करियर और मातृत्व के बीच बढ़ता फासला
आजकल आईटी क्षेत्र से जुड़ी कुछ नामी-गिरामी कंपनियां अपने यहां महिला कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने पर काफी जोर दे रही हैं.
करियर और मातृत्व के बीच बढ़ता फासला |
इससे जुड़े आंकड़े भी बताते हैं कि भारत में ऐसी कंपनियों में कार्यशील महिलाओं की संख्या एक तिहाई को पार कर गई है. गौरतलब है कि तमाम आईटी कंपनियों में महिलाकर्मी पुरुषों के मुकाबले अपनी बेहतर परफॉरमेंस के साथ आगे आई हैं. इंडिया इंक का रुझान भी आजकल ज्यादा से ज्यादा महिला कर्मियों की भर्ती के प्रति है. इसकी मुख्य वजह भी साफ है क्योंकि पिछले एक दशक में तकनीकी क्षेत्र से जुड़ी महिलाएं अच्छी प्रोफेशनल्स बनकर उभरी हैं.
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू में छपे आंकड़े भी साफ करते हैं कि भारत की तीन चौथाई से भी अधिक महिलाएं अपने करियर के प्रति बहुत अधिक महत्वाकांक्षी पाई गई हैं. साथ ही वे करियर में खुद को ऊंचे ओहदे पर देखना चाहती हैं. परंतु विकसित देशों के साथ-साथ में भारत जैसे विकासशील देश में ऐसी महिलाओं का मातृत्व उनके करियर में बाधा बन रहा है. ऐसे मौके का लाभ उठाकर विश्व की बड़ी कंपनियां करियर की चाहत रखने वाली महिलाओं के सामने उनके भ्रूण को सुरक्षित (डिंब फीजिंग) रखकर उनके मातृत्व को कुछ समय के लिए टाल देने का विकल्प सामने रख रही हैं.
गौरतलब है कि अभी हाल ही में अमेरिका की दो प्रमुख कंपनियां फेसबुक और एप्पल इससे जुड़े मुद्दे पर सामने आई हैं. उन्होंने अपनी महिला कर्मचारियों के भ्रूण को सुरक्षित रखने और उनके मातृत्व को कुछ समय तक टालने के बदले उनको एक भारी भरकम राशि का ऑफर देकर यह पहल की है. कहना न होगा कि इस योजना से ये कंपनियां एक तीर से दो निशाने साधना चाहती हैं. एक तो यह कि इससे वे प्रोफेशनल्स महिलाएं ज्यादा आकषिर्त होंगी जो मातृत्व के मुकाबले करियर को महत्व देकर सफलता की सीढ़ियां चढ़ना चाहती हैं.
दूसरे ये कंपनियां इन महिला कर्मियों से अधिक समय तक काम लेकर अपने मुनाफे में इजाफा करेंगी. आईटी कंपनियों की इस लुभावनी योजना से इन महिला कर्मियों को कितना लाभ होगा, यह देखना तो अभी बाकी है. परंतु इन दोनों ही कंपनियों ने अपने तर्क में कहा है कि वे इस मातृत्व स्थगन योजना से अपनी महिला कर्मियों को सशक्त बनाना चाहती हैं ताकि वे अपने महत्वपूर्ण काम के साथ में अपने परिवार की अच्छी परवरिश कर सकें. परंतु साथ में उन्होंने यह भी कहा है कि वे तब तक अपने मातृत्व को स्थगित रखें जब तक कि वे कंपनी के ऊंचे ओहदे पर न पहुंच जाएं.
फेसबुक व एप्पल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब भारत में भी तेजी से अपने पैर पसार रही हैं. भारत में नौकरी की चाह रखने वाली महिलाओं का झुकाव भी अब तेजी से इन कंपनियों की ओर बढ़ा है. खास बात यह है कि आज अधिकांश कंपनियां भारतीय जीवन के बदलते सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल पर सीधी निगाह रखे हुए हैं. ऐसी तमाम विदेशी कंपनियों ने सर्वे करके पता लगाया है कि भारत की अस्सी फीसद से भी अधिक कार्यशील महिलाएं अति महत्वाकांक्षी हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि चीन की 65 फीसद तथा भारत की 75 फीसद से भी अधिक महिलाएं नौकरी में खुद को उच्च शिखर पर देखने की आकांक्षी हैं. इन्हीं तथ्यों के मद्देनजर ये कंपनियां भारत के इस सच को अच्छी तरह से जान गई हैं कि यहां भी विकसित देशों की तरह ही विलंब विवाह के चलते गर्भ धारण करने की उम्र लगातार बढ़ रही है.
