह बरस और इस बरस का समूचा मीडिया मोदी के नाम रहा.


मोदीमय मीडिया, मीडियामय मोदी

 मोदी की गतिविधियां, राजनीति और चुनाव में उनकी निर्णायकता, उनके तूफानी चुनावी दौरे, उनकी साढ़े चार सौ से  अधिक जनसभाएं और उनके तीखे संबोधन, उनकी ओजस्वी और तीखी वक्तृता, निराश लोगों में नई आशा और नए सपने जगाने वाली उनकी वाणी की ताकत, अच्छे दिन लाने के उनके संदेश, उनके प्रोग्राम, उनके नारे, उनकी रीति-नीति, उनकी स्टाइल, उनकी चाल-ढाल आदि ने मोदी को एक नए पॉपुलर आइकन में ढाल दिया. इसी बरस जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में उनकी लोकप्रियता देखकर मीडिया ने उन्हें ‘रॉकस्टार’ और वि नेता का खिताब दिया.

इतनी नेमतें इतने कम समय में किसी एक नेता पर कभी नहीं बरसीं. शायद इसीलिए मोदी का मीडिया में उपलब्ध चेहरा सबके लिए एक अनिवार्य चेहरा बन गया. वे सबके लिए अनिवार्य हो उठे. आप उन्हें पसंद करें या न करें, वे सबके एक अनिवार्य और दैनिक विषय बन चुके हैं.  मीडिया में वे सर्वाधिक ‘कर्वड’ नेता की तरह उभरे, सोशल मीडिया पर वे नंबर एक रहे और नियमित मीडिया पर भी वे नंबर एक रहे. खबर आई है कि कुछ लोग मोदी के इस मीडिया चमत्कार का अलग से अध्ययन कर रहे हैं और समझना चाहते हैं कि आखिर मोदी ने मीडिया के साथ कौन-सा ऐसा संबंध बनाया और किस तरह बनाया कि वे मीडिया विषय मात्र न बनकर खुद ही मीडिया बन उठे हैं?

वे स्वयं एक ऐसा और अनिवार्य मीडिया बन गए हैं जो अपना मीडियम आप है. गांधी के बाद मोदी शायद पहले ऐसे नेता हैं जो मीडिया के पीछे नहीं दौड़े बल्कि मीडिया स्वयं उनके पीछे दौड़ने लगा. वे मीडिया के लिए अनिवार्य बन गए.

ऐसी तीखी मीडिया-सजगता के लिए मोदी तैयार दिखे. इसीलिए उनके पास मीडिया के लिए एक से एक अनूठे नारे रहे, एक से एक अनूठे अवसर रहे. मोदी की मीडिया सजगता का एक बड़ा प्रमाण यह भी है कि वे मीडिया में अपनी उपस्थिति के प्रति शायद सबसे जागरूक नेता हैं. वे अपने होने को अच्छी तरह जानते हैं. वे मीडिया में अपनी छवि के होने को और उसके प्रभाव और प्रतिक्रिया को अच्छी तरह समझते हैं.

उनकी सतत और सर्वव्यापी मीडिया उपस्थिति अपने आप में एक उपलब्धि है, लेकिन इससे कहीं अधिक यह बात कीमती है कि वे इसे जानते हैं और जानकर भी इसे अपने ऊपर एक बोझ नहीं बनने देते और इसीलिए वे मीडिया के प्रति सचेत होकर भी मीडिया या कैमरे के प्रति अतिरिक्त सतर्क नहीं दिखते. मीडिया उनके लिए एक सहज प्रक्रिया है. वह यहां तक एक सहज उपक्रम है कि मोदी कैमरों की तरफ एक बार भी नहीं देखते. वे जानते हैं कि जनता के बीच उनको किस एंगल से, किस तरह से दिखना चाहिए और कौन-सा ऐसा एंगल है जो सहज है और पब्लिक फ्रेंडली भी है. वे ‘मीडियम इज मेसेज’ हैं. स्वयं अपने मीडियम हैं और अपने संदेश भी आप हैं. शायद इसीलिए उन्हें अपने लिए किसी मीडिया या प्रेस सलाहकार की जरूरत नहीं.

