कैसे कसी जाए काले धन पर नकेल!
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद भारत सरकार ने विदेशों में काला धन रखने वाले 627 लोगों की सूची उसे सौंप दी है.
कैसे कसी जाए काले धन पर नकेल! |
अदालत ने न्यायाधीश एमबीशाह की अध्यक्षता में काले धन की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) को सूची सौंप इस पर शीघ्र काम करने को कहा है. इससे पहले उच्चतम न्यायालय में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने जो नाम बताए थे वे तीनों दोयम दर्जे के उद्योगपति और व्यापारी हैं. किसी बड़े कॉरपोरेट घराने, राजनेता और नौकरशाह का नाम इस सूची में नहीं था. वर्ष 2011 से केंद्र के पास विदेशी बैंकों में काला धन रखने वाले 800 खाताधारकों के नाम हैं, लेकिन तीन वर्ष तक जांच के बाद उसने महज तीन लोगों के नाम जाहिर किए. इस गति से तो सारे नाम सार्वजनिक होने में कई दशक लग जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मोदी सरकार ने एसआईटी तो गठित कर दी, लेकिन जांच अभी भी कछुआ चाल से चल रही है. आशा है कि अब मामला गति पकड़ेगा.
विदेशी बैंकों में जिन लोगों का काला धन जमा है वे कितने प्रभावशाली हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश की सर्वोच्च अदालत के आदेश के बावजूद सरकार सारे नाम बताने को राजी नहीं थी. ये लोग बड़ी पार्टयिों और नेताओं को नियमित चंदा देते हैं. अभी जिन तीन नामों को बताया गया है उन्होंने भी भाजपा और कांग्रेस को करोड़ों रुपए का चंदा दिया है. दो वर्ष पहले आम आदमी पार्टी ने एक शीर्ष औद्योगिक समूह के प्रवर्तकों के काले खातों का खुलासा किया था. पहले कांग्रेस और अब मोदी सरकार ने इस आरोप का न तो खंडन किया है और न ही पुष्टि की है. इसीलिए तीन नाम उजागर करने के सरकार के कदम को संदेह की दृष्टि से देखा गया.
इस मामले में उद्योगपतियों के चोटी के तीन संगठनों की प्रतिक्रिया भी चौंकाती है. हमेशा पारदर्शिता की वकालत करने वाले इन संगठनों ने काले धन के आरोपियों के नाम सार्वजनिक करने का विरोध किया है. एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने भी उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह नामों का खुलासा करने संबंधी आदेश को वापस ले ले. उन्होंने तर्क दिया था कि इससे गोपनीयता का उल्लंघन होगा. जिन देशों में भारतीय धन्नासेठों, राजनेताओं और नौकरशाहों ने अपनी काली कमाई जमा कर रखी है उनमें से अधिकांश के साथ डबल टैक्सेशन अवाइडेंस ट्रीटी (डीटीएए) है. इस समझौते के अनुसार केवल उन लोगों का नाम सार्वजनिक किया जा सकता है जिनके खिलाफ जांच के बाद सरकार अदालत में मुकदमा दर्ज करेगी. जांच के नाम पर सरकार वर्षो से नाम दबाए बैठी है. जांच कब तक चलेगी, वह यह बताने को भी वह राजी नहीं है. जांच निष्पक्ष होगी, इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है.
विदेशों में जमा काले धन के खिलाफ वर्ष 2009 से सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा चल रहा है. राम जेठमलानी और उनके सहयोगी यह केस लड़ रहे हैं. इस बीच वर्ष 2011 में जर्मनी और फ्रांस ने हमारी सरकार को उन 700 भारतीय नागरिकों की सूची सौंपी थी जिनका काला धन स्विस बैंक में जमा है. पिछले कुछ बरस में देश और विदेश की गुप्तचर एजेंसियों से प्राप्त सूचनाओं से पता चलता है कि काले पैसे का आतंकवादी गतिविधियों में भी जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है. इसी कारण अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोपीय यूनियन के देशों ने इसके खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है. वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) ने काले धन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक प्रस्ताव पारित किया जिस पर भारत सहित अधिकांश देशों ने हस्ताक्षर कर रखे हैं. इस प्रस्ताव में काले धन के खाताधारकों का नाम उजागर करने पर कोई पाबंदी नहीं है.
