दमदार बने सूचना का अधिकार

Last Updated 23 Dec 2014 02:33:00 AM IST

सूचना के अधिकार का कानून हाल के वर्षों में बने सबसे चर्चित कानूनों में रहा है.


दमदार बने सूचना का अधिकार

इससे अनेक तरह के भ्रष्टाचार व घोटालों का पर्दाफाश करने में सहायता मिली है. इसके अतिरिक्त बहुत से नागरिकों को  अपनी शिकायतों व समस्याओं के समाधान में भी आरटीआई के उपयोग से मदद मिली. इस सफलता के बावजूद सूचना के अधिकार के उपयोग में अनेक समस्याएं भी सामने आती रही हैं और इनमें से बढ़ती ही जा रही हैं. अत: सूचना के अधिकार को मजबूत करने के विभिन्न उपायों पर विचार जरूरी है.

इस दृष्टि से ‘भारत में सूचना के अधिकार की व्यवस्था के जन आकलन’ शीषर्क से प्रकाशित एक अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है. इसमें विशेषज्ञों के विस्तृत परामर्श व सव्रेक्षणों के आधार पर इस मुद्दे से जुड़ी समस्याओं व समाधानों पर विस्तृत चर्चा है. यह अध्ययन आरटीआई मूल्यांकन व पैरवी ग्रुप (आरटीआई असेसमेंट एंड एडवोकेसी ग्रुप) तथा ‘साम्या-समता अध्ययन केंद्र’ द्वारा किया गया है.

अध्ययन के दौरान अनेक समूह वार्ताएं आयोजित की गयीं. ऐसी 64 ग्रामीण व 62 शहरी समूह चर्चाओं में यह आश्चर्यजनक बात सामने आई कि इनमें भाग लेने वाले किसी भी व्यक्ति ने आरटीआई कानून के बारे में नहीं सुना था. दिल्ली व राज्य राजधानियों में स्थिति कुछ बेहतर थी. यहां की मोहल्ले स्तर की चर्चाओं में भाग लेने वाले व्यक्तियों में से 61 प्रतिशत ने आरटीआई कानून के बारे में पहले से सुना था. इस स्थिति को देखते हुए इस अध्ययन ने आम लोगों में आरटीआई की जानकारी व्यापक स्तर पर फैलाने के लिए अनेक संस्तुतियां की हैं.

अध्ययन से यह भी पता चला है कि आरटीआई कानून के अन्तर्गत जानकारी मांगने वालों में महिलाओं का प्रतिशत मात्र आठ है जबकि गांववासियों का प्रतिशत महज 14 है. अत: आरटीआई के बारे में जानकारी विशेषकर महिलाओं तथा गांववासियों तक पंहुचाने पर और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. समूह वार्ताओं में अधिकतर नागरिकों ने कहा कि वे आरटीआई का उपयोग अपनी शिकायतों के निवारण के लिए करना चाहते हैं. अध्ययन की संस्तुति है कि यदि विचाराधीन शिकायत निवारण कानून शीघ्र ही पास कर दिया जाए तो इस जरूरत की बेहतर पूर्ति इस कानून से हो सकेगी.

सूचना प्राप्त करने की प्रक्रिया में पहली अपील का महत्वपूर्ण स्थान है. इस अध्ययन से पता चला है कि केंद्र सरकार व दिल्ली सरकार में तो पहली अपील पर कुछ ध्यान दिया जाता है पर अन्य स्थानों पर पहली अपील में जानकारी प्राप्त करने की संभावना चार प्रतिशत से भी कम है. अत: इस स्थिति को सुधारने के लिए अध्ययन ने कई सुझाव दिए.

अध्ययन में इस बारे में गहरी चिंता व्यक्त की गई है कि सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत जानकारी प्राप्त करने वाले अनेक नागरिकों को डराया-धमकाया जाता है और कई बार उन पर जानलेवा हमले भी किए जाते हैं. इस संभावना को न्यूनतम करने के लिए अध्ययन ने ऐसी आक्रामकता करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत कड़ी कार्रवाई की संस्तुति की है. साथ ही में विभिन्न स्तरों पर जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध करवाने का सुझाव दिया है. इसके अतिरिक्त व्हिसल ब्लोअर कानून को भी शीघ्र लागू करने के लिए कहा है.

