सही विकास का मॉडल नहीं बन सका पंजाब

Last Updated 01 Oct 2014 12:29:33 AM IST

पंजाब की व्यापक पहचान भारत के समृद्ध राज्य के रूप में है जहां पिछड़े राज्यों से बहुत से मजदूर रोजी-रोटी के लिए आते हैं.


सही विकास का मॉडल नहीं बन सका पंजाब

पंजाब हरित क्रान्ति का अग्रणी राज्य माना जाता है जो कृषि उत्पादन में सबसे आगे है. पंजाब का देश के भौगोलिक क्षेत्र में 1.53 प्रतिशत  व जनसंख्या में 2.4 प्रतिशत हिस्सा है, पर यहां देश के कुल गेंहू उत्पादन का 20 फीसद पैदा होता है. चावल का फीसद 11 है और कपास के दस. पंजाब में आय अधिक है व विदेशों में बसे पंजाबी समुदाय से यहां काफी मुद्रा भी प्राप्त होती है. मानवीय विकास सूचकांक में भी इसे भारत के अग्रणी राज्यों में पांचवा स्थान प्राप्त है.

यह तथ्य अपनी जगह हैं, लेकिन अन्य अध्ययन बताते हैं कि पंजाब के अधिसंख्य छोटे किसान बुरी तरह कर्जग्रस्त हैं और उनमें से अनेक खेती-किसानी छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं. हजारों किसान पिछले कुछ सालों में आत्महत्या कर चुके हैं. भूमिहीन खेत मजदूरों की स्थिति और भी चिंताजनक है. अनुमान है कि यहां 2000 से 2014 के बीच 15000 से अधिक किसान व खेत-मजदूर कर्ज में डूबे होने के कारण आत्महत्या कर चुके हैं. अनेक किसानों व खेत-मजदूरों का कर्ज उस स्थिति में पंहुच चुका है कि वे अपनी आय के आधार पर इसे चुकाने की स्थिति में नहीं है जबकि ब्याज है कि बढ़ता जाता है.

पंजाब में अपनाई गई कृषि तकनीकों के कारण जिस प्राचीन कृषि सभ्यता की धरती में हजारों वर्ष से खेती बिना किसी प्रतिकूल असर के हो रही थी, उसमें मात्र 50 वर्षों की हरित क्रान्ति के दौर में मिट्टी व पानी का गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है. दो सबसे अधिक प्रभावित जिलों बठिंडा व संगरूर में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2000 और 2008 के बीच 1757 किसानों ने आत्महत्या की. इनमें से 1288 किसानों ने मुख्य रूप से कर्जग्रस्त होने के कारण आत्महत्या की जबकि 469 ने अन्य कारणों से.

इन किसानों की स्थिति के बारे में अध्ययन में पाया गया गया कि उनके पास औसतन तीन एकड़ भूमि थी, उन पर औसतन 1.15 लाख रुपए का कर्ज था जबकि औसत आय 58000 रुपए थी. वर्ष 1997-2003 के बीच कपास की उत्पादकता में महत्वपूर्ण कमी आई. जल-स्तर नीचे जाने से बोरवेल खोदने में अधिक खर्च करना पड़ा. शादी-ब्याह जैसे सामाजिक खर्च भी बढ़ गए. इन सब कारणों से आर्थिक तनाव और तीव्र हो गए जिससे आत्महत्याओं में वृद्धि हुई. (यह दोनों अध्ययन पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने किए.)

आत्महत्या प्रभावित परिवारों की 136 महिलाओं से बातचीत के आधार पर चर्चित पुस्तक लिखने वाली लेखिका रंजना पाणी ने बताया है कि इनमें से 70 प्रतिशत किसानों व खेत मजदूरों ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या की. इस अध्ययन में 79 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि कर्ज से जुड़ा दबाव आत्महत्या का मुख्य कारण था, जबकि 48 प्रतिशत के कहा कि आढ़तियों व बैंक के एजेंटों द्वारा कर्ज वापसी के लिए तरह-तरह से परेशान करना आत्महत्या का एक कारण था.

14 प्रतिशत ने कहा कि आढ़तियों द्वारा फसल का भुगतान न करना आत्महत्या का कारण था. इस अध्ययन से पता चलता है कि किसान या खेत मजदूर की आत्महत्या के बाद उनके परिवार की व विशेषकर महिलाओं की समस्याएं बहुत बढ़ जाती हैं. अनेक किसान परिवारों की कृषि भूमि कम हो गई है या वे भूमिहीन हो गए हैं. उन्हें अपनी भूमि बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा.

