अंधविश्वास की कोख से उपजते पाखंडी

Last Updated 21 Nov 2014 12:23:08 AM IST

धर्मभीरु जनता के अंधविश्वास का फायदा उठाकर बाबागीरी का कारोबार इस देश में किस ढंग से फल-फूल रहा है, इसका ताजा उदाहरण हरियाणा के हिसार के रामपाल प्रकरण में सामने आया है.


अंधविश्वास की कोख से उपजते पाखंडी

हिसार के सतलोक आश्रम में खुद को कबीरपंथी बताने का ढोंग करने वाले हत्या के आरोपी पाखंडी संत रामपाल ने कानून की पकड़ से बचने के लिए भक्तों एवं हथियारबंद समर्थकों को ढाल बना लिया था. हालांकि भक्तों की आंखें जब तक खुलीं, तब तक उन्हें रामपाल के हथियारबंद गुंडों ने बंधक बना लिया था और आश्रम से निकलने ही नहीं दे रहे थे. चौदह दिन तक चले रामपाल की गिरफ्तारी के इस हाई-वोल्टेज ड्रामा में कई रामपाल भक्तों की आंखों पर चढ़ा अंधभक्ति का चश्मा तब उतर गया, जब उन्होंने अपने स्वामी का यह कुरूप और ढोंगी चेहरा नजदीक से देखा. अब जबकि रामपाल गिरफ्तार हो चुका है, उसके आश्रम से बाहर आते जा रहे भक्तों के बयान उसके खल चरित्र का और भी कुरुप चेहरा स्पष्ट कर रहे हैं. आज की तारीख में रामपाल के भक्तों का अपने इस तथाकथित गुरु से मोहभंग हो चुका है. आश्रम के अंदर मौजूद सैकड़ों भक्तों ने रामपाल के हथियार बंद गुंडों द्वारा जबरन बंधक बनाने का आरोप भी लगाया है. चौदह दिनों की नौटंकी के बाद चार निरपराध लोगों की जान की कीमत पर खुद को संत बताने वाला यह पाखंडी अंतत: गिरफ्तार हो गया है.

दरअसल आश्रम के भूमि विवाद जैसे मामलों में हाईकोर्ट में पेश न होने एवं बार-बार कोर्ट की अवमानना के बाद हाईकोर्ट चंडीगढ़ ने पुलिस को आदेश दिया था कि जैसे भी हो, रामपाल को अदालत में पेश किया जाय. इसके लिए कोर्ट द्वारा पेश होने की तारीख भी तय की गयी थी, लेकिन हरियाणा पुलिस रामपाल को गिरफ्तार करने में चौदह दिनों तक नाकाम रही. लिहाजा, हाईकोर्ट ने हरियाणा के गृह सचिव एवं पुलिस महानिदेशक को फटकार लगाते हुए रामपाल को पुन: 21 नवम्बर तक हर हाल में पेश करने का आदेश दिया था. देखा जाए तो हाईकोर्ट के आदेश एवं निर्दोष मासूम बच्चों एवं महिलाओं को ढाल बनाकर छुपे रामपाल की गिरफ्तारी में हुई देरी की वजह से सबसे ज्यादा किरकिरी पुलिस को ही झेलनी पड़ी है. हालांकि इसमें शुरुआती स्तर पर ही पुलिस की भी कुछ कमियां रहीं हैं, जिसकी वजह से इस गिरफ्तारी में इतनी मुश्किल आयी. सच यह भी है कि जब पहली बार कोर्ट ने बाबा को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था, अगर उसी दौरान हरियाणा पुलिस ने मामले को हल्के में न लिया होता तो मामला शायद इतना आगे भी बढ़ता. कई दिनों तक तो पुलिस की लाचारी का सबब यह रहा कि वह समझ ही नहीं पा रही थी कि इस स्थिति से कैसे निपटा जाए?

यह अपने आप में बहुत ही आश्चर्यजनक लगता है कि एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए हजारों जवान तैनात किये गए हों, लेकिन की गिरफ्तारी में चौदह दिन का वक्त लग जाए. पुलिस की लाचारी की वजह समझने का प्रयास करें तो स्पष्ट होता है कि पुलिस और रामपाल के बीच रामपाल के तथाकथित भक्तों की वह भीड़ बाधा बन रही थी, जिसमें ज्यादातर मासूम बच्चे व महिलाएं शामिल थीं. कहीं न कहीं हरियाणा प्रशासन महज भावी स्थिति के आकलन के हिसाब से ही चल रहा था. बल प्रयोग करने में उन आम लोगों की सुरक्षा आड़े आ रही थी जिन्हें भक्त बताकर रामपाल के हथियारबंद बदमाशों द्वारा बंधक बना लिया गया था.

