गाली और धिक्कार के बीच

Last Updated 21 Dec 2014 02:13:25 AM IST

बीजेपी के एक विधायक ने एक सरकारी डॉक्टर को मोबाइल पर कोई छह मिनट तक लगातार गालियां सुनाई.


सुधीश पचौरी

गालियां देसी थीं और एकदम गली छाप तरीके से दी जा रही थीं जिनमें धमकी थी कि मार-मार कर ये कर दूंगा वो कर दूंगा कि तेरे बच्चों को नींद न ही आएगी, इतने दिन हो गए मेरे आदमी का काम कर दे, मान जा वरना ये कर दूंगा वो कर दूंगा...
गालियों का रेला ऐसा था कि लगता था एमएलए महोदय गालियों में पीएचडी कर चुके हैं और जल्द ही र्वल्ड रिकॉर्ड बनाने वाले हैं. लगभग हर चैनल ने इन गालियों की रिकॉर्डिंग सुनाई. रिकार्डिंग करने वाले गाली खाने वाले डॉक्टर ही थे. वही रिकार्डिंग हर चैनल के पास थी और नेता जी एक्सपोज हो रहे थे.

हर एंकर एमएलए की भाषा पर नाराज हो रहा था और कह रहा था कि यह अशिष्ट भाषा है, उसको बीजेपी से निकाला जाना चाहिए. उसको दंडित किया जाना चाहिए.

इस एमएलए ने कई पुराने गालीबाजों की यादें ताजा कर दीं और याद्दाशत के इस कमजोर युग में हर चैनल अपने फाइल रिकॉर्ड निकाल कर दिखाने में मशगूल हो गया कि कब किस दल के किस नेता ने कितनी गालियों का प्रयोग किया. सार्वजनिक जीवन में उसने कितनी बार किस-किस को गालियां दीं और कैसी गालियां दीं?

गालियां इतनी गर्हित थी कि एक एंकर ने कहा कि हम उनको यहां अपने मुंह से कह भी नहीं पाएंगे. एक एंकर ने बीच बहस में छह मिनट लंबा गाली टेप कई जगह ‘बीप’ की आवाज डालकर सुनावाया. बीप बजती तो ध्यान जाता और ऐसा लगता कि यहां कोई बहुत ही गंदी गाली छिपी है और इसी तरह उस खाली जगह को भरने के लिए मन करता  और बीप कुछ इस तरह वाक्य काटती थी कि गाली कौन सी है, इसे आसानी से सोचा जा सकता था.

ऐसे गालीबाज मामलों में एक चैनल अक्सर गाली देने वाले को अपने स्टूडियो में लाकर बिठाता है ताकि लोग उस गाली देने वाले को सीधे देख सकें. ऐसे गाली देने वाले को लाकर बिठाने से चैनल की विश्वसनीयता बढ़ती है. इस बार भी ऐसा ही हुआ. छह मिनट तक लगातार गाली देने का रिकॉर्ड बनाने वाले को चैनल ने अपने फ्रेम में बिठाया और पहला सवाल उसी से पूछा कि आपको मालूम है कि आपने क्या किया है? आपने एक सरकारी अधिकारी को गाली दी है, आपने ऐसा क्यों किया? क्या आप वहां के राजा हैं? आप कौन हैं गाली देने वाले?

गाली देने वाला एमएलए फ्रेम में बैठा रहा. उसने एंकर से बोलने की इजाजत बार-बार मांगी लेकिन एंकर तो पहले ही उससे इतना नाराज था कि वह एक वाक्य बोलता तो एंकर टोक देता. कहता कि हम आपको अपने चैनल का दुरुपयोग नहीं करने दे सकते. एंकर महोदय नैतिक क्रोध में बोलते रहे कि आपको शर्म आनी चाहिए. आपको सार्वजनिक जीवन से हट जाना चाहिए. आपको क्या हक था कि आप गाली देते? क्या यही कल्चर है बीजेपी का? बीजेपी को चाहिए कि उसे सदस्यता से ही हटा दे.

जब-जब एमएलए ने बोलना चाहा, तब-तब एंकर उसको टोकता रहा और स्थिति ऐसी हुई कि एकाध वाक्य बोलने के बाद वह चुप ही रहा. लेकिन जितनी देर बहस चली उसकी आलोचना हुई. बीजेपी वाले प्रवक्ता को भी उसके लिए बहुत कुछ सुनना पड़ा. जब प्रवक्ता ने कहा कि सस्पेंड कर दिया गया है, तो कहा गया कि सिर्फ सस्पेंशन से क्या होगा, इनको टर्मिनेट करिए. और जब प्रवक्ता ने कहा कि यह शुरुआत है तो उसकी भी नहीं सुनी गई. उसी चैनल में किसी ने कहा भी कि आप दूसरे की सुनते नहीं अपनी ही कहे जाते हैं, वो अंहकारी है तो आपका भी तो अहंकार है. जब उसे बोलने नहीं देना था तो बुलाया और बिठाया क्यों?

ऐसी एकतरफा और सतत र्भत्सना नागरिकता का भाव पैदा करने की अपेक्षा एक अभद्र को और हठी बनाने की कोशिश करने जैसी ही थी.

ऐसा ही सीन तब बना था जब कुछ महीने पहले एक दक्षिणी राज्य के एक एमएलए को एक चैनल ने अपने यहां बुलाकर उसे उसके किए पर खूब खरीखोटी सुनाई थी. उसका ‘अपराध’ यह था कि वह सरकारी खर्च से बाहर सैर सपाटा करने, ‘ऐश’ करने के लिए गया था. हमें याद है कि एक बार उसने एंकर को कहा कि उसके विधानक्षेत्र में उसकी तूती बोलती है और आप कुछ भी बकते रहें उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. एंकर की निंदा सुनकर वह और जिद्दी हो गया था.

यह सच है कि एमएलए या एमपी या मंत्री को सार्वजनिक जीवन में एक शिष्ट और मर्यादित भाषा का व्यवहार करना चाहिए. लेकिन एंकरों की अपनी भाषा क्या मर्यादित है? क्या वह किसी को उसका दोष समझाने वाली है या कि वह स्वयं एंकर के अहंकार से परिचालित है? अहंकारों की टक्कर किसी का दिल नहीं बदल सकती!

चैनल स्वयं को नागरिकता के प्रसारक मानकर काम करते हैं. वे दर्शकों के बीच भद्र-उपभोक्ता का निर्माण करने का इरादा रखते हैं क्योंकि वे उपभोक्ता ब्रांडों के प्रायोजकों के पैसे पर निर्भर होते हैं. एंकरों द्वारा अपेक्षित शिष्टाचार किसी निष्काम या निष्प्रयोजन नहीं होता. एंकर महात्मा गांधी नहीं होते.

नागरिकता का निर्माण जरूरी है, लेकिन यह काम जिस तरह की आग्रहशील और किसी हठीले को समझा सकने वाली भाषा में होना चाहिए वह एंकरों के पास नहीं है. वे सीधे अहंकार पर चोट कर चाहते हैं कि वह बंदा सबके सामने माफी मांगे. लेकिन आप नंगा करके आदमी को सुधार नहीं सकते. सुधारने के लिए आपको सही धीरज वाली भाषा और युक्तियों का सहारा लेना जरूरी है. बिगड़े को सुधारने के लिए कानून अपना काम करे, लेकिन एंकर अपने कंपटीटिव अहंकार और बाजारी टीआरपी का कोड़ा बनाकर न फटकारें. आप एंकर रहें; खुद वकील, अदालत और दरोगा न बनें.



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