अमेरिका और यूरोपीय यूनियन ने काले धन के गढ़ स्विट्जरलैंड और उन अन्य देशों पर दबाव बना कर चोरी छिपे पैसा उनके बैंकों में जमा कराने वाले अपने नागरिकों की सूची वसूल ली है. अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की है. हमारी सरकार में काले धन के विरुद्ध लड़ने की इच्छाशक्ति नहीं है इसीलिए तमाम बहाने बनाए जाते हैं. डीटीएए की आड़ में अपराधियों का नाम छिपाया जाता है. एनडीए का तर्क है कि कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने विभिन्न देशों से डीटीएए कर उसके हाथ बांध दिए हैं. जवाब में कांग्रेस का कहना है कि 1999 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी जिसने 14 देशों के साथ डीटीएए पर हस्ताक्षर किए थे. इन सभी समझौतों में भी गोपनीयता का उपबंध है. यदि कांग्रेस सरकार ने गलती की थी तो वाजपेयी सरकार ने उसे क्यों दोहराया?
यह बात तो अब आम आदमी की भी समझ में आ गई है कि काला धन रखने वालों को कानून के कटघरे में खड़ा करना बहुत कठिन है. अनुमान है कि विदेशी बैंकों में भारतीय नागरिकों के लगभग 20 खरब डॉलर (1200 खरब रु पए) जमा हैं. यह धन देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक है. विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार भारत में हर वर्ष 600 खरब का काला धन पैदा होता है जिसका दस फीसद हिस्सा विदेशों में जमा किया जाता है. काली कमाई के कारोबारी आयकर नहीं देते जिससे सरकार को हर साल छह खरब रुपए का नुकसान होता है. यह रकम सरकार द्वारा अपने बजट घाटे की भरपाई के लिए बाजार से उठाए जाने वाले कर्जे से छह गुना अधिक है. इन आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है कि काला धन हमारी अर्थव्यवस्था को कैसे खोखला कर रहा है.
देश में काले धन पर ज्यादा हल्ला मचने पर मनमोहन सिंह की सरकार ने वर्ष 2012 में संसद में एक श्वेत पत्र रखा था. यह लचर श्वेत पत्र यूपीए सरकार की बदनीयती का प्रमाण था. भाजपा सहित सभी विपक्षी दलों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई थी. सरकारी आंकड़ों पर संदेह व्यक्त किया गया था. भाजपा ने खम ठोक कर दावा किया था कि अकेले स्विस बैंकों में 250 अरब डॉलर (150 खरब रुपए) जमा हैं. इस दावे में दम नजर आता है. इस वर्ष सितम्बर माह तक स्विस बैंकों से सात अरब रुपए का सोना आयात हो चुका है. अकेले सितम्बर माह में वहां से 1.5 अरब रुपए का सोना आया है.
जानकारों का मानना है कि जिन लोगों का काला पैसा स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा है वे अब स्वर्ण आयात की आड़ में उसे निकाल रहे हैं. तत्काल कार्रवाई न कर सरकार अपराधियों को बचाव का मौका दे रही है. यह बात तो दावे के साथ कही जा सकती है कि जो देश और जो बैंक निशाने पर हैं, वहां से अधिकांश काला धन इधर-उधर कर दिया गया है. अब जांच में ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगने वाला है. काला धन धारकों के प्रति सरकार के नरम रवैये का प्रमाण वर्ष 1951 से अब तक आई छह आम माफी योजनाएं हैं. इन योजनाओं के तहत कोई भी व्यक्ति मामूली कर चुका कर अपना काला पैसा कानूनन सफेद कर सकता है. मौजूदा अपराधियों को भी इसी तरह की छूट दिए जाने की वकालत जोर-शोर से की जा रही है.
यह भी सच है कि विदेशों में जितना काला धन जमा है उससे लगभग दस गुना ज्यादा काला पैसा देश में है. इसीलिए काले धन के खिलाफ दोहरी जंग लड़ी जानी जरूरी है. मौजूदा हालात में यह काम बहुत कठिन है. सरकार अपने चहेतों को बचाने का हर संभव प्रयास करेगी. हां, जन आक्रोश को टालने के लिए कुछ मामूली कदम जरूर उठाए जाएंगे, लेकिन सरकार को समझना चाहिए कि जनता को बहलाना अब पहले की तरह आसान नहीं रह गया है.
(लेखक वरिष्ठ टिप्पणीकार है. आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
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