इस मामले में टीवी मीडिया की भूमिका भी थोड़ी निराशाजनक मानी जानी चाहिए. कायदे से ऐसी परिस्थिति में जब कानून और संवेदना के बीच प्रशासन की कार्रवाई भ्रम की स्थिति में हो, टीवी मीडिया को थोड़ा संयम बरतना चाहिए था लेकिन हिसार आश्रम के बाहर की स्थिति को टीवी मीडिया ने लभगभ राष्ट्रीय इवेंट बना दिया. इस मामले में पुलिस की बेबसी एवं लाचारी जैसे फुटेज प्रस्तुत किये गए. कहीं न कहीं यह स्थिति मीडिया की भूमिका पर भी सोचने को विवश करता है. सवाल है कि क्या मीडिया को पता नहीं था कि वहां पुलिस द्वारा समर्थकों पर की गयी कोई एक कारगुजारी उन हथियार बंद बाबा समर्थकों को हिंसक होने का अवसर दे सकती थी जिसके परिणाम स्वरूप वहां कई जानें जा सकती थीं. लेकिन नहीं, टीवी मीडिया मामले की अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्या करने में व्यस्त रहा.

इस पूरे प्रकरण के बाद यह सवाल पुन: खड़ा हुआ है कि भारत में ऐसे ढ़ोगी और स्वार्थ लोलुप संतो पर लगाम कैसे लगाई जाय जो संत होने की आड़ में सम्पति का पूरा कारोबार खड़ा कर लेते हैं एवं कानून का शिंकजा कसने के बाद अपने बचाव में समर्थकों को ढाल बना लेते हैं? ये तमाम सवाल आज बहुत ही प्रासंगिक हैं. कहीं न कहीं रामपाल जैसे मामले हमे यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि भारत की अंधविश्वासी और धर्मभीरु जनता आज भी ऐसे पाखंडी संतो के प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाई है. जनता को यह भी सोचना चाहिए था कि दुनिया को सुख और समृद्धि से भरपूर करने का दावा करने वाले संत रामपाल पर गिरफ्तारी की तलवार क्या लटकी कि उसने खुद को बीमार बताने का नाटक रच दिया.

करोंड़ों की सम्पत्ति, चार-चार बच्चे और कबीरपंथी संत- यह सुनने-पढ़ने में ही बहुत हास्यास्पद एवं रहस्यमय है पर बताते हैं कि खुद को कबीरपंथी कहने वाला चार-चार बच्चों वाला ढोंगी बाबा संत रामपाल करोंड़ो की सम्पति का मालिक बन बैठा है. ‘ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर’ वाली मानसिकता के धनी कबीर तो फक्कड़ थे लेकिन बाबा रामपाल के स्थार्थ उसे अपराध की दुनिया में धकेलते दिखते हैं. जागरूकता के इस मोर्चे पर अभी भारत बहुत पिछड़ा है. आस्था और अंधभक्ति के नाम पर जब तक यह पिछड़ापन कायम रहेगा, तब तक ऐसे बाबा प्रकट होकर समाज को मूर्ख बना कानून को धता बताते रहेंगे.

खैर, इस पूरे प्रकरण में प्रशासन की शुरु आती ढिलाई, टीवी मीडिया की संवेदनहीनता एवं जनता का अंधविश्वास, तीनो ही संत रामपाल के इस हाई-वोल्टेज ड्रामा की वजह हैं. आज बेशक रामपाल गिरफ्तार हो गया है लेकिन अभी ऐसे न जाने कितने रामपाल इस देश में हैं जो आम जनता को मूर्ख बनाकर अपने भोग-विलास और शोहरत का इंतजाम कर रहे हैं. सरकार को इन बाबाओं पर लगाम लगाने के सम्बन्ध में रणनीति के तहत पहल करनी चाहिए. एक विचारणीय पक्ष यह भी है कि चंद ठग बाबाओं की वजह से हमारी संत-परंपरा को ठेस पहुंचाये जाने का खतरा समाज में पसरता जा रहा है. खैर, इन ठग बाबाओं के बढ़ते वर्चस्व का कोई एक कारण नहीं है. इसकी जवाबदेही सामूहिक स्तर पर ही तय की जा सकती है. पूरे प्रकरण में सामूहिक दोष एवं कारक नजर आते हैं, जो रामपाल जैसे ढोंगियों को बढ़ावा देते हैं. सारी स्थितियों की सम्यक समीक्षा के साथ रामपाल और आसाराम जैसे तथाकथित संतो पर शिंकजा कसने का वक्त आ गया है.

शिवानंद द्विवेदी
लेखक


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