राहत के इंतजार में मध्यम वर्ग

Last Updated 22 Dec 2014 04:49:36 AM IST

हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वह नौकरीपेशा और मध्यम वर्ग के लोगों पर टैक्स का और बोझ डालने के पक्ष में नहीं हैं.


राहत के इंतजार में मध्यम वर्ग

उन्होंने संकेत दिए कि आगामी बजट में आयकर छूट की सीमा बढ़ाई जा सकती है. फरवरी 2015 में अपना पहला पूर्ण बजट पेश करने जा रहे जेटली ने पिछले बजट में आयकर छूट की सीमा दो से बढ़ाकर ढाई लाख रुपए कर दी थी. वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि आगामी बजट में आयकर में 50 से 70 हजार रुपए तक की अतिरिक्त छूट देने पर विचार चल रहा है. यानी तीन लाख रुपए या उससे थोड़ी ज्यादा आमदनी को टैक्स फ्री किया जा सकता है. इसके साथ-साथ सरकार आवास ऋण पर ब्याज सब्सिडी की पेशकश करने की योजना बना रही है. इसका मकसद निम्न मध्यवर्गीय लोगों को मकान खरीदने में मदद करने के साथ-साथ आवास क्षेत्र में मांग प्रोत्साहित करना है.

यदि हम देश के मध्यम वर्ग के आर्थिक-सामाजिक परिदृश्य को देखें तो पाते हैं कि देश के लाखों दफ्तरों में सुबह से रात तक पसीना बहाकर देश को नई पहचान और नई ताकत देने वाला भारतीय मध्यम वर्ग कदम-कदम पर सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है. बड़ी संख्या में निम्न मध्यम वर्ग के ऐसे लोग जिनकी मासिक आय 35-40 हजार रुपए तक है. वे यह कहते हुए पाए जाते हैं कि रहन-सहन के खर्चे, ट्रांसपोर्ट की लागत और बच्चों की फीस चुकाने के बाद वे कुछ बचा ही नहीं पाते. आकस्मिक खर्चों की स्थिति में तो उनकी आर्थिक मुश्किलें बहुत बढ़ जाती है. चाहे मध्यम वर्ग के करोड़ों लोगों के चेहरे पर लगातार मुस्कराहट दिखाई दे रही है, लेकिन इसके पीछे कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां भी छिपी हुई हैं. महंगाई मध्यम वर्ग के लिए पीड़ाजनक है. चूंकि शिक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की महंगी शिक्षा को बढ़ावा मिला है, परिणामस्वरूप मध्यम वर्ग की स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं. मध्यम वर्ग के करदाता आयकर संबंधी मुश्किल भी अनुभव कर रहे हैं.

न केवल महंगी शिक्षा से मध्यम वर्ग की जेब खाली हो रही है, बल्कि अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए मध्यम वर्ग के द्वारा लिए जाने वाले कर्ज पर बढ़ी हुई ब्याज दरों ने उसकी चिंताएं बढ़ा दी हैं. मध्यम वर्ग कठिनाइयों को अनुभव करता है, लेकिन सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण वह कठिनाइयों को बताता नहीं है. मध्यम वर्ग की मुश्किलें समाज के गरीब एवं अमीर वर्ग से अलग और अधिक है. गरीब वर्ग सरकार की विभिन्न योजनाओं से लाभान्वित होकर मुश्किलों से पार पा जाता है. जबकि अमीर वर्ग अपनी आर्थिक ताकत से मुश्किलों का सामना सरलता से कर लेता है. निसंदेह भारतीय मध्यम वर्ग विकासपरक उद्देश्यों के लिए उपलब्ध सुविधाओं और संसाधनों से संतुष्ट नहीं है. मध्यम वर्ग मेरिट में विश्वास करता है और विकास के लिए समान अवसर चाहता है. केंद्रीय वित्तमंत्री को मध्यम वर्ग के आयकरदाताओं की बढ़ती हुई निराशाओं पर प्रमुख रूप से ध्यान देना होगा और इस वर्ग के लिए आयकर संबंधी राहत हेतु मुट्ठी खोलनी होगी.

