मेक इन इंडिया से जगती उम्मीद

Last Updated 24 Sep 2014 12:25:50 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 25 सितम्बर को ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रहे हैं जिसमें वैश्विक व घरेलू कंपनियों के करीब एक हजार प्रमुख हिस्सा लेंगे.


मेक इन इंडिया से जगती उम्मीद

इस मुहिम का मकसद देश को वैश्विक विनिर्माण हब बनाना है. इसका उद्देश्य देश में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजित करने के अलावा व्यापार तथा आर्थिक वृद्धि को गति देना है. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मोदी ने ‘कम, मेक इन इंडिया’ का नारा देते हुए दुनिया भर के उद्योगपतियों को भारत में निवेश का निमंतण्रदिया था और भारत को ग्लोबल स्तर पर मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाकर देश में रोजगार बढ़ाने और विभिन्न क्षेत्रों नई तकनीक लाने की बात कही थी. उन्होंने उद्योगों और औद्योगिक हुनर रखने वाले युवकों का भी आह्वान किया कि वे ऐसे उत्पाद तैयार करें ताकि दुनिया भर में ‘मेड इन इंडिया’ का नाम स्थापित हो.

बहरहाल, जोरदार ढंग शुरू की गई ‘जन-धन योजना’ की तरह ही ‘मेक इन इंडिया’ कैंपेन को भी मोदी स्टाइल में पूरे जलवे के साथ लांच करने की तैयारी है. यही वजह है कि मेक इन इंडिया को ज्यादा-से-ज्यादा सफल बनाने के लिए यह अभियान एक साथ मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरू समेत विभिन्न राज्यों की राजधानी में शुरू होगा. दुनिया भर के निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए इस अभियान को उन देशों में भी शुरू किया जाएगा जिनका राष्ट्रीय मानक समय भारत से मिलता है. विदेशी निवेशकों को बताया जाएगा कि भारत में ई-कॉमर्स सहित विभिन्न क्षेत्रों में कारोबार शुरू करने के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस और इनिबल्ट पेमेंट गेटवे जैसी सुविधाएं दी जाएंगी. इसके लिए औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) ने आठ सदस्यों का एक्सपर्ट पैनल बनाया है जो निवेशकों की मदद कर उनकी शिकायतें दूर करने का प्रयास करेंगे.

प्रधानमंत्री के ‘मेक इन इंडिया’ विजन को साकार करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने घरेलू कैपिटल गुड्स क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 930 करोड़ रु पये की योजना को मंजूरी दी है. केंद्र सरकार इसके लिए 581.22 करोड़ रुपये बजटीय सहायता के रूप में देगी. बाकी 349.74 करोड़ की धनराशि उद्योग जगत से जुटाई जाएगी. पूरी योजना पर आगामी वर्षो में 20,000 करोड़ रु पये खर्च होने का अनुमान है. यह स्कीम 12वीं और 13वीं पंचवर्षीय योजना में लागू की जाएगी. इससे भारतीय कैपिटल गुड्स (पूंजीगत सामान) क्षेत्र को प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट की आर्थिक मामलों संबंधी समिति (सीसीईए) की बैठक में इस योजना को मंजूरी दी गई.

सरकार चाहती है कि गुणवत्तापूर्ण जरूरी उत्पादों के पैकेट पर मेड इन इंडिया लिखा हो लेकिन यह तभी अंकित हो सकता है जब वस्तु का निर्माण भारत में हुआ हो. इसका सबसे बड़ा फायदा होगा कि देश में बनी वस्तु की कीमत कम होगी. इसके अलावा उसके निर्यात से राजकीय खजाना भरा जा सकता है. मेक इन इंडिया को हकीकत बनाने के लिए कैबिनेट ने एक स्कीम को मंजूरी दी है जिसके तहत कैपिटल गुड्स सेक्टर को बढ़ावा दिया जाएगा. स्कीम के तहत नई तकनीक के अधिग्रहण के साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी सुविधाएं बढ़ायी जाएंगी. प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में रोजगार बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने तथा देश की ताकत के सही इस्तेमाल के लिये विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना होगा. उन्होंने ‘जीरो डिफेक्ट’ (त्रुटिहीन उत्पाद) और ‘जीरो इफेक्ट’ (पर्यावरण अनुकूल उद्योग) पर बल देते हुए इस प्रयास में जुड़ने के लिए दुनिया का आह्वान किया.

