कला जगत को अंधेरा छोड़ गया ‘सितारा’
नृत्य जगत में सितारा देवी अपने आप में एक संस्था थी, जिसमें कथक का सब कुछ भरा हुआ था. वे बहुत तीव्र बुद्धि और विलक्षण प्रतिभासंपन्न इन्सान थीं.
सितारा देवी (फाइल फोटो) |
सितारा देवी सिर्फ बहुआयामी नवोन्मेषी नृत्यांगना ही नहीं थी, वे फिल्मी दुनिया की भी बहुत चर्चित अदाकारा थीं. सितारा देवी के जीवन के नब्बे बसंत उनकी बहुत बड़ी उपलिब्धियों से भरे हैं. दुखद है कि मंगलवार की सुबह कथक के आकाश का यह चमकीला सितारा अस्त हो गया. चौरानवे साल की सितारा देवी का गुर्दे की बीमारी से मुंबई के जसलोक अस्पताल में निधन हो गया.
नृत्य की साधना में अपना पूरा जीवन अर्पित कर नृत्य के रस कलश को भरने वाली सितारा का जाना भारतीय कला जगत की अपूरणीय क्षति है जिसे चिरकाल तक महसूस किया जाता रहेगा. कोलकाता में जन्मी सितारा देवी के पैरों में घुंघुंरू आठ साल की उम्र में ही बंध गए थे. जवानी में कदम रखते ही वह नृत्य जगत में आंधी की तरह दाखिल हुई और लगभग सात दशक तक तूफान की तरह हलचल मचाती रहीं. नृत्य के अलावा निडर होकर स्पष्ट बोलने के लिए भी सितारा जीवन पर्यत बहुत चर्चित रहीं. सितारा देवी के पिता पंडित सुखदेव महाराज कथक में बनारस घराने के प्रतिष्ठित नर्तक और गुरु थे. वे लंबे समय तक नेपाल के शाही दरबार में रहे. यहां रहते हुए उन्होंने एक नेपाली महिला से विवाह किया.
कथक में कथाकार परंपरा से जुड़े सुखदेव महाराज की तीन बेटियां अलखनंदा, तारा और सितारा थीं. और तीनों में नृत्य और फिल्मों में अदाकारी का फन मौजूद था. लेकिन सितारा ने नृत्य के हर हिस्से को अपने ढंग से बड़ी खूबसूरती से तराशा. इसलिए उनके नृत्य में एक अलग ही निखार दिखता था. सितारा के थिरकते पांव में झरने का प्रवाह महसूस होता था. तिहाई के साथ सम पर आने का उनका एक अनोखा अंदाज था. वह नृत्य को कहां से शुरू करती थीं और किस तरह सम पर पहुंचती थी, इसका अनुमान लगाना कठिन हो जाता था. सितारा देवी नृत्य में शुद्ध परम्परावादी थीं. उनका मानना था कि नृत्य में जो नांच की बंदिशें हैं, वह अपने में बहुत ही समृद्ध हैं. उन्होंने अपने नृत्य को कथक की पुरानी परम्परा के आधार पर ही विकसित करते हुए और नये रंग दिए.
जिन्दगी के शुरू के दौर में सितारा देवी को नृत्य के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा. उस समय के समाज में पारवारिक घरों की लड़कियों को संगीत-नृत्य सीखने की इजाजत नहीं थीं. पर तमाम सामाजिक विरोध और गतिरोधों के बावजूद पंडित सुखदेव महाराज ने अपनी तीनों बेटियों को नृत्य सिखाकर कलाकार के रूप में स्थापित किया. सितारा देवी नृत्य में एक ऐसी शख्सियत बनकर उभरीं जो अपने नृत्य के जादू से दर्शकों को बांध लेती थीं. उनके नाच में बनारस का जो अल्हड़पन था, उसका अपना अलग ही रंग और आस्वाद था.
