भारत में जो भाव है वह इंडिया में नहीं

Last Updated 21 Sep 2014 12:53:10 AM IST

भारत अद्वितीय राष्ट्र है. हजारों बरस प्राचीन संस्कृति और दर्शन. मनुष्य के चरम और परम विकास की दिव्य भूमि.


भारत में जो भाव है वह इंडिया में नहीं

सृष्टि के कण-कण में देवत्व और दिव्यत्व की आस्तिक अनुभूति वाले जनगण. प्रकृति के हरेक अंश को पूर्ण देखने वाली श्रद्धा. भारत का शाब्दिक अर्थ भी दिव्य है. भा का अर्थ है प्रकाश और रत का अर्थ है संलग्न. भारत प्रकाशनिष्ठ राष्ट्रीयता है. ऋग्वेद प्राचीन ज्ञान अभिलेख है विश्व का. भारत ऋग्वेद में भी है. भारत हमारा कुल, वंश, गोत्र, उत्स और परिवार है और एक शात विचार भी. राष्ट्र-राज्य की दृष्टि में इसकी भी सीमाएं हैं लेकिन भारत का विचार असीम है.

भारत दुनिया की एकमेव अतिविशिष्ट संभावना है. यहां वैदिक ऋचाएं गूंजी. सामगान हुए, होते हैं. यज्ञ हुए. मंत्र स्तुतियां आकाश गई, समिधा गंध लेकर. आकाश भी गंध आपूरित हुआ. लाखों ऋषियों ने तप किए. शोध किए. वे विश्व मानवता के दुख निवारण के लिए ही सूत्र मंत्र खोजते रहे. उनकी साधना से धरती और आकाश भी अप्रभावित नहीं रह सके. विश्व के किसी भी देश में ऐसे त्यागपूर्ण सामाजिक कार्यकर्ता और संन्यासी नहीं हुए. वन, उपवन, पर्वत, कंदराए, नदी तट और अन्य दुर्गम स्थान सत्य खोजी ऋषियों की तप साधना के क्षेत्र हैं. वे नहीं हैं लेकिन उनकी कर्मचेतना की उपस्थिति आज भी है. भारत के भारत होने के हजारों कारण हैं. संविधान सभा ने भारत को भारत नहीं बनाया और न ही अंग्रेजी राज ने. संविधान सभा ने भारत को ‘इंडिया’ बना दिया. हमारी आत्मा, प्राण, काया, वास-प्रवास, अनुभूति, प्रतीति, जीवन और मृत्यु भारत में है. इंडिया में नहीं.

नाम का अनुवाद उचित नहीं लगता. भाषा शास्त्र में नाम को ज्यों का त्यों बनाए रखने की परंपरा है. भारत को अंग्रेजी में इंडिया कहा जाता है. भारत होने, अनुभव करने या बोलने का अपना सुख है. इंडिया कहने में कोई मुख-सुख भी नहीं. भारत की संविधान सभा में हरिविष्णु कामथ ने भारत या अंग्रेजी भाषा में इंडिया नामकरण का संशोधन पेश किया था. कामथ ने कहा कि भारत पसंद न हो तो विकल्प में हिंद या अंग्रेजी भाषा में इंडिया रख दिया जाय. उन्होंने भारत, हिंदुस्तान, हिंद, भरतभूमि, भारतवर्ष आदि नामों के सुझाव देते हुए दुष्यंत पुत्र भरत की कथा से भारत का उल्लेख किया. सेठ गोबिंद दास ने कहा, ‘इंडिया दैट इज भारत’ यह नाम रखने का तरीका बहुत सुंदर नहीं है.

इंडिया उचित नाम नहीं है. सेठ ने ‘इंडिया’ नाम को यूनानी प्रदाय बताया. सुब्बाराव ने ‘भारत’ को प्राचीन नाम बताकर कहा कि भरत नाम ऋग्वेद में है. कमलापति त्रिपाठी ने कहा, इंडिया दैट इज भारत के स्थान पर भारत दैट इज इंडिया लगाया जाता तो वह अधिक उपयुक्त होता. एक हजार वर्ष की पराधीनता में हमारे देश ने अपना सब कुछ खो दिया. संस्कृति, सम्मान, मनुष्यता, गौरव और अपना नाम भी. त्रिपाठी ने तमाम वैदिक, पौराणिक तर्क दिए. हरगोबिंद पंत ने कहा, भारतवर्ष नाम सीधे क्यों नहीं ग्रहण किया जाता, इंडिया से हमारी ममता क्यों है?

भारत ने अंग्रेजों से लड़ते समय ‘भारत माता की जय’ के गगनचुंबी नारे लगाए थे. ऐसी ही नारेबाजी के बीच एक सभा में पं. नेहरू ने भीड़ से पूछा यह भारत माता कौन है? एक ने कहा कि यह धरती. पंडित जी ने पूछा कौन-सी धरती, किसी खास गांव की, जिले की या पूरे भारत की? फिर पं. नेहरू ने स्वयं उत्तर दिया, भारत वह सब कुछ है जो वे सोचते हैं लेकिन इससे भी कुछ ज्यादा है, हम सब स्वयं भारत माता हैं. लेकिन संविधान में भारत का नाम इंडिया हो गया. भारत माता मदर इंडिया हो गई.

भारत सनातन राष्ट्र है. सनातन कहना अतिशयोक्ति लगता है इसलिए भारतप्रेमी अनेक विद्वान इसे प्राचीन राष्ट्र कहते हैं. यूरोपीय दृष्टिकोण वाले भारतीय इसे संविधान लागू होने की तिथि 26 जनवरी 1950 से ही राष्ट्र मानते हैं. वे अशोक या चंद्रगुप्त मौर्य शासित भारत को भी राष्ट्र नहीं जानते. यूरोपीय दृष्टिकोण में पुनर्जागरण काल के पहले राष्ट्र या नेशन की सुस्पष्ट धारणा नहीं है. भारत में राष्ट्र होने का बोध वैदिक काल से ही है. अनुरोध है कि इसे अंग्रेजी सहित सभी भाषाओं में ‘भारत’ ही लिखिए, बोलिए.



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