कुछ सरकारी कार्यालयों का कहना है कि उन पर सूचना के अधिकार के अंतर्गत जानकारी देने का बोझ बहुत बढ़ गया है पर इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जो जानकारी इन कार्यालयों को स्वयं बिना मांगे उपलब्ध करवा दी जानी चाहिए थी, उसे वे उपलब्ध नहीं करवाते हैं.  आरटीआई के लगभग 70 प्रतिशत आवेदन ऐसी जानकारी के लिए होते हैं जो बिना जानकारी मांगे स्वत: उपलब्ध करवा दिये जाने चाहिए. विभिन्न रिकॉर्ड बेहतर ढंग से रखे जाएं तो भी ऐसी समस्याएं कम हो जाएंगी. 45 सूचना अधिकारियों को आरटीआई से संबंधित कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है. अत: उन्हें व अन्य अधिकारियों को आरटीआई संबंधी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.

एक मुख्य समस्या यह है कि सूचना न मिलने पर सूचना आयोगों में जो दूसरी अपील की जाती है, उसे कितने समय में निबटाना है, इसकी कोई कानूनी सीमा तय नहीं है. इस समय यह अपीलें सूचना आयोगों में एकत्र होती जा रही हैं और बहुत समय तक कोई कार्यवाही नहीं हो रही है. जिस रफ्तार से इन पर कार्यवाही हो रही है उससे तो अध्ययन के अनुसार, कई राज्यों के सूचना आयोगों में एकत्रित हो रही अपीलों पर विचार करने में कई वर्ष लग जाएंगे. और इस तरह तो सूचना का अधिकार ही खतरे में पड़ जाएगा. अत: इस स्थिति को सुधारने के लिए तुरंत असरदार कार्यवाही करना जरूरी है.

इसके अतिरिक्त कई बार सूचना आयोगों के आदेशों की उपेक्षा होती है. कानून के ऐसे उल्लंघन के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. इस अध्ययन से पता चलता है कि सूचना के अधिकार संबंधी अनुभवों के मूल्यांकन के लिए कोई सरकारी स्तर के प्रावधान इस समय उपलब्ध नहीं हैं. अत: अध्ययन में संस्तुति की गई है कि सूचना के अधिकार के अनुभवों के आकलन के लिए व समय-समय पर इसे सशक्त करने के सुझाव सरकार को देने के लिए सूचना के अधिकार की एक राष्ट्रीय परिषद का गठन होना चाहिए.

इस तरह के सुझाव अपनी जगह पर स्वागत योग्य हैं, पर इनके साथ एक बड़ा सवाल यह जुड़ा है कि क्या सरकारें वास्तव में सूचना के अधिकार को सशक्त करना चाहती भी हैं या नहीं. ऐसी इच्छाशक्ति के बिना इन संस्तुतियों को लागू करना संभव नहीं है.

हाल के समय में कुछ सरकारों ने ऐसे संकेत दिए हैं कि वे सूचना के अधिकार को मजबूत नहीं करना चाहती हैं अपितु इसे कुछ कमजोर स्थिति में ही रखना चाहती हैं. जब उनसे बार-बार कुछ कमियों को दूर करने को कहा गया तो उन्होंने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया.

अत: यह और भी जरूरी हो जाता है कि सूचना के अधिकार को मजबूत करने के लिए और सूचना के अधिकार के कानून की रक्षा के लिए जन संगठन अपनी सक्रियता बनाए रखें. कुछ मुद्दों पर आगे काम करना बहुत जरूरी है जैसे कि राजनीतिक दलों पर सूचना के अधिकार को लागू करना.

कुछ स्वार्थी व्यक्ति सूचना के अधिकार का दुरुपयोग भी कर रहे हैं. जन संगठनों को चाहिए कि ऐसे स्वार्थी व भ्रष्टाचारी तवों का पर्दाफाश भी करें ताकि सूचना के अधिकार का कोई दुरुपयोग न हो

भारत डोगरा
लेखक


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