बुरी नजर से बचा रहे अमन का चमन

Last Updated 19 Sep 2014 01:06:21 AM IST

लिम्बू भाषा में ‘सु’ और ‘ख्यिम’ को जोड़ने से सिक्किम (सिखिम) बनता है जिसके मायने है- नया घर या महल.


बुरी नजर से बचा रहे अमन का चमन

नाम के अनुरूप सिक्किम का नैसर्गिक सौंदर्य देश-विदेश के सैलानियों को चुंबक की तरह अपनी ओर खींचता रहा है. पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में अधिक से अधिक स्वायत्तता की मांग ने जुनून की शक्ल ले रखी है लेकिन पूरे क्षेत्र में सिक्किम अकेला राज्य है जिसने तीन तरफ विदेशी सीमाओं से घिरा होने के बावजूद शांति का परचम बुलंद रखा है. सिक्किम का नाम ‘गड़बड़ी रहित राज्य’ के तौर पर भी जाना जाता है.

बंद, हिंसा व अलगाववाद की लपटों से दूर सिक्किम पर्यटन की दृष्टि से सुरक्षित माना जाता है. करीब सवा छह लाख की आबादी वाले इस राज्य की आमदनी का बड़ा हिस्सा सैलानियों की जेब से आता है. सिक्किम में हर साल करीब 12 लाख सैलानी आमद दर्ज कराते हैं लेकिन इस साल हुए लोकसभा व विधानसभा चुनाव के बाद से यहां की शांत फिजा में गड़बड़ी की आहट सुनी जाने लगी है. चुनाव प्रचार के दौरान सत्ताधारी पार्टी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के दो कार्यकर्ताओं की हत्या हो गई थी और एसडीएफ ने इसके लिए विपक्षी पार्टी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) को जिम्मेदार ठहराया.

सिक्किम में फरवरी-मार्च से टूरिस्ट सीजन शुरू होता है लेकिन इस साल उस समय चुनाव प्रचार की वजह से राजनीतिक तनातनी चरम पर थी. राजधानी गंगटोक समेत सिक्किम के कई हिस्सों में धरने-प्रदर्शन और बंद के आह्वान से माहौल गर्म था. पर्यटन सीजन पर आधारित स्थानीय दुकानदार भी चिंतित दिखे. उन्हें डर सताने लगा कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों की तरह सैलानी कहीं सिक्किम से भी मुंह न मोड़ने लगें. सिक्किम में क्यों बन रहे हैं ऐसे हालात, इसे समझने के लिए यहां का भौगोलिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक परिवेश समझना जरूरी है.

सिक्किम के 1975 में भारत में पूरी तरह विलय के बाद भी चीन 28 साल तक इस राज्य को विवादित क्षेत्र बताता रहा लेकिन अंतत: 2003 में उसे सिक्किम को भारतीय राज्य के रूप में स्वीकार करना ही पड़ा, बदले में तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र को भारत ने चीन का क्षेत्र माना. लेकिन कुछ साल बाद चीन ने फिर सिक्किम के उत्तर में 21 वर्ग किलोमीटर के हिस्से फिंगर टिप पर अपना दावा जता नए विवाद को जन्म दे दिया. चीन की कोशिश हमेशा यही रही है कि उत्तरी बंगाल के दार्जिलिंग जिले के साथ सिक्किम में भी भारत विरोधी शक्तियों को खाद-पानी दिया जाता रहे. चीन जानता है कि सिक्किम के विलय के दौरान वहां मौजूद कुछ भारत विरोधी ताकतें आज भी मुखर हैं. ऐसे में सिक्किम की शांति भंग करने के लिए हिंसा की जो विषबेल फूटती दिख रही है, उसमें चीन की चाल से इनकार नहीं.

