पाकिस्तान की असंवेदनशीलता
इस सप्ताह उर्दू प्रेस पर लोकसभा व राज्यसभा में विपक्ष का धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर हंगामा, भारत पर आतंकी हमले की आशंका के चलते अलर्ट, संसद में पेशावर के तालिबानी हमले की निंदा व मृतकों को श्रद्धांजलि सबसे ज्यादा छाए रहे.
लखवी की जमानत पर बवाल (फाइल फोटो) |
इनके अलावा, जनता परिवार की एकता पर फैसले की प्रतीक्षा, बांग्लादेश के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के परिणाम, पाकिस्तान में फांसी की सजा पर रोक का खात्मा, लखवी की जमानत पर पाक सरकार का खेद, यूरोपीय यूनियन को तुर्की की चेतावनी और इराक में आतंकी संगठन द्वारा 150 महिलाओं की हत्या पर रोष जैसे मुद्दो पर अधिकांश उर्दू अखबारों ने संपादकीय भी प्रकाशित किए हैं.
उर्दू दैनिक \'इंकलाब\' ने \'पाकिस्तान की असंवेदनशीलता\' शीषर्क के तहत अपने संपादकीय में लिखा है कि अभी पेशावर त्रासदी में निर्दोष छात्रों के दुख में रोने वाली आंखें सूखी भी नहीं हैं, सैनिक स्कूल की कक्षाओं और ऑडिटोरियम में बहने वाला खून धोया भी नहीं गया है और इस त्रासदी के विरुद्ध दुख व क्रोध की अभिव्यक्ति के लिए शांति मार्च और ऐसे ही अन्य आयोजनों का सिलसिला थमा भी नहीं है कि पाकिस्तान की आतंक विरोधी अदालत ने 26/11 मुंबई हमले के आरोपी लखवी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दे दिया है. हम नहीं जानते कि इस घटना पर पाक सरकार की क्या प्रतिक्रिया होगी, लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि इससे जो संदेश मिल रहा है वह असंवेदनशीलता का प्रतीक है. पेशावर त्रासदी के दुख में भारत भी दुखी है, बल्कि हकीकत तो यह है कि किसी भी देश ने इस त्रासदी का इतना असर नहीं लिया जितना कि भारत ने. यहां संसद में शोक मनाया गया, प्रधानमंत्री के आह्वान पर स्कूलों में बच्चों ने दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि दी, प्रार्थना सभाएं की गई, देशभर में प्रदर्शन हुए और हो रहे हैं. भारतीय टीवी चैनल व अखबार भी पेशावर त्रासदी के विरुद्ध अपने दुख व आक्रोश का इजहार कर रहे हैं. ऐसे में कम से कम इतना तो होता कि पेशावर के घावों को सामने रखते हुए, मुंबई के जख्मों को हरा करने की कोशिश न की जाती.
उर्दू दैनिक \'राष्ट्रीय सहारा\' ने देश में महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराध पर अपने संपादकीय में लिखा है कि महिलाओं पर आपराधिक हमले और बलात्कार की घटनाओं में चिंताजनक और दुखद वृद्धि हो रही है. दो वर्ष पहले 16 दिसम्बर को रात के वक्त दिल्ली में निर्भया के साथ एक बस के अंदर बड़ी बेरहमी के साथ मारपीट करके छह लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था जिसमें बस का ड्राइवर और एक अविवाहित नाबालिग लड़का भी शामिल था. इन जानवरों ने इस भयानक वारदात के बाद निर्भया और उसके मित्र को बस से नीचे फेंक कर कुचल कर मारने की भी कोशिश की थी. इस भयानक और पाशविक घटना के खिलाफ दिल्ली व अन्य शहरों में प्रदर्शन हुए थे. प्रदर्शन और विरोध के परिणामस्वरूप महिलाओं पर आपराधिक हमलों की घटनाओं की जल्द तफ्तीश और उन पर मुकदमा चलाने के लिए मौजूदा कानूनों में संशोधन पर विचार करने के लिए एक न्यायिक कमेटी बनाई गई जिसने 80 हजार प्रस्तावों को ध्यानपूर्वक देखने के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश की. इस रिपोर्ट की रोशनी में कानूनों को सख्त किया गया. अंत में पत्र ने यह निष्कर्ष निकाला है कि सिर्फ कानून बनाना पर्याप्त नहीं, उस पर अमल भी जरूरी है.
उर्दू दैनिक \'मुंसिफ\' ने इस्राइल के विरुद्ध यूरोपीय देशों में बढ़ते विरोध को अपने संपादकीय का विषय बनाया है. पत्र के शब्दों में, जोर-जबरदस्ती करने वाले और आतंकवाद का लक्षण बनने वाले इस्राइल के लिए अब जमीन तंग होती जा रही है. उसकी हठधर्मी और आतंक के कारण उसके वे पुराने समर्थक और साथी भी एक-एक कर उसका साथ छोड़ते जा रहे हैं जिन्होंने उसे बनवाया था और जिनके कारण उसका वजूद अभी तक बरकरार है. स्वीडन ने फिलिस्तीनी राज्य को स्वीकार करके इसका आरंभ किया है. यह सिलसिला चल पड़ा है और कोई न कोई पाश्चात्य देश फिलिस्तीन के समर्थन में आवाज उठा रहा है. इससे इस्राइल बौखलाहट का शिकार है और हर आतंकी घटना में उसका साथ देने वाले अमेरिका से एक बार फिर मदद मांग रहा है. फिलिस्तीनी राज्य की रूपरेखा बनाई गई है और सुरक्षा परिषद में इसे जल्द ही प्रस्तुत किया जाना है.
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