सुधार की इस राह से मत भटकिए
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी बिल को मंजूरी दे दी गई है.
सुधार की इस राह से मत भटकिए |
इससे विधेयक को संसद के मौजूदा सत्र में पेश करने का रास्ता साफ हो गया है. शीतकालीन सत्र 23 दिसम्बर को समाप्त हो रहा है. सरकार का एक अप्रैल 2016 से जीएसटी लागू करने का लक्ष्य है. मालूम हो कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने समेत अन्य जटिल मुद्दों को लेकर केंद्र व राज्यों के बीच पिछले सप्ताह बनी सहमति के बाद संशोधित संविधान संशोधन विधेयक को मंत्रिमंडल में लाया गया.
प्रस्तावित जीएसटी करीब सात साल से पेट्रोलियम उत्पादों पर कर विवाद को लेकर अटका था. जीएसटी की राह में अब तक संघीय भारत और राज्यों के बीच पारदर्शिता और संबंधित विषय पर आपसी समझ ऐतिहासिक रूप से मतभेद का मुख्य कारण रहे हैं. संघवाद के ताने-बाने के बीच केंद्र से और अधिक प्रभुत्व और स्वायत्तता की मांग केंद्र और राज्यों के बीच लड़ाई का केंद्र बिंदु रहा है. राज्यों के नेतृत्व को डर है कि यदि टैक्स से जुड़े अधिकार भी उनसे छीन लिए जाएंगे तो राज्य में उन्हें कौन पूछेगा! जीएसटी केंद्रीय स्तर पर उत्पाद शुल्क और सेवा कर, राज्यों में लगने वाले वैट (मूल्य वर्धित कर) एवं स्थानीय करों का स्थान लेगा.
बहरहाल, आर्थिक सुधारों की दिशा में महत्वपूर्ण समझे जा रहे इस विधेयक पर सरकार ने सहमति बनाने के उद्देश्य से राज्यों के साथ हुए समझौते में पेट्रोलियम पदार्थो को तीन साल तक जीएसटी के दायरे से बाहर रखने का फैसला किया है. इतना ही नहीं, नए प्रत्यक्ष कर तंत्र के अमल में आने से राज्यों को होने वाले राजस्व नुकसान के लिए संवैधानिक प्रणाली पर भी सहमति बनी थी. गौरतलब है कि जीएसटी लागू होने से राजस्व नुकसान की भरपाई कैसे हो, इस बारे में राज्यों की चिंता और आपत्तियों के कारण यह करीब चार वर्ष से लटका हुआ है. राज्यों को डर था कि जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों की कर निर्धारण संबंधी स्वायत्तता खत्म हो जाएगी.
अभी राज्य अपनी मर्जी से कई उत्पादों पर बिक्री कर, वैट आदि घटाते-बढ़ाते रहते हैं. उन्हें इस पर भी संदेह है कि जीएसटी लागू होने के बाद उनका राजस्व बढ़ेगा. इसीलिए राज्य चाहते हैं कि पेट्रोल और शराब को जीएसटी के दायरे में न लाया जाए, क्योंकि राज्यों की आय का सबसे बड़ा स्रेत यही दो कर बने हैं. अगर पेट्रोल को जीएसटी में शामिल नहीं किया गया तो फिर जीएसटी ठीक से लागू नहीं हो पाएगा, क्योंकि पेट्रोल से अनेक अन्य उत्पाद तो बनते ही हैं, इसका असर कई वस्तुओं और सेवाओं के दामों पर भी पड़ता है. विवाद का एक मुद्दा यह भी रहा है कि जीएसटी में जो भी टैक्स दर रहे, वह संविधान में संशोधन का भाग हो. इस पर संभवत: अब सहमति बन चुकी है.
सबसे पहले 2006-07 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने जीएसटी का विचार रखा था. यूं कहे कि यूपीए सरकार इसे लागू करने का इरादा जताते-जताते चली गई. शुरू में इसे एक अप्रैल 2010 को लागू किये जाने का प्रस्ताव था, लेकिन लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही विधेयक निरस्त हो गया. इससे नई सरकार को नया विधेयक लाना पड़ा है. इस सप्ताह की शुरुआत में इसे लेकर केंद्र व राज्यों में सहमति बनी थी.
इसके तहत केंद्र ने जहां पेट्रोलियम को जीएसटी से बाहर रखने का निर्णय किया, वहीं राज्य इसके बदले प्रवेश शुल्क को नई कर व्यवस्था के दायरे में लाने पर सहमत हुए. पिछले सप्ताह तीन दौर की बातचीत में राज्यों ने इस पर जोर दिया था कि मुआवजा वाले हिस्से को संविधान संशोधन विधेयक में शामिल किया जाए. हालांकि अप्रत्यक्ष कर प्रावधानों में किसी भी तरह के परिवर्तन करने के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत होगी. पिछले कुछ समय से क्योंकि देश में गठबंधन सरकारें चल रही थीं, इसलिए यह संभव नहीं हो पाया. दूसरे, केंद्र और राज्यों के बीच भी जीएसटी के कई मुद्दों को लेकर विवाद बना हुआ है. जबकि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का मूल उद्देश्य है अप्रत्यक्ष कर क्षेत्र के संबंध में पूरे देश में एक समान कराधान क्षेत्र निर्मिंत करना.