सरकार द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010-11 में व्यक्तिगत आयकरदाताओं की संख्या तकरीबन 3.10  करोड़ थी, जो 2012-13 में बढ़कर तकरीबन 3.46 करोड़ पर पहुंच गई. उल्लेखनीय है कि नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत के करीब 90 फीसद करदाता उस श्रेणी में आते हैं, जिनकी कर योग्य आय पांच लाख रुपए वाषिर्क तक है. कुल आयकर संग्रह में इस श्रेणी की हिस्सेदारी महज 10 फीसद ही है. जबकि कुल करदाताओं में से महज दो फीसद ही 20 लाख रुपए वाषिर्क या इससे अधिक की आय की श्रेणी में आते हैं, लेकिन इस आयकर श्रेणी से आयकर संग्रह में 63 फीसद हिस्सेदारी आती है. इन श्रेणियों में आयकरदाताओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है. यदि आयकर विभाग आयकर की उच्चतम सीमा के तहत अधिक कर चुकाने वालों की कम संख्या पर ध्यान दे तो आयकर का आकार बड़ा हो सकता है. करोड़पति वर्ग के आयकरदाताओं पर ध्यान देने से कर संग्रह में सुधार हो सकता है. अधिक आय वाले संभावित करदाताओं की पहचान करना तुलनात्मक रूप से आसान होगा.

मल्टी मिलिनेयर फेनोमेना-2014 न्यू वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार 2013 में जहां भारत में एक करोड़ डॉलर की शुद्ध संपत्ति वाले करोड़पतियों की संख्या 2.14 लाख थी, वहीं यह संख्या 2014 में बढ़कर 2.26 लाख हो गई. लेकिन विचारणीय यह है कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार एक करोड़ रुपए से अधिक की आय पर कर चुकाने वालों की संख्या मात्र 42,800 ही है. इस उच्चतम आयकर वर्ग के तहत आयकरदाताओं की संख्या सरलता से बढ़ाई जा सकती है. इसके लिए वित्त मंत्रालय को अपनी प्रत्यक्ष कर संग्रह की कोशिशों पर विशेष ध्यान देना होगा. आयकर विभाग को देश में महंगी कारें खरीदने वालों की सूची पर नजर रखनी होगी. आलीशान आवास और अन्य विलासिता उत्पादों के खरीदारों पर भी आयकर विभाग को नजर रखनी होगी. कर चोरी रोकने के लिए ऐसी महंगी पार्टियों, वैवाहिक समारोहों और कार्यक्रमों पर भी नजर रखनी होगी, जो समाज और मीडिया में सुर्खियां पाते हैं.

कर चोरी वाले संभावित क्षेत्रों पर विशेष ध्यान भी देना होगा. खासतौर पर निर्माण, रियल एस्टेट और ठेके पर होने वाले काम, अचल संपत्ति को किराए पर देने, बिजनेस सपोर्ट सेवाएं, व्यक्तिगत आपूर्ति एवं सिक्योरिटी सेवाएं और सामानों के परिवहन ऑपरेटर आदि के कर भुगतान पर निगाह रखनी होगी.

सरकारी निकायों जैसे रेलवे, डाक विभाग, नगर निगम और कैंटोनमेंट बोर्ड के सेवाकर भुगतानों पर भी नजदीक से नजर रखनी होगी. साथ ही छोटे आयकरदाताओं के लिए राहत के कदम आगे बढ़ाए जा सकते हैं. केंद्र सरकार को उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार के एजेंडे को तत्काल आगे बढ़ाना चाहिए ताकि मध्यम वर्ग के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को उपयुक्त फीस पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके. बड़े शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को कारगर बनाया जाना चाहिए ताकि यातायात पर मध्यम वर्ग के बढ़ते हुए व्यय में कमी आ सके.

चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास से सुसज्जित नई पीढ़ी के बल पर देश को महाशक्ति बनाने का सपना संजोए हुए हैं, ऐसे में यदि वित्तमंत्री छोटे आयकरदाताओं के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास से प्रशिक्षित करने के लिए आयकर प्रावधानों में ऐसी नई शैक्षणिक राहत का प्रावधान जोड़ेंगे तो इससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ बचत और निवेश भी बढ़ेंगे. वस्तुत: अभी सेक्शन 80-सी के तहत ट्यूशन फीस पर और सेक्शन 80-ई के तहत शिक्षा ऋण पर ब्याज संबंधी जो राहत है, वह बिलकुल अपर्याप्त है. यदि आयकर राहत संबंधी प्रावधानों में एक ऐसा नया सेक्शन जोड़ा जाए जिसके तहत स्कूल-कॉलेजों में दी जा रही पूरी फीस और कौशल प्रशिक्षण संबंधी पूरा व्यय आयकर राहत की सीमा में आ जाए तो इससे बड़ी संख्या में छोटे आयकरदाता भी अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दिला पाएंगे.  उम्मीद है कि सरकार छोटे आयकरदाताओं के लिए आयकर राहत संबंधी प्रावधानों के साथ मध्यम वर्ग की अन्य सामाजिक-आर्थिक चिंताओं पर ध्यान देते हुए ऐसे उपयुक्त कदम उठाएगी जिससे मध्यम वर्ग की बढ़ती हुई हताशा और बैचेनी कम होगी. 

 (लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

 

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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