हुदहुद तूफान से सफलतापूर्वक बचाव
इस सप्ताह उर्दू प्रेस पर हुदहुद तूफान से बचाव की सफल तैयारियां, महाराष्ट्र व हरियाणा विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद बनते-बिगड़ते राजनीतिक समीकरण सबसे ज्यादा छाए रहे.
हुदहुद तूफान (फाइल फोटो) |
इनके अलावा लव जिहाद का सच, चीन को भारत का दो टूक जवाब, महंगाई में कमी का स्वागत, प्रधानमंत्री द्वारा ‘श्रमेव जयते’ योजना का शुभारंभ, आईएसआईएस के आतंकियों का इराक व सीरिया में उत्पात, पाकिस्तान में आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई और चीन में खतरनाक बीमारी ‘इबोला’ की दवा खोजने का दावा जैसे मुद्दे ही छाए रहे और अधिकांश प्रमुख उर्दू अखबारों ने इन विषयों पर संपादकीय भी प्रकाशित किए हैं.
उर्दू दैनिक ‘मुंसिफ’ ने ‘हकीकत सामने आई’ शीषर्क के तहत अपने संपादकीय में लिखा है कि जिस लव जिहाद के नाम पर उत्तर प्रदेश और देश के अन्य क्षेत्रों में भाजपा ने मुसलमानों के खिलाफ घृणा फैलाते हुए अपनी सियासी दुकान चमकाने की कोशिश की थी, उसकी हकीकत सामने आ गई. जिस लड़की से बलपूर्वक बयान दिलाया गया था कि उसे जबरदस्ती एक मुसलमान लड़का भगा ले गया और उसका धर्म बदलवाने की कोशिश की, अब उसी लड़की ने पुलिस के सामने सचाई बयान कर दी जिसके बाद भाजपाई नेता बगलें झांकने लगे. लड़की ने यहां तक कहा कि खुद उसके पिता ने उस पर जान से मार देने की धमकी देकर दबाव डाला था और अब भी उसे अपने पिता से जान का खतरा है.
उर्दू दैनिक ‘‘राष्ट्रीय सहारा’’ ने हुदहुद तूफान का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए मोदी सरकार व प्रभावित राज्य सरकारों की प्रशंसा करते हुए अपने संपादकीय में लिखा है कि हुदहुद तूफान में आठ लोगों की जानें गई लेकिन लाखों लोगों को बचा भी लिया गया क्योंकि लोगों को जागरूक करने और उन्हें बचाने में केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के साथ-साथ मीडिया ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आंध्र प्रदेश की सरकार 15 लाख से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में कामयाब रही. इसी तरह ओडिशा सरकार ने भी लोगों को बचाने में सहायता की. यदि राज्य सरकारें लोगों को बचाने में देरी कर देती और केंद्र सरकार का उन्हें सहयोग प्राप्त न होता तो न जाने स्थिति क्या होती.
सरकारों की तैयारियों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहां आंध्र प्रदेश की सरकार ने हुदहुद से प्रभावित लोगों के लिए 370 राहत कैंप बनाए थे, वहीं एनडीआरएफ की 42 टीमों के 1800 कर्मचारी और जवान भी तैनात थे. राज्य सरकारें यदि कुछ लोगों को बचाने में नाकाम रहीं तो उसके विभिन्न कारणों में से एक कारण यह भी रहा कि कई लोग भावनात्मक लगाव की वजह से अपने घरों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए. अंत में पत्र ने लिखा है कि यद्यपि हुदहुद तूफान पिछले वष्रो में तूफानों से कमजोर था लेकिन इसमें भी इतनी तेजी थी कि समय पर तैयारियां न की जाती तो काफी नुकसान हो सकता था. केंद्र और राज्य सरकारों ने जिस तरह तूफान से लोगों को बचाने की तैयारियां कीं, उसी तरह अब जरूरत इस बात की है कि लोगों के पुनर्वास के लिए भी ठोस कदम उठाए जाएं क्योंकि तूफान अपने साथ मौत का भय लाता है और फिर विनाश के निशान छोड़ जाता है.
उर्दू दैनिक ‘इंकलाब’ ने देश में अन्न की बहुलता और पोषण की कमी की समस्या पर अपने संपादकीय में लिखा है कि उस समाज को आखिर क्या नाम दिया जाए जिसमें वह व्यक्ति जो हल जोतता है, बीज बोता है, फसल उगाता है और अन्न पैदा करता है वह कर्ज के बोझ से इतना परेशान हो जाता है कि एक दिन आत्महत्या कर लेता है. अगर अन्न की पैदावार में किसान की मेहनत शामिल है और अन्न देश के हर एक नागरिक की आवश्यकता है तो उस बेचारे को समृद्ध होना चाहिए. परंतु पिछले कुछ वष्रो के दौरान बड़ी तादाद में किसानों की आत्महत्या यह साबित करती है कि यहां कोई ऐसी गड़बड़ है जो किसान को किसान नहीं रहने देती, परेशान कर देती है. किसानों की ही आत्महत्या की दुखद घटनाओं ने देश की नीति को अपमानजनक बदनामी से दो-चार किया है. हम सदैव इस बात पर गौरवान्वित रहे कि खाद्यान्न के बारे में हम आत्मनिर्भर हैं और इस सिलसिले में हमें कहीं और देखने की जरूरत नहीं है, लेकिन हाल ये है कि हमारे देश में कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या 19 करोड़ से ज्यादा है.
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