त्वरित टिप्पणी : ड्रैगन को उसके अंदाज में जवाब!

Last Updated 19 Sep 2014 04:28:01 AM IST

भारत-चीन सीमा पर यह एक तरह की सामान्य-सी स्थिति बन चुकी है कि चीनी सैनिक हमारे दावे वाले क्षेत्र में घुस आते हैं और हमारे सैनिक उन क्षेत्रों में चले जाते हैं जिन पर चीन दावा करता है.


ड्रैगन को उसके अंदाज में जवाब!

यह काम दोनों पक्षों की तरफ से होता रहा है. यह कोई बड़ा अतिक्रमण या घुसपैठ है, इसे मैं नहीं मानता. वैसे भी यह भी देखना चाहिए कि क्या वे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) तक आए हैं, अपने क्लेम प्वाइंट तक आएं है या उसे पार कर गए हैं. यह बेहद तकनीकी बात है. लेकिन कोई ऐसी बात वहां नहीं हुई है जिस पर हम बहुत ज्यादा रोष प्रकट करें. दूसरी बात यह है कि सीमा पर जो हमारी सेना और भारतीय सुरक्षाबल हैं उन्होंने भी अपनी उपस्थिति को काफी मजबूत किया है और चीन की तरफ से यदि ऐसी चुनौती आती है तो हमारी सेना अपनी पोजीशन को और मजबूत कर लेती है.

दोनों देशों के संबंधों में यह बात भी उभर कर आती है कि हम चीन से सीमा विवाद सुलझाने के लिए व्यग्र और बेहद इच्छुक नजर आते हैं. लेकिन ऐसा करके संभवत: हम अपनी कमजोरी जाहिर कर रहे हैं. फिर चीन हमारी कमजोरी का फायदा क्यों न उठाए. चीन शायद अभी सीमा विवाद सुलझाने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में हमें भी बहुत अधिक उत्सुकता दिखाने की जरूरत नहीं है. ऐसा करने से हमारी स्थिति कमजोर होती दिखती है. इसलिए हमें इंतजार करना होगा. लेकिन इस बाबत सतर्क रहने की जरूरत है कि सीमा विवाद को संभाला कैसे जाए क्योंकि यहां हरेक घटना संवेदनशील है. कभी अगर कोई उन्नीस-बीस हो जाए और गोलीबारी शुरू हो जाए तो हालात बहुत तेजी से खराब भी हो सकते हैं.

\"\"सीमा विवाद पर चीनी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान कोई समझौता नहीं हुआ है. दोनों ही देशों के नेताओं ने साथ बैठकर अलग-अलग बयान दिए हैं, कोई संयुक्त बयान जारी नहीं हुआ है. मोदी जी ने कहा कि हमें सीमा विवाद सुलझाना है, यह बहुत जरूरी है. दूसरी तरफ शी जिनपिंग ने भी कहा कि ऐसा हमें करना चाहिए लेकिन यह ऐतिहासिक समस्या है जो आराम से सुलझेगी. हालांकि किसी ने भी आक्रामक या लड़ने-भिड़ने की बात नहीं की लेकिन दोनों नेताओं के बीच जो मतभेद था वह साफ नजर आ रहा था. 

अब हमारे सामने चुनौती यह है कि हम कैसे अपनी सैन्य शक्ति को उस स्तर पर पहुंचाएं जिससे चीन को यह महसूस हो जाए कि अब हम भारत को धकेल नहीं सकते और दोनों पक्ष आज जहां पर मौजूद हैं वहीं पर विवाद सुलझा लिया जाए. ऐसे में अभी तो हमें यही ध्यान रखना होगा कि सीमा पर टकराव खतरनाक स्तर पर न पहुंचे.

संभवत: शी जिनपिंग के दौरे के दौरान सीमा पर हो रही घटनाएं चीन की तरफ से यह इशारा देती हैं कि भारत को हमारी तरफ से सीमा विवाद पर कोई रियायत नहीं मिलेगी, न ही भारत ऐसी उम्मीद रखे. लेकिन भारत ने सीमा पर जैसी प्रतिक्रिया दी है उससे चीन को भी यह संदेश चला गया है कि अगर आप की तरफ से कोई ढील नहीं बरती जाएगी तो हमारी तरफ से भी नहीं बरती जाएगी.

ऐसी खबरें भी आई हैं कि सीमा पर भारतीय सेना की पेट्रोलिंग और तैयारियों में नई सरकार के आने के बाद कुछ तीव्रता आई है. अब हमने भी चीन को संदेश देना शुरू किया है कि सीमा पर ‘जैसे को तैसा’ का व्यवहार किया जाएगा. चीन की तरफ से लगातार संकेत मिलता रहा है कि हम सीमा विवाद पर रियायत नहीं बरतेंगे लेकिन व्यापार और निवेश आदि पर हम आगे बढ़ने को तैयार है, तो भारत ने भी संदेश दिया है कि हम भी सीमा पर ढील नहीं देंगे लेकिन अन्य मामलों में आगे बढ़ सकते हैं.

लेकिन मुझे यह सवाल सता रहा है कि क्या चीनी राष्ट्रपति महज यह संदेश देने के लिए भारत आए हैं. यदि यह संदेश देना तो वे पहले भी दे सकते थे. गौरतलब है कि चीन के राष्ट्रपति किसी देश में जाते हैं तो यह अहसास दिलाने की कोशिश करते हैं कि बीती बातें भूलकर आगे बढ़ा जाए. अगर हम चीनियों को बहुत समझदार और दूरंदेश समझा जाता हैं तो उन्हें यह पता होना चाहिए था कि उनके राष्ट्रपति की विजिट के दौरान ऐसी घटनाएं होंगी और भारतीय मीडिया उसे उठाएगा तो पूरा का पूरा दौरा खटाई में पड़ जाएगा. यह शायद उन्हें पता रहा होगा. फिर सवाल उठ रहा है कि क्या चीनी राष्ट्रपति अपने दौरे के उद्देश्यों को ताक पर रखकर आए हैं. क्या उन्हें गलतफहमी थी कि चूंकि वह भारत दौरे पर जा रहे हैं इसलिए बार्डर की घटनाओं पर भारत चुपचाप बैठा रहेगा और प्रतिक्रिया नहीं देगा?

अगर उनकी सोच यही थी तो उन्होंने शायद नई सरकार और प्रधानमंत्री को ठीक से भांपा नहीं और उनका सारा आंकलन गलत साबित हुआ. अगर ऐसी बात नहीं नहीं है और वह अपने पूरे दौरे को सीमा विवाद का बंधक नहीं बनाना चाहते थे और अन्य विषयों पर आगे बढ़ना चाहते थे तो ऐसी उकसाने वाली कार्रवाई का कोई मतलब नहीं था. यदि ताजा घुसपैठ अक्सर होने वाली ऐसी घटनाओं की कड़ी है तो अलग बात है. लेकिन यदि चीनी राष्ट्रपति के दौरे से इसका थोड़ा भी लेना-देना है तो इससे साबित होता है कि चीन ने भारत के नए प्रधानमंत्री के रुख-रवैए को ठीक से भांपा नहीं. बहरहाल, यह सब बातें अभी कयास और अंदाजा ही हैं. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ेगा, स्थिति में और स्पष्टता आएगी.

प्रस्तुति : शशि प्रकाश राय

सुशांत सरीन
सामरिक विशेषज्ञ


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