पंजाब राज्य विज्ञान व तकनीकी परिषद ने पंजाब की पर्यावरण रिपोर्ट में बताया है कि खेती-किसानी का माहौल खत्म हो रहा है. इस कारण आरंभिक वर्षों में यहां के किसानों ने जो समृद्धि प्राप्त की, उसका बहुत तेजी से हृास हो रहा है. यह रिपोर्ट कहती है, हरित क्रान्ति की तकनीक ने राज्य के पर्यावरण पर बहुत दबाव उत्पन्न किया है, जिससे भू-जल स्तर गिर रहा है और कृषि रसायनों के कारण मिट्टी में प्रदूषण बढ़ रहा है.

पंजाब में 1970-71 से 2005-06 के बीच रासायनिक खाद की खपत 8 गुणा बढ़ गई (213 हजार टन से 1694 हजार टन). भारत में कुल कीटनाशकों की खपत में 17 प्रतिशत का उपयोग पंजाब में होता है. रासायनिक खाद, कीटनाशक, खरपतवार नाशक दवाओं आदि के अधिक उपयोग का बहुत प्रतिकूल असर मिट्टी की गुणवत्ता, उसमें मौजूद केंचुओं व सूक्ष्म जीवाणुओं व उसके उपजाऊपन पर पड़ता है. अधिक व भारी कृषि मशीनों का प्रतिकूल असर भी मिट्टी के उपजाऊपन व स्थिरता पर पड़ता है. नाइट्रेट व फास्फेट के ऊपरी जल-स्रोतों व भूजल स्रोतों में पहुंचने से जल-प्रदूषण भी बढ़ रहा है.

भू-जल व नदियों दोनों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है व विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार इस बढ़ते जल-प्रदूषण के साथ त्वचा, पेट, आंखों की समस्याओं के साथ कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां भी जुड़ी हैं. अमृतसर का महल गांव इस कारण चर्चा में था, वहां जल प्रदूषण को जन्म के समय की विकृतियों की वजह भी माना जा रहा है. भू-जल में यूरेनियम के समाचार मिलने पर विभिन्न क्षेत्रों के ट्यूबवेल के पानी के नमूनों की जांच की गई तो 1642 में से 1142 में यूरेनियम की उपस्थिति का टेस्ट पाजिटिव रहा. बठिंडा में यह स्थिति अधिक चिंताजनक पाई गई. विशेष तौर पर कैंसर के लिए चर्चित कुछ क्षेत्रों में कैंसर की दर आश्चर्यजनक हद तक बढ़ रही है.

बठिंडा व मालवा क्षेत्र से बीकानेर जाने वाली एक ट्रेन को लोग कैंसर एक्सप्रेस कहते हैं क्योंकि इसमें बीकानेर के एक अस्पताल में इलाज के लिए जाने वाले कैंसर के मरीजों की संख्या बहुत अधिक होती है. चंडीगढ़ स्थित पीजीआई, बीएआरसी व अन्य संस्थानों के अध्ययनों से पता चला है कि मालवा के अनेक क्षेत्रों में जल कीटनाशक, हैवी मैटल, फ्लोराइड से अधिक प्रभावित हैं. यह कैंसर व अन्य बीमारियों का बड़ा कारण हो सकता है. जन्म के समय की विकृतियां भी इसके कारण उत्पन्न हो सकती हैं.

अमृतसर में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय का एक अध्ययन बताता है कि पंजाब के 70 प्रतिशत युवक शराब या नशीली दवाओं का सेवन करते हैं. इस पर बहस हो सकती है, विभिन्न स्थानों की स्थिति कुछ भिन्न हो सकती है, पर इसमें संदेह नहीं कि हाल के समय में तरह-तरह के नशे की समस्या तेजी से बढ़ी है. प्रति व्यक्ति शराब की खपत पंजाब में सबसे अधिक बताई जाती है. 2009-10 में पंजाब में 29 करोड़ बोतल शराब की खपत हुई. अवैध शराब व बाहर से मंगाई गई शराब इससे अलग है.

गहराते दुख-दर्द के विभिन्न पक्ष जैसे आर्थिक संकट, कर्ज, आत्महत्या, नशा, स्वास्थ्य समस्याएं, महिलाओं की बढ़ती समस्याएं, उनके विरुद्ध हिंसा कहीं न कहीं आपस में जुड़े हैं. किस तरह के बदलाव व तथाकथित विकास की राह अपनाने के कारण यह सब गंभीर समस्याएं उत्पन्न हुई, उसे पहचानना जरूरी है ताकि इन समस्याओं को ही नहीं, इसके कारणों को भी समग्र रूप से दूर किया जा सके.

भारत डोगरा
लेखक


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