द्रविड़ राजनीति के अस्तित्व का सवाल

Last Updated 01 Oct 2014 12:34:38 AM IST

अपने देश के लोग भी गजब हैं. एक दिन भ्रष्टाचार के आरोपियों को बड़ी बेरहमी से सत्ता से बाहर कर देते हैं.


द्रविड़ राजनीति के अस्तित्व का सवाल

दूसरे दिन भ्रष्टाचार साबित होने पर सजा पाए नेता के लिए जान देने लगते हैं. इनमें से किस घटना को नियम माना जाय और किसे नियम का अपवाद, समझना कठिन है. अभी चार महीने ही तो हुआ है जब देश के मतदाताओं ने भ्रष्टाचार के खिलाफ इतना भारी जनादेश दिया था. पर तमिलनाडु में पिछले दो दिनों में सोलह लोगों ने आत्महत्या कर ली है. कुछ ने आत्मदाह किया तो कुछ ने फांसी लगा ली. आत्मदाह करने वालों में दो बारहवीं के छात्र हैं. क्यों गई ये मासूम जानें? किसके लिए? राज्य की मुख्यमंत्री जयललिता के लिए. जयललिता जेल में इसलिए नहीं हैं कि वे आम जन के लिए कोई आंदोलन कर रही थीं. वे जेल में इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने गरीब जनता का पैसा लूटा है.

दक्षिण के राज्यों में नेताओं, खासतौर से फिल्म स्टार से नेता बनने वालों के प्रति ऐसी दीवानगी समाजशास्त्रियों के लिए शोध का विषय है. दक्षिण में जो हैसियत एमजीआर, करुणानिधि, जयललिता, एनटीआर और रजनीकांत की है, वह दिलीप कुमार, देवानंद, राज कपूर या अमिताभ बच्चन की उत्तर भारत में कभी नहीं बन पाई. फिल्मी सितारे से नेता बनने वालों की लोकप्रियता तो एक बार समझ में आती है. लेकिन दीवानगी की यह हद कि उसे चोरी की सजा मिले तो भी लोग उसके लिए जान देने को तैयार हों, समझ के परे है. सोमवार को तमिलनाडु में ओ पनीरसेल्वम के नेतृत्व में एक नया मंत्रिमंडल बना. मुख्यमंत्री सहित सारे मंत्री शपथ लेते समय रो रहे थे. मानो प्रदेश पर कोई आपदा आई हो जिसका वे मातम मना रहे हों. ऐसे दृश्य सामंतशाही युग की याद दिलाते हैं.
जयललिता का जेल जाना राजनीति में शुचिता की उम्मीद रखने वालों और इसके लिए संघर्ष करने वालों के लिए खुशखबरी है. पहली बार कोई मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में जेल गया है. यह देश में कानून के राज के प्रति आस्था को दृढ़ करने वाली घटना है. जिस देश में नेता अपने को कानून से ऊपर समझते हों, जहां रसूख वालों की जरूरत के हिसाब से कानून बदल दिए जाते हों, वहां एक ताकतवर मुख्यमंत्री का अदालत के सामने एक सामान्य अपराधी की तरह खड़ा होना स्वागत योग्य है.

इस घटना ने तमिलनाडु की राजनीति को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया है जहां से आगे का रास्ता किसी को पता नहीं है. राजनीति बड़ी बेरहम होती है, वह एक के पराभव में दूसरे के उन्नयन का मार्ग खोजती है. इसलिए अन्नाद्रमुक के खेमे में मातम है, तो द्रमुक नेताओं और कार्यकर्ताओं के कानों में शहनाई की आवाज सुनाई दे रही है. बिखराव और विघटन की ओर बढ़ रही द्रमुक को अपने पुनरु त्थान का मार्ग दिख रहा है. लेकिन राजनीति में दो और दो चार हों, ऐसा जरूरी नहीं होता. जयललिता को अगर उच्च न्यायालय से राहत मिल जाती है तो द्रमुक नेताओं की यह खुशी क्षणजीवी भी हो सकती है. सजा पर रोक भले न लगे लेकिन उन्हें जमानत भी मिल जाती है तो परिस्थिति एकदम बदल सकती है. क्योंकि तमिलनाडु के नए मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम आधुनिक युग के भरत हैं. वे खड़ाऊं रखकर ही राज चलाएंगे. बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि जयललिता चलवाएंगी. रामायण के युग में तो अयोध्या से निकलने के बाद राम ने पता नहीं किया कि वहां क्या हो रहा है. यह आधुनिक संचार का युग है. यहां लालू प्रसाद यादव जेल से राबड़ी देवी का राज चला लेते हैं. यों भी पनीरसेल्वम पहले भी ऐसा कर चुके हैं.