सिक्किम की सत्ता पर 1994 से एसडीएफ का कब्जा है. पार्टी के मुखिया 64 वर्षीय पवन कुमार चामलिंग ही पिछले दो दशक से राज्य के मुख्यमंत्री हैं. पांच बार मुख्यमंत्री बन चुके चामलिंग देश में सबसे ज्यादा साल तक मुख्यमंत्री रहने वाले पश्चिम बंगाल के ज्योति बसु के रिकार्ड (1977-2000) को तोड़ने की कगार पर हैं. 2009 विधानसभा चुनाव में एसडीएफ ने सभी 32 सीटों पर जीत दर्ज कर अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की थी. लेकिन 2014 विधानसभा चुनाव में एसडीएफ को 22 सीटों पर ही कामयाबी मिल सकी. 10 सीटें विपक्षी पार्टी एसकेएम के खाते गई. एसकेएम का गठन फरवरी, 2013 में एसडीएफ से ही अलग हुए प्रेम सिंह तमंग (गोले) ने किया है.

चामलिंग और गोले के राजनीतिक द्वन्द्व के साथ 74 साल के नेता नर बहादुर भंडारी का जिक्र भी जरूरी है. चामलिंग के सिक्किम में राजनीतिक उदय से पहले भंडारी 15 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे. ये वही भंडारी हैं जो कभी सिक्किम के भारत में विलय के प्रबल विरोधी थे. सिक्किम के 1975 में भारत के विलय के बाद भी भंडारी ने कई मौकों पर अलगाववादी बयान दिए. 2011 में 27 साल पुराने भ्रष्टाचार के मामले में भंडारी दोषी ठहराए गए और उन्हें एक महीना जेल की हवा भी खानी पड़ी.

सजायाफ्ता होने की वजह से चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराए गए भंडारी ने 2014 चुनाव से पहले गोले से हाथ मिला लिया. दबंग छवि वाले गोले पर भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के आरोपों के तहत चार्जशीट दायर है. बाहर से समर्थक और हथियार लाकर स्थानीय लोगों को डराने-धमकाने के आरोप भी विरोधी उन पर लगाते रहे हैं. एसडीएफ का कहना है कि इस साल विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान एसकेएम की जनसभाओं में गोले और भंडारी की मौजूदगी में भड़काने वाले नारे लगे. ऐसा ही एक नारा था- ‘सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चे को वोट दो या सिक्किम छोड़ दो.’

एक तरफ एसकेएम का ऐसा रुख है, दूसरी ओर देश में अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए वो भी हाथ-पैर मार रहा है. इसी कोशिश के तहत एसकेएम नेता गोले ने हाल में अपने अन्य 9 विधायकों के साथ दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की. गोले की मंशा यही है कि एसकेएम का या तो बीजेपी में विलय हो जाए या उसे एनडीए में शामिल कर लिया जाए. लेकिन बीजेपी की ओर से फिलहाल गोले को भाव नहीं मिल रहा है.

राजनीतिक दांवपेचों के इस खेल के साथ इस बात से इनकार नहीं कि भ्रष्टाचार के दंश से सिक्किम भी अछूता नहीं है. हालांकि मुख्यमंत्री चामलिंग पर भ्रष्टाचार समेत जो भी आरोप लगे, उनमें उन्हें क्लीनिचट मिल चुकी है. इस हकीकत से इनकार नहीं कि पिछले दो दशक में पर्यावरण संरक्षण समेत कई मोर्चो पर सिक्किम ने बेहतरीन उदाहरण पेश किये हैं. यही वजह है कि देश के बाकी हिस्सों में जहां वनक्षेत्र घट रहा है, सिक्किम में बढ़ा है. सिक्किम में 2015 तक कृषि को पूरी तरह आर्गेनिक करने का लक्ष्य रखा गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सिक्किम की तर्ज पर देश भर में आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने की बात कह चुके हैं.

 बहरहाल, लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है. राजनीतिक दलों के विरोध प्रदशर्न को भी इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए. लेकिन सिक्किम की शांति भंग करने वाली ताकतों पर कड़ी नजर होनी चाहिए. सवाल है कि सिक्किम में हिंसा व अलगाववाद की जो दस्तक सुनाई दे रही है,  कहीं चीन की ही चाल तो नहीं? न भूलें कि बाहर के दुश्मन से ज्यादा घर के भेदी खतरनाक होते हैं. ऐसे में मोदी सरकार को सिक्किम को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है. ताकि पूर्वोत्तर में अमन के चमन माने जाने वाले सिक्किम को बुरी नजर से बचाया जा सके.

खुशदीप सहगल
लेखक


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