मोदी के ‘मीडिया सावी’ होने की चरचाएं आम रही हैं. वे ‘तकनीक सावी’ भी हैं और इन बातों को उनके लोग प्रकट भी करते हैं. इसीलिए हमारा मानना है कि मोदी के रूप में हमारे सामने एक मीडिया-सजग और सक्षम प्रधानमंत्री है जो अब तक के तमाम प्रधानमंत्रियों से अलग है. मीडिया के युग में ऐसा होना स्वाभाविक है. इसीलिए मीडिया में अपनी उपस्थिति को लेकर वे सहज नजर आते हैं.

जहां तक हमारी जानकारी है, चुनाव से पहले मोदी  कई चैनलों में बातचीत के लिए उपस्थित हुए. कहीं वे आमंत्रित पब्लिक के सामने सवालों के जवाब देते देखे गए और कहीं वे एक एंकर या एकाधिक प्रश्नकर्ताओं के सवालों का जवाब देते देखे गए. बातचीत में उनकी सजगता और सटीकता देखते ही बनती थी. एक बातचीत में एंकर को उन्होंने दो बार यह कह कर टोका कि मैंने तो सुना था कि अच्छी रिसर्च करते हो..आप फिर रिसर्च करके आइए... इसका मतलब यह हुआ कि वे मीडिया में आने से पहले अपना होमवर्क अच्छी तरह करके आते हैं. उनकी स्मरण शक्ति बहुत अच्छी है, तभी चुनाव से पहले वे इतने आत्मविास से उस नामी एंकर को टोक सके थे. इस तरह उनकी छवि एक ऐसे तैयारी वाले नेता की बनी जो अपने कामकाज में बेहद चुस्त-दुरुस्त है. आज के कटखने युग में एक प्रधानमंत्री को इतना दक्ष तो होना ही चाहिए.  

कहने की जरूरत नहीं कि यह बरस मोदी द्वारा रेडियो के ‘पुनराविष्कार’ के लिए भी जाना जाएगा. देश की आम जनता से अपने ‘मन की बात’ कहने के लिए उन्होंने टीवी की जगह रेडियो को चुना और देखते-देखते रेडियो जैसा विस्मृत किंतु सशक्त माध्यम सबके लिए अनिवार्य और ‘कूल’ हो उठा. किनारे डाल दिए गए रेडियो में नई जान पड़ गई. रेडियो को जगाकर वे मीडिया सिद्धांतिकी के उस्ताद मार्शल मेक्लूहान की उस थियरी को आजमाते दिखे जिसमें ‘वि ग्राम’;ग्लोबल विलेज की कल्पना की गई है. मक्लूहान के टीवी की जगह, मोदी ने रेडियो को भारत भर का सक्षम माध्यम बना डाला.

पहली ‘मन की बात’ में मोदी ने कहा था कि रेडियो के जरिए आम गरीब आदमी से आसानी से बात की जा सकती है. इसी के साथ उन्होेंने एक अन्य ‘मन की बात’ में लोगों से कहा कि वे उन्हें चिठ्ठियां लिखकर अपनी बात बताएं. और उन्होंने अगली बार बात करते-करते स्वयं ही बताया कि लाखों लोग अपनी बातें उन तक लिख रहे हैं और उन्हें पहली बार नए-नए यथार्थ की पहचान हो रही है, वे समस्याओं से अवगत हो रहे हैं और कुछ खत ऐसे भी होते हैं जिनमें आम आदमी के साहस, उसकी नवोन्मेषी कल्पना, उसकी रचनात्मकता की झलक मिलती है. कहने की जरूरत नहीं कि बरस दो हजार चौदह मोदी द्वारा रेडियो और चिट्ठियों के नवोन्मेष और आम आदमी के साथ नए संवाद के लिए जाना जाएगा.

सुधीश पचौरी
लेखक


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