आर्थिक विकास के पहले चरण की तस्वीर

Last Updated 23 Sep 2014 12:15:10 AM IST

सच कहें तो केन्द्र सरकार के कामों का परिणाम जानने के लिए चार महीने का वक्त काफी कम है.


आर्थिक विकास के पहले चरण की तस्वीर

अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली के बयानों, बजट भाषण, सरकार के सौ दिन पूरे होने पर की गई घोषणाओं व राष्ट्रपति के अभिभाषण से सरकार की आर्थिक प्राथमिकताओं और नीतियों का अन्दाजा लगाते रहे. कई मानसून की गड़बड़ का अंदेशा होने पर आसमान निहारते रहे और काफी सारे तो सुबह-शाम आलू-प्याज-टमाटर की कीमतों को ही निहारते रहे, पर जब अचानक एक दिन देश के शीषर्स्थ आर्थिक अखबार ने लीड खबर दी कि वर्षो की गहरी निराशा के माहौल को मोदी के शासन के एक महीने के आंकडों ने धो दिया है, तो कई लोग चौंके.

फिर तो महंगाई के आंकडों की गिरावट, औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोत्तरी और शेयर बाजार के नित नए रिकॉर्ड बनाने की खबरें आम हो गयीं. हालत यह हो गई कि नई सरकार के लोग तो अच्छे दिन आने की आहट बताकर खुश हो ही रहे थे, चेन्नई जा बसे पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम भी आर्थिक उठाने के लिए अपने फैसलों को श्रेय देने लगे. पर जल्दी ही जब दूसरे महीने के आंकड़े, आगे के हफ्तों के मूल्य सूचकांक और रिजर्व बैंक के फैसले आने लगे तो शुरुआती उत्साह तिरोहित होने में खास वक्त नहीं लगा. यह जरूर है कि वास्तविकता को बताने वाले आंकडे निराशा पैदा नहीं करते पर फिलहाल बहुत उछलने वाली स्थिति भी नहीं है.

सच कहें तो केन्द्र सरकार के कामों का परिणाम जानने के लिए चार महीने का वक्त काफी कम है. राज्य सरकारों के लिए झट से कोई परिणाम देना बेशक आसान होता है पर केन्द्र सरकार के फैसलों का असर चार-पांच साल में ही दिखता है. नई सरकार के काम और सोच की दिशा को समझने के लिए काफी सारे संकेतों को जानना-समझना तो जरूरी होता ही है, सूखा-महंगाई पर सचेत रहना भी जरूरी है, पर जिन बातों को आधार बनाकर इस आर्थिक अखबार ने खबर दी थी, उन्हें खारिज करना आसान नहीं है.  अखबार की खबरें ठीक से मन में जमें और भरोसा हो कि बदहाली के दिन विदा होने वाले हैं, तब तक अच्छे दिनों की सूचक भरपूर बरसात भी आ गई. सौभाग्य से इराक का संकट भी सिमट गया.

जब नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभाली थी तब कार की बिक्री बढ़ने, विदेश व्यापार के चालूखाते का घाटा कम होने और खुदरा मूल्य सूचकांक में हल्की गिरावट की खबरें आने लगी थीं. तब माना जाता था कि ये फायदे पी. चिदम्बरम की सख्ती, उदारीकरण के दूसरे चरण के कई रु के फैसलों के आ जाने और महंगाई के हद से बढ़ जाने के बाद स्वत: ढंग से नीचे आने जैसी परिघटना ही है. विदेश व्यापार के मामले में सोने पर सीमा शुल्क बढ़ाने और सख्ती का फर्क पड़ा भी था, हालांकि इसके चलते सोने की तस्करी बढ़ने लगी है. पर जल्दी ही सोने का आयात बढ़ने और विदेश व्यापार घाटा पुरानी स्थित में आने और औद्योगिक उत्पादन फिर ऋणात्मक होने की खबर आने लगी. कीमतें नीचे आईं पर रिजर्व बैंक को ही अभी भरोसा नहीं है, जिसके चलते वह सूद की दरें घटाने को तैयार नहीं है. सूचकांक चाहे जो सूचना दे, वास्तव में आलू-प्याज की कीमतें कम होने की जगह बढ़ ही रही हैं.

अब इन सबका कितना श्रेय मोदी-जेटली की जोड़ी को दिया जाए या ‘मोदी लहर’ के साथ बने महौल को यह फैसला आसान नहीं है. अब तक शासन के तौर-तरीकों में बदलाव का प्रयास करने, महंगाई और सूखे से निपटने के लिए मंत्रियों-अधिकारियों की बैठक-परेड कराने के अलावा कोई बड़ा फैसला नहीं किया गया है. बजट को भी आम तौर पर साधारण और पिछले प्रभाव से मुक्त न हो सकने वाला ही माना गया. सचमुच का कोई धमाकेदार फैसला नहीं हुआ. यही कारण है कि रेल बजट और आम बजट के दिन शेयर बाजार में अच्छी-खासी गिरावट देखने को मिली फिर लगातार गिर रहे या मुश्किल से पिछले आंकडे को छूने वाले औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में 4.7 फीसद की वृद्धि कैसे हो गई जो 19 महीने की सबसे बड़ी वृद्धि है पर अगले ही महीना फिर पुराने ढर्रे पर वापस लौटने के आंकड़े पेश करने लगा. एक बार फिर करखनिया उत्पादन गिर गया.

