चीन के साथ नई आर्थिक संभावनाएं

Last Updated 17 Sep 2014 01:30:30 AM IST

भारत आर्थिक एवं कारोबार के क्षेत्र में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की यात्रा को लेकर काफी आशान्वित है.


चीन के साथ नई आर्थिक संभावनाएं

यह स्पष्ट है कि जनसंख्या के लिहाज से भारत और चीन विश्व के दो सबसे बड़े देश हैं और जिनपिंग की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच वाणिज्यिक रिश्तों को नई गति देने की दिशा में सार्थक बातचीत की उम्मीद है. प्रमुख रूप से भारत के द्वारा चीन से भारत में विनिर्माण इकाइयां और औद्योगिक पार्क स्थापित करने के लिए कहा जाएगा जिससे भारतीय निर्यात बढ़ेगा और लोगों को रोजगार मिलेगा.

दुनिया के अर्थ विशेषज्ञ यह कहते हुए दिख रहे हैं कि भारत चीन के लिए एक बड़े आर्थिक अवसर के रूप में भी उभर रहा है. चीन के पास बुनियादी ढांचा क्षेत्र में पर्याप्त क्षमता मौजूद है जबकि भारत इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश आकषिर्त करने में लगा हुआ है. चीन को जिस आकार के बाजार की जरूरत है वह केवल भारत ही मुहैया करा सकता है. भारत और चीन नए ब्रिक्स बैंक में साझीदार हैं, यह भी इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है.

निसंदेह भारत और चीन के बीच नए आर्थिक संबंधों के निर्मित होने के पीछे दो प्रमुख कारण हैं. पहला कारण है नई मोदी सरकार के नए आर्थिक रिश्ते. दरअसल, नई सरकार के काम संभालने के शुरुआती कुछ दिनों में पड़ोसी मुल्कों के साथ करीबी-आर्थिक संबंध स्थापित करने की जो कोशिश शुरू की गई, उसने भारत का क्षेत्रीय आर्थिक महत्व बढ़ा दिया है. इतना ही नहीं, मोदी की सफल जापान यात्रा एवं ऑस्ट्रेलियाई पीएम की सफल भारत यात्रा ने शी जिनपिंग की यात्रा के दौरान आर्थिक एवं कारोबारी रिश्तों के लिए नई पृष्ठभूमि तैयार कर दी. दरअसल, चीन नहीं चाहता है कि भारत अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के साथ मजबूत आर्थिक रिश्ता बनाए, क्योंकि इससे चीन को क्षेत्रीय दबदबा बनाए रखने में दिक्कत होगी है. ऐसे में वह भारत के साथ एक उपयुक्त सीमा तक आर्थिक समझौता करने को तैयार हो सकता है.

चीन से आर्थिक संबंधों की एक नई अच्छी शुरुआत का दूसरा बड़ा कारण इस समय चीन के आर्थिक परिश्दृय पर उभरकर दिखाई दे रही दो चिंताएं  हैं. एक, चीन की विकास दर में गिरावट और दो, चीन की कामकाजी आबादी में गिरावट आने से श्रमबल में कमी की प्रवृत्ति. यह कोई छोटी बात नहीं है कि पिछले कुछ वर्षो में दहाई से ऊपर तक पहुंची चीन की विकास दर में गिरावट आई है और अब यह सालाना सात फीसद पर पहुंच गई है. चीन की राजकोषीय और बैंकिंग स्थिति उसके जीडीपी विकास में आने वाली महत्वपूर्ण गिरावट का स्पष्ट संकेत दे रही है.

आर्थिक अध्ययन बता रहे हैं कि चीन अब उत्पादन में दस डॉलर की बढ़ोतरी के लिए चालीस डॉलर खर्च कर रहा है. चीन में किया गया अत्यधिक निवेश उसके उद्योग व्यवसाय पर असर डाल रहा है. चीन पर कर्ज बढ़ता जा रहा है. चीन की दूसरी बड़ी आर्थिक चिंता यह है कि सस्ते श्रमबल के आर्थिक मॉडल पर टिकी उसकी अर्थव्यवस्था में घटते हुए श्रमबल से उत्पादन और विकास दर घटने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है.

इस सबके मद्देनजर भारत अब नई व्यापार वार्ता के दौरान चीन के साथ भारतीय आर्थिक हितों को अच्छी तरह प्रस्तुत कर सकेगा. इसमें कोई दो मत नहीं कि भारत और चीन एक-दूसरे को साझा हित के भागीदार बनाएं तो दोनों देश मिलकर दुनिया की नई आर्थिक शक्ति के रूप में दिखाई दे सकते हैं.