यही वजह है कि यहां भी अब करियर की चाह के मुकाबले मातृत्व पिछड़ रहा है और ये कंपनियां महिलाओं की इस चाहत को लगातार प्रश्रय दे रही हैं. उसका कारण भी साफ है कि कोई भी कंपनी अपनी महिला प्रोफेशनल के प्रशिक्षण पर भारी भरकम निवेश करने के बाद उसे खोना नहीं चाहती. यह भी देखने में आया है कि कम उम्र में नौकरी शुरू करने के बाद स्त्रियां मातृत्व के चलते लंबे अवकाश पर चली जाती है. उसके बाद कंपनी में उनके वापस लौटने की कोई गारंटी नहीं रहती. महिला यदि बच्चे के जन्म के पांच-छह महीने बाद लौटती भी है तो वह अपने सहकर्मियों के मुकाबले योग्यता होने पर भी दौड़ में पिछड़ जाती है. यही कारण है कि ऐसी महिला प्रोफेशनल्स को भ्रूण सुरक्षित कराने और मातृत्व को देरी से शुरू करने का फॉमरूला काफी रास आ रहा है.
आज देश में जिस गति से तकनीकी संस्थान खुल रहे हैं उससे खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में आगामी दिनों में सेवा क्षेत्र का बड़ा विस्तार होगा. बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अभी से महिलाओं को नौकरी देने के लंबे-चौड़े वायदे करने शुरू कर दिए हैं. दूसरे, मोदी सरकार ने जिस तरह स्किल इंडिया का विस्तार करने का मन बनाया है उससे तो इन कंपनियों में महिला कर्मियों की तादाद और अधिक बढ़ेगी. सचाई यह है कि वर्तमान पीढ़ी ने ऐसे कालखंड में आंखें खोली हैं जहॉ वे जिंदगी के दर्द और तकलीफों से बहुत दूर हैं. इस पीढ़ी में करियर की चाह के सामने मातृत्व में समाहित सृजन की वेदना का दर्द अब दूर छिटक रहा है. यही वजह है कि इस पीढ़ी में थोड़ा-सा भी जैवकीय दर्द असहनीय होकर उन्हें जल्दी ही निराशा की अंधी गली की ओर ले जाता है जहां उन्हें आत्मघात के अलावा दूसरा रास्ता दिखाई ही नहीं देता.
लगता है कि अपने देश में भी करियर के मुकाबले मातृत्व सुख की वंचना महिलाओं में अब तेजी से पैर पसार रही है. कहना न होगा कि आज देश में एकल अथवा विवाहित जोड़ों के भ्रूण सुरक्षित रखने के सौ से भी ज्यादा क्लिनिक खुल चुके हैं. हैरत की बात है कि तमाम करियर उन्मुख महिलाएं आज अपनी जैवकीय उर्वरता को इन क्लिनिकों में संरक्षित कराने के लिए पहुंच रही हैं. परंतु करियर की चकाचौंध में यह पीढ़ी विलंब मातृत्व के खतरों से पूरी तरह अनजान है. सवाल पैदा होता है कि आखिर ये कंपनियां महिला कर्मियों को मातृत्व के निर्माण हेतु एक अच्छा माहौल देने के बजाय उनके मातृत्व को टालने के लिए क्यों उकसा रही हैं? चिकित्सा विशेषज्ञ साफ करते हैं कि 40-45 साल की उम्र में मातृत्व के खतरे बहुत हैं. साथ ही भ्रूण के संरक्षित रहने की संभावनाएं भी पचास फीसद ही आंकी गई हैं.
यह बात सही है कि आज महिला कर्मी अपने करियर और बच्चों के बीच अनेक दबावों का सामना करते हुए संतुलन बनाने का प्रयास कर रही है. परंतु भौतिक जिंदगी की बढ़ती जरूरतें और परिवार की सिकुड़न की स्थितियां बच्चों का बोझ सहने को नकार रही हैं. अवलोकन बताते हैं कि एकल परिवारों में पलने वाले बच्चे पालनाघरों अथवा डे-बोर्डिग स्कूलों में भेजे जाने को मजबूर हैं. ऐसी स्थिति में इन कंपनियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपनी महिला कर्मियों के मातृत्व स्थगन के बजाय उन्हें अनुकूल माहौल उपलब्ध कराएं.
साथ ही साथ यह महिलाओं का भी दायित्व बनता है कि वे संतति को जन्म देने और उनकी परवरिश करने के लिए कंपनियों से मिलने वाले भरपूर अवसर, अवकाश और उस धन का प्रयोग बच्चों के निर्माण पर लगाएं. करियर के नाम पर मातृत्व में विलंब जन्म लेने वाली संतति के अधिकारों पर कुठाराघात है. इससे आगामी समय में अनेक सामाजिक व पारिवारिक विसंगतियों के बढ़ने की आशंकाएं प्रबल होंगी. इसलिए महिला कर्मियों के डिंब फ्रीजिंग से जुड़े इस मुद्दे पर महिलाओं के हक में बहस तेज करने की महती आवश्यकता है.
(लेखक समाजशास्त्री हैं. आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
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