जिस एक चीज में सबसे ज्यादा बदलाव दिख रहा है वह है उत्साह का. इसका काफी असर होता है और नरेन्द्र मोदी के आने की आहट के साथ ही बाजार उत्साह दिखाने लगा था. जिस दिन कोई जनमत संग्रह मोदी की जीत की भविष्यवाणी करता था, उसी दिन बाजार उछल पड़ता था पर आंकड़े बताते हैं कि शेयर बाजार जितना उछले शेयरों में बाहरी निवेश कम ही हो रहा है. बाहरी पूंजी में ऋण का हिस्सा तो तेजी से बढ़ा है पर निवेश कम ही हुआ है और विदेश यात्राओं से व्यवसाय का चाहे जो शोर मचे, वास्तविक निवेश खास नहीं होता. जैसे चीनी राष्ट्रपति की यात्रा के साथ सौ अरब के व्यवसाय की बात कही गई पर निवेश के समझौते बीस अरब के भी नहीं हुए और इनमें भी कितना काम जमीन पर हो पाएगा, कहना जल्दबाजी होगी. यह सही है कि बजट, आर्थिक सर्वे और अन्य अनुमानों में भी आर्थिक विकास दर के पहले से बेहतर होने का अनुमान है. यह भी सही है कि राजकोषीय अनुशासन लाने के नाम पर जितनी सख्ती का डर दिखाया गया, उतनी हुई नहीं.

नरेन्द्र मोदी और अरुण जेटली कुशल राजनेता हैं सो गरीबों के भोजन, रोजगार और खेती से जुड़ी सब्सिडी में अलोकप्रिय होने जितनी कटौती करने से बचे पर उन्होने अपने वायदे के अनुसार कदम नहीं बढाए यह नहीं कहा जा सकता. उनके हाथ बंधे भी थे- समय के हिसाब से भी, राजनीति के हिसाब से भी और आर्थिक हिसाब से तो सबसे ज्यादा. पिछली सरकार ने सचमुच काफी कुछ ऐसा छोड़ा है जो इस सरकार के लिए न निगलते बनेगा न उगलते. लोक लुभावन योजनाओं को बन्द करना मुश्किल है और चलाना और भी मुश्किल. मनरेगा पर जिस तरह से बाजार समर्थक अर्थशास्त्री और वसुन्धरा राजे जैसे भाजपा नेता सवाल उठा रहे थे, उससे लग रहा था कि वित्त मंत्री यूपीए की कई योजनाओं पर गाज गिराएंगे पर उन्होने यह सब नहीं किया और दूसरे कथित कड़े कदम भी अब तक नहीं उठाए हैं.

अर्थव्यवस्था के बुरे हाल और उसकी स्थिति की असली तस्वीर वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा पेश आर्थिक समीक्षा में मिली. इससे आर्थिक विकास दर बढ़ने की उम्मीदों पर तो पानी फिरता लगता है. विकास दर की भविष्यवाणी 5.4 से 5.9 फीसद के बीच की है तो वित्तीय अनुशासन का घोर अभाव दिखता है. आर्थिक सर्वे में भी पूर्व वित्तमंत्री पी चिदम्बरम के 4.1 फीसद राजकोषीय घाटे के अनुमान को झुठलाते हुए इसके 4.3 से 4.5 के बीच रहने की भविष्यवाणी है. पर जानकार इस अनुमान को भी कम मानते हैं क्योंकि तीन महीने में ही राजकोषीय घाटा अनुमान के पचास फीसद से ऊपर पहुंच गया है. यह स्थिति तब है जब चालू खाते के विदेश व्यापार घाटे को रोकने के तात्कालिक उपाय अभी लागू हैं और उन्हें हटाने की जरूरत सब बता रहे हैं क्योंकि सोने जैसी चीजों का आयात घटने से घाटा तो कम हुआ है लेकिन अवैध आयात अर्थात तस्करी काफी बढ़ गई है पर जेटली ने शायद इसी के चलते सोने पर सीमा शुल्क कम नहीं किया पर यह भी किया कि मोदी के नाम भर से आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र में जो उत्साह बना था उसे भी नहीं तोड़ा. सो अगर आंकडे और माहौल बदलने लगा है और हमें-आपको उसकी ठोस प्रशासनिक तथा नीतिगत पहल नहीं दिखती तो इस नई ऊर्जा की वजह उत्साह और जोश का माहौल ही दिखेगा. विकास का पहला चरण तो इससे ही बनता है. 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

अरविन्द मोहन
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment