बाल विवाह की सियाही धुलती क्यों नहीं!

Last Updated 16 Sep 2014 01:26:26 AM IST

यह कड़वा सच है कि हमारे देश के सामाजिक-पारिवारिक तानेबाने में बेटियां जिम्मदारी भर ही मानी जाती रही हैं.


बाल विवाह की सियाही धुलती क्यों नहीं!

ऐसी जिम्मेदारी जिससे हर परिवार जितना जल्दी हो सके मुक्त होना चाहता है. हालांकि शहरी परिवारों की सोच में बेटियों की शादी और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने को लेकर कई बदलाव आए हैं पर दूर-दराज के गांवों में आज भी बाल विवाह की कुरीति का दंश कायम है. बाल विवाह की रोकथाम के लिए जनमानस में वातावरण बनाने की अनिगनत सरकारी कवायदों के बावजूद यह कुप्रथा आज भी समाज में व्याप्त है. यूनिसेफ की एक  रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि भारत से बाल-विवाह की कुरीति के उन्मूलन में अभी 50 साल का समय लगेगा.

संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी यूनिसेफ की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बाल विवाह के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है. ‘इम्प्रूविंग चिल्ड्रेन्स लाइव्स ट्रांसफॉर्मिंग द फ्यूचर-25 ईयर ऑफ चाइल्ड राइट्स इन साउथ एशिया’ में यह सच सामने आया है. इस फेहरिस्त में बांग्लादेश पहले स्थान पर है.

गौरतलब है कि कुछ ही समय पहले संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की हर तीसरी बालिका वधू भारत में है. यूनिसेफ की रिपोर्ट  ‘एंडिंग चाइल्ड मैरिज-प्रोग्रेस एंड प्रोस्पेक्ट’ के मुताबिक भारत बाल विवाह के मामले में दुनिया के शीर्ष दस देशों में शामिल है. ऐसे में सवाल है कि बाल विवाह की रोकथाम के लिए बने कड़े कानूनों और जन जागरूकता लाने वाली सरकारी योजनाओं और नीतियों के क्रियान्वन में ऐसी कौन सी कमियां हैं जो यह कुरीति आज भी कायम है? ऐसे में इस कुप्रथा के उन्मूलन के लिए अन्य कई कारणों पर विचार करना जरूरी है.

संयुक्त राष्ट्र की इस बाल सहायता संस्था (यूनिसेफ) के अनुसार दुनिया भर में आज 70 करोड़ ऐसी महिलाएं हैं जिनकी शादी नाबालिग आयु में हुई है. इनमें से बाल विवाह के लगभग 50 फीसद मामले केवल दक्षिण एशिया से हैं. एक बड़ी संख्या में बाल विवाह का दंश झेलने वाली लड़िकयां भारत में बसती हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में एक तिहाई बालिका वधू भारत में रहती हैं. बचपन में ब्याह दिये जाने और शिक्षित होने का भी सीधा सीधा संबंध है.

यूनिसेफ के आंकड़े इस बात को और पुख्ता करते हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक दसवीं तक पढ़ी लड़कियों की तुलना में कम शिक्षित लड़कियों की शादी होने की संभावना 5.5 फीसद अधिक होती है. हमारे देश में भी साक्षरता का प्रतिशत जहां अधिक है, वहां बाल विवाह कम होते हैं. भारत में केरल में चाइल्ड मैरिजेज का प्रतिशत सबसे कम है जबकि राजस्थान पहले नंबर पर है.

कच्ची उम्र में विवाह के बंधन में बांध दिए जाने वाले बच्चों का जीवन कितना तकलीफों भरा हो सकता है यह समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं. यहां तक कि उन अभिभावकों के लिए भी नहीं जो खुद इन मासूमों को नव-दंपत्ति के रूप में आशीर्वाद देते हैं. आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि जो अभिभावक अपने बच्चों का बाल विवाह करवा देते हैं उनमें जागरूकता की कमी है या वे अशिक्षित होते हैं.

बाल विवाह जैसी कुरीति के विषय में अधिकतर यहीं तक बात होती है कि गांवों के लोगों में जनचेतना की कमी है, लोग अशिक्षित हैं और यह नहीं समझते कि बाल विवाह यानी बचपन में बनने वाले इस रिश्ते का उनके मासूम बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव होगा? बाल विवाह जैसी कुरीति के चलते बेटियों की सेहत व शिक्षा दोनों प्रभावित होते हैं. उनकी पढ़ाई छूट जाती है. घरेलू हिंसा और कम उम्र में मां बनने के चलते वे कई मानसिक और शारीरिक रोगों से घिर जाती हैं. परिणाम सबके सामने हैं. फिर भी यह कुप्रथा अपनी जड़े जमाए है. आखिर क्यों?

दरअसल आज के दौर में हकीकत इसके विपरीत है. दूर दराज के गांवों में माता-पिता दोनों जागरूक हैं और यह भी भली भांति जानते-समझते हैं कि बाल बिवाह जैसी कुरीति उनके बच्चों का बचपन और जीवन दोनों ही छीन लेती है. खुद  सात साल की उम्र में ब्याही गई किसी मां से ज्यादा इस बात को कौन समझ सकता है कि कम उम्र में गृहस्थी संभालने की तकलीफें क्या होती हैं? फिर भी वह खुश होती है कि उसकी बेटी का घर-द्वार जल्द से जल्द बस जाएगा और वह बेटी के ब्याह की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी.

सवाल है कि सब कुछ जानते समझते हुए भी देश के कई हिस्सों में बाल विवाह जैसी कुरीति आज भी क्यों जारी है? आज भी बच्चों के अभिभावक ऐसा निर्णय क्यों लेते हैं जिसके दुखद परिणामों से वे वाकिफ हैं?

वास्तव में बच्चों से उनका बचपन छीन लेने वाली इस कुरीति के पीछे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिंक कारणों की लंबी फेहरिस्त है. किसी के पास देने के लिए दहेज नहीं तो किसी की सामाजिक हैसियत    इतनी कम है कि बेटी को उसे दबंगों की बुरी नजर से बचाने के लिए कम उम्र में ब्याह देना ही एकमात्र विकल्प लगता है. कोई बेटे का ब्याह कम उम्र में इसलिए करना चाहता है क्योंकि भय होता है कि कुछ साल बाद शायद उसे दुल्हन न मिल पाए.

कहने का आशय यही है कि जागरूकता की कमी एक कारण हो सकता है पर इससे बड़े कई दूसरे कारण हैं जिसके चलते कानून आते-जाते रहते हैं पर यह कुप्रथा जस की तस अपनी जड़ें जमाये हुए है. हकीकत यह है कि आज बाल विवाह के साथ चाइल्ड ट्रैफिकिंग और बेमेल शादियों जैसी कुरीतियां और जुड़ गई हैं, नतीजतन यह कुप्रथा और भी ज्यादा विकृत हो चली है.

बाल विवाह के लिए अशिक्षा और जागरूकता की कमी से ज्यादा बड़े कारण दहेज, गरीबी और सामाजिक असुरक्षा है. इसीलिए समग्र रूप से बाल विवाह जैसी कुरीति मिटाने के लिए इन सारे कारणों पर विचार करना जरूरी है. सामाजिक मान्यता और स्वीकार्यता के बिना कोई कानून काम नहीं कर सकता. जब तक सामाजिक सुरक्षा और सम्मान की परिस्थितियां समाज के हर व्यक्ति के हिस्से नहीं आयेंगीं ऐसी कुरीतियां फलती-फूलती रहेंगीं.

डॉ मोनिका शर्मा
लेखक


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