महाराष्ट्र में अवसरवादी सियासत
इस सप्ताह उर्दू अखबारों में रामपाल की गिरफ्तारी से पूर्व का ड्रामा, महाराष्ट्र में शरद पवार की अवसरवादी सियासत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की यात्राएं और उनके संतोषजनक परिणाम सबसे ज्यादा छाए रहे.
महाराष्ट्र में शरद पवार की अवसरवादी सियासत (फाइल फोटो) |
इनके अलावा, विश्व में गुलामी और दासता के चौंका देने वाले आंकड़े व रिपोर्ट, आईएसआईएस के विरुद्ध सफल कार्रवाइयां, स्पेन, स्वीडन और कई अन्य यूरोपीय देशों द्वारा फिलिस्तीन की स्वतंत्र व संप्रभु देश के रूप में मान्यता पर इस्राइली सरकार का विरोध और अमेरिका को ईरान के साथ समझौते की आशा जैसे मुद्दे ही अधिक छाए रहे.
उर्दू दैनिक \'मुंसिफ\' ने हरियाणा में बाबा रामपाल की गिरफ्तारी के ड्रामे पर अपने संपादकीय में लिखा है कि हरियाणा के हिसार में रामपाल की गिरफ्तारी के सिलसिले में जो बवाल मचा हुआ उसने राज्य प्रशासन की लापरवाही उजागर करने के साथ-साथ भारत की सभ्यता को भी दागी कर दिया. इस प्रकरण ने कानून और न्यायपालिका के सम्मान को भी मटियामेट कर दिया. रामपाल और उनके समर्थकों ने एक प्रकार से सरकार और कानून को चुनौती दी. इस घटना पर स्वयं अदालत की यह टिप्पणी कि रामपाल हरियाणा में एक समानांतर सरकार चला रहा है, कानून का पालन करने वाले हर एक नागरिक को सोचने पर मजबूर करती है. एक व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए 50 हजार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती आश्चर्यजनक थी. अंत में इस पत्र ने लिखा है कि पुलिस के कार्य में रुकावट, कानून का उल्लंघन, अदालत के आदेश का पालन करने से इंकार और तो और सुरक्षा कर्मियों पर सशस्त्र हमले, क्या ये किसी संत या साधु के काम हो सकते हैं? बिल्कुल भी नहीं.
उर्दू दैनिक \'राष्ट्रीय सहारा\' ने महाराष्ट्र में शरद पवार की अवसरवादी सियासत पर अपने संपादकीय में लिखा है कि यदि सियासत केवल चालबाजी का नाम है तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पिछले दो महीने से जो सियासी खेल खेल रहे हैं, बिल्कुल ठीक और दुरुस्त है. अब तक सुनते और देखते आए थे कि युद्ध और मुहब्बत में सब कुछ जायज है, परंतु अब राजनीति में सब कुछ जायज और ठीक दिखाई दे रहा है. पवार ने अवसरवादिता के तमाम रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. शिवसेना के अध्यक्ष तो अभी उनके सामने स्कूली बच्चे नजर आ रहे हैं और पवार के बयान से घबराकर भाजपा के खेमे में जाने के लिए व्याकुल दिखाई पड़ रहे हैं. इस उठापटक और यू-टर्न में एक सोची-समझी योजना भी हो सकती है. इसमे कोई संदेह नहीं कि पवार अत्यधिक अनुभवी, मंझे और आजमाए हुए राजनेता हैं. वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
सियासी दाव-पेंच के माहिर होने के बावजूद उनका प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न साकार नहीं हो सका. वह नरसिंह राव के प्रधानमंत्रित्व काल के बाद अपने आपको इस पद का हकदार समझते थे. उन्होंने सोनिया गांधी के विदेशी नागरिक होने का मुद्दा उठाकर उनके प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने की राह में रोड़ा डाल दिया था और अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस से नाता तोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नींव डाली थी. परंतु पहले महाराष्ट्र और फिर केंद्र में वे कांग्रेस के साथ सत्ता के लाभ लेते रहे. वह अब भी यूपीए से अलग नहीं हुए हैं. उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना को सांप्रदायिक करार दिया था. परंतु चुनाव के बाद फिर दोनों को गले मिलने से रोकने के लिए भाजपा को बिन मांगे बाहर से समर्थन की पेशकश कर दी. बहाना यह था कि राज्य को अस्थिरता और दोबारा चुनाव से बचाना है. परंतु फिर एक महीने से कम समय में वह राज्य में मध्यावधि चुनावों की धमकी दे रहे हैं और कह रहे हैं कि फड़नवीस सरकार को मजबूत करना हमारी जिम्मेदारी नहीं है.
उर्दू दैनिक \'इंकलाब\' ने \'21वीं सदी में गुलामी\' शीषर्क के तहत अपने संपादकीय में लिखा है कि एक मानवाधिकार संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में अब भी मानव गुलामी अर्थात् मानवों को गुलाम (दास) बनाकर रखने का सिलसिला जारी है. यह अलग बात है कि गुलामी का ढंग बदल गया है. रिपोर्ट के मुताबिक इस समय सारी दुनिया में 3.6 करोड़ लोग गुलामों का जीवन जी रहे हैं जिनमें अधिक संख्या भारतीयों की है. रिपोर्ट में भारत में इंसानी गुलामों की संख्या 1.43 करोड़ बतलाई गई है.
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