जीएसटी क्रियान्वित होने के बाद केंद्र और राज्यों द्वारा अब तक लिए जाने वाले लगभग सभी अप्रत्यक्ष कर जैसे उत्पाद कर, विक्रय कर, सेवा कर और वैट आदि समाप्त हो जाएंगे. सारे देश में एक ही अप्रत्यक्ष कर जीएसटी होगा और इसकी समान दर होगी.
जीएसटी का फायदा यह है कि इससे टैक्स का दायरा बढ़ जाएगा. अब तक जो चीजें टैक्स से बची हुई थीं वो भी इसके दायरे में आ जाएंगी. सारे देश में एक जैसी टैक्स दर होने से प्रशासनिक सुविधा तो होगी ही, उत्पादकों को भी नई यूनिट खोलने के निर्णय में अब राज्यों की अलग-अलग टैक्स दर को विचार में लेने की जरूरत नहीं होगी.
अन्य उत्पादक कारकों जैसे कच्चा माल, बुनियादी ढांचा और बाजार के आधार पर निर्णय होंगे. अर्थव्यवस्था की सेहत सुधरेगी. जीडीपी बढ़ेगी. उपभोक्ता के लिए भी जीएसटी से कई फायदे होंगे. अब तक कई उत्पादों के दामो में अलग-अलग राज्यों में जो फर्क होता है, तब वह नहीं होगा. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) आर्थिक सुधारों के एजेंडे में लंबे समय से महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. लंबे समय से अटके जीएसटी को जल्द से जल्द लागू करने को लेकर सरकार गंभीर है. इसमें देरी न हो, इसके लिए राज्यों के हितों को प्राथमिकता देने को केंद्र कमोबेश तैयार है. अनुमान है कि इसके लागू होने से सकल घरेलू उत्पाद (जीएसटी) में डेढ़ से दो फीसद तक बढ़ोतरी होगी.
इतना ही नहीं जीएसटी लागू होने के बाद सारे टैक्स हटेंगे. कहा यह भी जा रहा है कि यह टैक्स सिस्टम सुधार का सबसे बड़ा कदम है. जीएसटी के तहत पूरे देश में एक ही रेट पर टैक्स लगेगा. अब तक राज्य अपनी सीमा में अलग-अलग तरह से टैक्स लेते हैं. इससे अनावश्यक रूप से उत्पाद की कीमत बढ़ती है, समय लगता है, राज्य की सरकारी मशीनरी के हाथों व्यापारी को परेशानी उठानी होती है. जिससे एक राज्य के व्यापारी की दूसरे राज्य में प्रतिस्पर्धात्मक कमी हो जाती है. पर अगर पूरे देश में एक ही कर होगा तो हर राज्य में अलग-अलग स्तरों पर कर के नाम पर जो बाधाएं खड़ी की जाती हैं, वो खत्म हो जाएंगी.
व्यापार निर्बाध हो सकेगा. जाहिर है, अधिक व्यापार हेागा और जीडीपी बढ़ेगी. राजस्व भी बढ़ेगा. यह भी संभव है कि राजस्व बढ़ने से सरकार टैक्स की दर कम करने के लिए प्रेरित हो और उत्पाद का दाम भी कम हो. जिसका फायदा उपभोक्ता को मिलेगा. पूर्व में जीएसटी दर 12 से 16 प्रतिशत बताई जा रही थी लेकिन अब लग रहा है कि कर की दर करीब 27 फीसद तक हो सकती है. इसमें राज्यों का जीएसटी करीब 12 फीसद और केंद्र का 15 फीसद हो सकता है. इससे टैक्स चोरी कम होगी कलेक्शन बढ़ेगा और टैक्स ढांचा पारदर्शी होगा. काफी हद तक टैक्स विवाद कम होंगे.
वास्तव में वस्तु एवं सेवा कर कर का वह प्रकार है जो मूल्यवर्धन के प्रत्येक स्तर पर अनिवार्यत: लगता है. हर चरण में किसी भी आपूति कर्ता को टैक्स क्रेडिट सिस्टम के माध्यम से इसकी भरपाई की अनुमति होती है. यह ठीक है कि शुरुआती दौर में जीएसटी लागू होने में अवश्य कुछ असुविधा होगी. लेकिन भविष्य में इसके सुपरिणाम आएंगे.
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