सितारा देवी का नृत्य पूरी तरह से खुला था. ताल-सुर में लय के साथ खेलने का उनका अदभुत ही अन्दाज देखने को मिलता था. पुख्ता तालीम में कई घंटों तक रियाज करने वाली सितारा देवी ने बिना रुके नौ घंटे तक लगातार नृत्य करने का जो अविस्मरणीय रिकॉर्ड मुंबई में बनाया था, उसे भविष्य में कोई अन्य कलाकार शायद ही तोड़ पाये. बनारस में कलाकारों के मोहल्ला कबीर चौरा में रची-बसी सितारा को अपने पुश्तैनी घर से बहुत लगाव था. नृत्य और फिल्मों में काम करने के लिए बेशक वह मुंबई में आकर बस गई थीं पर कबीर चौरा से उनका नाता हमेशा बना रहा. सितारा देवी ने कुछ समय लखनऊ शैली के नृत्य को पंडित बिरजू महाराज के पिता पंडित अच्छन महाराज और पंडित शंम्भू महाराज से सीखा पर अंतत: उन्होंने बनारस के नटवरी अंग में ही अपने नृत्य को विकसित किया और उसे विस्तार दिया.
सितारा देवी ने जब फिल्म की ग्लैमर भरी की दुनिया में प्रवेश किया तो वहां भी अपने नृत्य और अभिनय की धूम मचा दी. एक एक्टर के रूप में भी उनकी खासी पहचान बनी. उन्होंने शहर का जादू, नगीना, वतन, मेरी आंखे, रोटी, चांद, हलचल आदि फिल्मों में अच्छी शोहरत पाई. पंडित बिरजू महाराज तो सितारा देवी को कथक का पर्याय ही मानते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर की तरह नृत्य में जो लंबी पारी सितारा देवी ने खेली, वह शायद ही कोई दूसरा खेल पाएगा. उनके कसे और खुले नाच में पुराने चलन की जो खूबियां और तासीर थी, वह उनके साथ ही चली गई.
सितारा देवी निर्भीक और दरिया दिल महिला थीं. उन्हें जो अच्छा लगा, उन्होंने वह खुलकर किया. उन्होंने दो शादियां कीं. पहले फिल्म जगत जाने-माने निर्देशक के. आसिफ से विवाह किया और उसके बाद प्रताप बरोत से. सितारा देवी पृथ्वी राज कपूर के परिवार खासकर राजकपूर की बहुत चहेती थीं. आरके स्टूटियो में होली खेलने का उत्सव सितारा के बिना अधूरा रहता था. वह जब तक स्वस्थ्य रहीं, लगातार उस होली उत्सव में जाती रहीं.
सितारा देवी अपने निजी जीवन में बहुत ही मिलनसार और कलाकारों की मदद करने वाली थीं. लेकिन उन्हें इस बात का मलाल था कि कई दशकों तक कथक को देश-देशान्तर में लोकप्रियता प्रदान करने और प्रतिष्ठा दिलवाने में जो एक अहम योगदान उन्होंने दिया, उसको भारत सरकार ने अनदेखा किया. इसमें कहीं दो राय हो ही नहीं सकती हैं कि सितार वादन में जो मुकाम पंडित रवि शंकर का था, कथक के क्षेत्र में वही सितारा देवी का था.
जिन्दगी के आखिरी दौर के आस-पास भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण अवार्ड देने का प्रस्ताव भेजा लेकिन उन्होंने उसे बेहिचक ठुकरा दिया. उनका कहना था कि कथक के जिस ऊंचे पायदान पर आज मैं खड़ी हूं, उस लिहाज से मुझे भारत रत्न न सही पर पद्म विभूषण तो मिलना ही चाहिए. सितारा अन्याय के खिलाफ बहुत तर्कशील हो जाती थीं. उन्हें जब भी कोई चीज नागवार लगती थी तो उस पर बहुत खुलकर और चिल्लाकर बोल पड़ती थीं. उन्हें इसकी परवाह नहीं होती थीं कि उनकी बात लोगों को अच्छी लगेगी या बुरी. सितारा देवी अब दुनिया में नहीं हैं. लेकिन वह और उनका नृत्य हमेशा अमर रहेगा और जो कीर्तिमान उन्होंने स्थापित किये, उसे उनके शिष्य संभाल कर रखेगें. कथक की इस सरताज को भावभीनी श्रद्धांजलि.
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