इन दिनों दुनिया में नई आर्थिक शक्ति के रूप में उभरने वाले देशों से संबंधित जो प्रमुख रिपोर्टे प्रकाशित हो रही हैं, उनमें एकमत से भारत और चीन का नाम रेखांकित हो रहा है. अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशालय की ‘ग्लोबल ट्रेंड्स-2025 : ए र्वल्ड ट्रांसफाम्र्ड’ रिपोर्ट में बहुध्रुवीय दुनिया में भारत और चीन की पहचान प्रमुख नई आर्थिक शक्तियों के तौर पर की गई है. वैश्विक आर्थिक मंच पर कहा जा रहा है कि अगले दो दशकों में अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में बदलाव आएगा और संक्रमण के इस दौर में नई विश्व शक्तियां उभरेंगी. इसके साथ-साथ आर्थिक ताकत तथा समृद्धि पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित होगी. इस परिप्रेक्ष्य में दुनियाभर की निगाहें प्रमुख रूप से एशिया की दो आर्थिक  शक्तियों भारत और चीन की ओर लग गई हैं. भारत को टाइगर और चीन को ड्रैगन कहा जा रहा है.

भारत और चीन अपने-अपने आर्थिक और मानव संसाधनों की बदौलत दुनिया में चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं. चीन दुनिया का कारखाना बना हुआ है. भारत भी अपनी ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था, सूचना प्रौद्योगिकी, बॉयोटेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल, इंजीनियरिंग, मेडिकल तथा विज्ञान क्षेत्रों के  कारण दुनिया भर में विजय पताका फहरा रहा है. आर्थिक एवं व्यावसायिक  संबंधों में अत्यधिक  तेजी लाने के लिए भारत एवं चीन कुछ प्रमुख क्षेत्रों में मिलकर काम कर सकते हैं. ये क्षेत्र हैं- इस्पात, तेल, ऊर्जा, मशीनरी एवं अन्य मूलभूत उद्योग, अंतरिक्ष, आईटी, प्रौद्योगिकी, दवाइयां, फार्मास्युटिकल, रसायन, पर्यटन, बैंकिंग, कोयला खनन एवं खोज, बायोटेक और मनोरंजन. सॉफ्टवेयर विकास के क्षेत्र में भारत और हार्डवेयर विकास के  क्षेत्र में चीन दुनिया में सबसे आगे है. इसलिए दोनों अगर मिलकर काम करते हैं तो वे दुनिया में शीर्ष पर रहेंगे. वैीकरण के वर्तमान दौर में भारत और चीन आपसी व्यापार बढ़ाकर अपनी मित्रता को मजबूत कर सकते हैं, साथ ही दोनों मिलकर बदलती हुए दुनिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि इस दिशा में बढ़ते हुए भारत को कुछ जरूरी बातों पर ध्यान देना होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चीन के राष्ट्रपति को बढ़ते हुए व्यापार असंतुलन की चिंताओं से स्पष्ट रूप से परिचित कराना होगा. पिछले वित्त वर्ष 2013-14 में भारत-चीन व्यापार 65 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया. उम्मीद है कि यह आंकड़ा 2015-16 में 100 अरब डॉलर को पार कर जाएगा. भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार इस समय चीन के पक्ष में झुका हुआ है. दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन फिलहाल 36.5 अरब डॉलर है जो भारत के लिए चिंता का विषय है. इस असंतुलन का मुख्य कारण चीन में मजबूत नियामकीय ढांचा है जो आईटी तथा औषधि क्षेत्र में भारतीय निर्यात को हतोत्साहित करता है. भारत के लिए चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा भविष्य के लिए चिंताजनक और चुनौतीपूर्ण संकेत है. भारतीय बाजार में चीनी उत्पाद भारतीय कुटीर एवं छोटे उद्योगों के उत्पादों को तबाह करते दिखाई दे रहे हैं.

चीन और भारत के बीच होने वाली नई वार्ता के तहत हमें चीन के साथ व्यापार असंतुलन कम करने के लिए रणनीतिक प्रयास करने होंगे. हम चीन के बाजार को गंभीरता से लें और उन क्षेत्रों को समझें जहां चीन को भारत की दरकार है. भारतीय उत्पाद गुणवत्तापूर्ण और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी होते हैं. इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि चीनी उपभोक्ता और कंपनियां इनकी खरीद नहीं कर सकते. चीन के साथ व्यापार घाटे को समाप्त करने के लिए भारत से चीन को विविध प्रकार के निर्यात बढ़ाने होंगे. इसके लिए सरकार द्वारा निर्यातकों को हरसंभव प्रोत्साहन देना होगा. चूंकि चीन भारत से औसतन 30 प्रतिशत कम लागत पर वस्तुओं का उत्पादन कर रहा है, ऐसे में मुकाबला करने के लिए भारत को कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करने वाले देश के रूप में बाजार में पहचान बनाना होगी. चीन की तरह भारत को भी गुड गवर्नेंस की स्थिति बनानी होगी. प्रतिस्पर्धा में सतत सुधार तथा वित्तीय मानदंडों के प्रति जवाबदेही पर ध्यान देना होगा.

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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