प्रधानमंत्री के अनुसार लघु उद्योग संघ 15 सालों से इसकी मांग कर रहे थे क्योंकि इससे उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा से मुकाबले में मदद मिलेगी. हालांकि, देश में कुल मैन्युफैक्चरिंग में कैपिटल गुड्स का योगदान नौ से 12 फीसद  होता है. कैपिटल गुड्स की इस योजना के तहत आने वाले मुख्य क्षेत्र मशीन टूल्स, टेक्स्टाइल मशीनरी, कंस्ट्रक्शन, खनन मशीनरी और प्रोसेस प्लांट मशीनरी शामिल हैं. इसके तहत कैपिटल गुड्स क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के व्यापक इस्तेमाल और साझा औद्योगिक सुविधा केंद्र बनाने पर जोर होगा. इसके तहत आईआईटी दिल्ली, मुंबई, मद्रास, खड़गपुर व सेंट्रल मैन्यूफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट बेंगलुरू में अनुसंधान व विकास (आरएंडडी) के लिए एडवांस सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनेंगे. साथ ही समन्वित औद्योगिक ढांचागत सुविधाएं दी जाएंगी.

मेक इन इंडिया के फॉर्मूले से भारत चीन और जापान दोनों को साधने की कोशिश कर रहा है. गौरतलब है कि चीन में मैन्युफैक्चरिंग एसएमई पर सरकार खासा ध्यान देती है. चीन की जीडीपी में स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एसएमई) की 35 से 40 फीसद से ज्यादा की भागीदारी है. वहीं, भारत में अभी एसएमई के जरिए जीडीपी की भागीदारी महज आठ फीसद है. यदि मैन्युफैक्चरिंग के लिए चीन और जापान भारत में निवेश करते हैं तो यहां की एसएमई के लिए जबरदस्त अवसर तैयार होंगे.

खासतौर से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर जोर है, इसलिए उत्पादन बढ़ेगा और निर्यात में भी अपार संभावनाएं तैयार होंगी. बस जरूरत है, भारत को अपनी आर्थिक तरक्की की रफ्तार तेज करने के लिए चीन से सीख लेने की. ग्लोबल रिसर्च फर्म मैकेंजी की रिपोर्ट कहती है कि चीन स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एसएमई) को इंटरनेट और ई-कॉमर्स से जोड़कर 2025 तक दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी बन अपनी आर्थिक तरक्की की रफ्तार मौजूदा स्तर से तीन गुना से ज्यादा कर लेगा. स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एसएमई) पर फोकस कर और उन्हें हाईटेक बनाकर भारत भी दुनिया पर राज कर सकता है.

बहरहाल, इस योजना से मोदी एक तीर से तीन निशाने साधने की कोशिश में हैं. पहला, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश से जुड़ा है. मौजूदा समय में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का जीडीपी में योगदान 16 फीसद है और वैश्विक योगदान 1.8 फीसद है. वहीं इसके उलट चीन में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 35 फीसद है और वैश्विक योगदान 13.7 फीसद.  दूसरा यह र्वल्ड बैंक डूइंग बिजनेस इंडेक्स में अपनी रेटिंग सुधारने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है. गौरतलब है कि 2014 की इस रिपोर्ट में भारत को 189 देशों में 134वां स्थान मिला था.

यह रैंकिंग बताती है कि भारत में बिजनेस स्टार्ट करना आसान नहीं है. यह रेटिंग देश में बढ़ते भ्रष्टाचार, लेबर लॉ और बिजनेस से जुड़े सख्त नियमों को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी. अभी देश में कारोबार शुरू करने के लिए उद्यमी को 12 प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. इसमें कम से कम 27 दिन लगते हैं. समझौतों पर अमल में तो वर्षो लग जाते हैं. तीसरे इसके तहत कंस्ट्रक्शन में एफडीआई लाकर मोदी सौ स्मार्ट सिटी का सपना जल्द पूरा करना चाहते हैं. अंतत: मेक इन इंडिया को भारत में बिजनेस आसान करने के अभियान के रूप में देखा जा रहा है.

रविशंकर
लेखक


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