तमिलनाडु की राजनीति लगभग पांच दशक से द्रविड़ पार्टियों की गिरफ्त में है. पेरियार ने 1944 में द्रविड़ कड़गम शुरू किया तो यह तर्कवादियों का जाति व्यवस्था के खिलाफ एक आंदोलन था. पार्टी के आंदोलन के सिद्धांत तो समय और सत्ता के साथ पीछे छूट गए. जिस ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन से पार्टी का जन्म हुआ, उसके एक धड़े की सर्वोच्च नेता जयललिता खुद तमिल ब्राह्मण हैं. दूसरे धड़े के नेता करुणानिधि ने द्रमुक को परिवार की संपत्ति बना दिया है. परिवार के झगड़े बड़ा रूप लेकर पार्टी में आ रहे हैं. पार्टी पर करु णानिधि की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है क्योंकि अपने परिवार पर उनकी पकड़ पहले ही ढीली पड़ चुकी है. तमिलनाडु की राजनीति की दिशा जयललिता की दशा से तय होगी और जयललिता की दशा अदालत के फैसले से. व्यक्ति आधारित पार्टियों की तरह अन्नाद्रमुक में भी दूसरी कतार का नेतृत्व नहीं है. अपने नेता से बात करते समय जिनकी नजर उसके पैरों से ऊपर उठे ही नहीं, वे और कुछ भी हो सकते हैं, नेता नहीं.

सवाल है कि क्या जयललिता की वापसी होगी? तीन स्थितियां हैं. एक यह कि जयललिता की सजा पर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से रोक लग जाए. ऐसी हालत में उनकी विधानसभा सदस्यता और मुख्यमंत्री पद दोनों बहाल हो जाएंगे. दूसरी स्थिति यह होगी कि सजा पर रोक भले न लगे लेकिन जमानत मिल जाए. तीसरी स्थिति यह कि सजा बहाल रहे और वे जेल में ही रहें. पहली स्थिति जयललिता को जीवनदान देने वाली होगी. दूसरा स्थिति में वे रिमोट से सरकार चला सकेंगी और पार्टी के लिए 2016 के विधानसभा चुनाव में प्रचार कर सकेंगी. तीसरी स्थिति उनके राजनीतिक भविष्य को अंधेरे में धकेल देगी. 2001 में जब उन्हें मुख्यमंत्री पद छोना पड़ा था तो वे जेल नहीं गई थीं. उस समय उनकी उम्र करीब 53 साल थी. अब वे 66 साल की हैं और दस साल बाद जब वे चुनाव मैदान में उतरेंगी तो 76 साल की होंगी. इसलिए अदालत से राहत नहीं मिली तो अन्नाद्रमुक को जयललिता के बिना रहने की आदत डालनी होगी.

तमिलनाडु के मौजूदा राजनीतिक हालात भाजपा के लिए बिन मांगी मुराद की तरह उपस्थित हुए हैं. राज्य में पार्टी अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है. छोटे दलों से उसका गठबंधन इस खबर से उत्साहित है. पिछले कुछ समय से भाजपा तमिल फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत को पार्टी में लाने का प्रयास कर रही है. रजनीकांत ने अब तक हामी नहीं भरी है लेकिन उन्होंने इनकार भी नहीं किया है. तमिलनाडु की राजनीति पर भारत-श्रीलंका के संबंधों का बड़ा असर रहता है. राज्य के मछुआरों की परेशानी बड़ा मुद्दा है. केंद्र की भाजपा सरकार इसी के मद्देनजर श्रीलंका के साथ समुद्री नीति बनाने की तैयारी कर रही है. फिल्म अभिनेता विजयकांत की पार्टी डीएमडीके इस समय विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल है. लोकसभा चुनाव में उसका भाजपा से गठबंधन था. बदली परिस्थितियों में विजयकांत, रामदॉस की पीएमके और वाइको की एमडीएमके को भी नई संभावनाएं नजर आ रही हैं. विजयकांत विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं.

करुणानिधि पहले से ही कमजोर हैं. जयललिता अदालत के फैसले से कमजोर होंगी. लेकिन इस समय राज्य में ऐसी कोई राजनीतिक शक्ति नहीं जो इन दोनों द्रविड़ पार्टियों की कमजोरी का फौरन फायदा उठाने की हालत में हो. लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव तक राज्य में राजनीतिक शक्तियों का नए सिरे से ध्रुवीकरण होना तय-सा लगता है.
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)

प्रदीप सिंह
लेखक


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