इंजीनियरिंग में इनोवेशन की जरूरत

Last Updated 15 Sep 2014 04:20:23 AM IST

पिछले दिनों शिक्षक दिवस पर देश भर के स्कूली छात्रों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि युवाओं में प्रतिभा का विकास होना चाहिए.


महान इंजीनियर भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया (फाइल फोटो)

उन्होंने डिग्री के बजाय योग्यता को महत्व देते हुए कहा था कि छात्रों को स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देना होगा. आज देश में बड़ी संख्या में इंजीनियर पढ़-लिख कर निकल रहे हैं लेकिन उनमें स्किल की बहुत बड़ी कमी है. इसी वजह से लाखों इंजीनियर हर साल बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. इंडस्ट्री की जरूरत के हिसाब से उन्हें काम नहीं आता. एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश में 15 लाख इंजीनियर बनते हैं लेकिन उनमें से सिर्फ चार लाख को ही नौकरी मिल पाती है, शेष सभी बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर हैं. देश के 13 राज्यों के 198 इंजीनियरिंग कॉलेजों में फाइनल ईयर के 34 हजार विद्यार्थियों पर हुए एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक देश के सिर्फ 12 फीसद इंजीनियर नौकरी पाने के काबिल हैं. इस सर्वे ने भारत में उच्च शिक्षा की शर्मनाक तस्वीर पेश की है. यह आंकड़ा चिंता को खासा बढ़ाने वाला है क्योंकि स्थिति साल दर साल खराब ही होती जा रही है.

देश में इंजीनियरिंग को नई सोच और दिशा देने वाले महान इंजीनियर भारत रत्न मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया की जयंती 15 सितम्बर को इंजीनियर्स डे या अभियंता दिवस के रूप में मनाया जाता है. विश्वेश्वरैया अपने समय के सबसे प्रतिभाशाली इंजीनियर थे जिन्होंने बांध और सिंचाई व्यवस्था के लिए नए तरीकों का ईजाद किया. उन्होंने आधुनिक भारत में सिंचाई की बेहतर व्यवस्था और नवीनतम तकनीक पर आधारित नदी पर बांध बनाए तथा पनबिजली परियोजना शुरू करने की जमीन तैयार की. सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण की तकनीक में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. विश्वेश्वरैया ने कावेरी नदी पर उस समय एशिया के सबसे बड़े जलाशय का निर्माण किया और बाढ़ बचाव प्रणाली विकसित कर हैदराबाद पर मंडराते बाढ़ के खौफ को खत्म किया था. आज से लगभग 100 साल पहले जब साधन और तकनीक इतनी ज्यादा उन्नत नहीं थी, विश्वेश्वरैया ने आम आदमी की समस्याओं को सुलझाने के लिए इंजीनियरिंग में कई तरह के इनोवेशन किए और व्यावहारिक तकनीक के माध्यम से आम आदमी की जिंदगी को सरल बनाया. असल में इंजीनियर वह नहीं है जो सिर्फ मशीनों के साथ काम करें, बल्कि वह है जो किसी भी क्षेत्र में अपने मौलिक विचारों और तकनीक के माध्यम से मानवता की भलाई के लिए काम करे.

देश और समाज के निर्माण में एक इंजीनियर की रचनात्मक भूमिका कैसे होनी चाहिए, इस बात को विश्वेश्वरैया के प्रेरणादायक जीवन गाथा से जाना और समझा जा सकता है. विश्वेश्वरैया न केवल एक कुशल इंजीनियर थे  बल्कि देश के सर्वश्रेष्ठ योजना शिल्पी, शिक्षाविद और अर्थशास्त्री भी थे. तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा वर्ष 1928 में तैयार पंचवर्षीय योजना से भी आठ वर्ष पहले 1920 में अपनी पुस्तक \'रकिंस्ट्रक्टिंग इंडिया\' में उन्होंने भारत में पंचवर्षीय योजना की परिकल्पना प्रस्तुत कर दी था. 1935 में उनकी एक पुस्तक \'प्लांड इकोनॉमी फॉर इंडिया\' देश के विकास की योजना बनाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी. 98 वर्ष की उम्र में भी उन्होंने प्लानिंग पर एक पुस्तक लिखी. ईमानदारी और कर्तव्य के प्रति वचनबद्धता उनके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी. बंगलुरु स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स की स्थापना में भी उनकी खास भूमिका रही.

गांधी जी ने कहा था कि देश की समग्र उन्नति और आर्थिक विकास के लिए तकनीकी शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण होना बहुत जरूरी है. उन्होंने इसे प्रभावी बनाने के लिए कहा था कि कॉलेज में हाफ-हाफ सिस्टम होना चाहिए, यानी आधे समय में किताबी ज्ञान दिया जाए और आधे समय में उसी ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष बताकर उसका प्रयोग सामान्य जिंदगी में कराया जाए. भारत में तो गांधी जी की बात ज्यादा सुनी नहीं गई, पर चीन ने उनकी इस बात को पूरी तरह से अपनाया  और आज स्थिति यह है कि चीन उत्पादन के मामले में  भारत से बहुत आगे है, भारतीय बाजार चीनी सामानों से भरे पड़े है.

वास्तव में हम अपने ज्ञान को बहुत ज्यादा व्यावहारिक नहीं बना पाए हैं. नंबरों के होड़ वाली शिक्षा प्रणाली में तो बस रटे गए ज्ञान का लिखित परीक्षायों के माध्यम से मूल्यांकन से होता है. इस तरह की मूल्यांकन और परीक्षा प्रणाली नई सोच और मौलिकता के लिए ठीक नहीं है. आज तकनीकी शिक्षा में, खासतौर पर इंजीनियरिंग में इनोवेशन (नवप्रवर्तन) की जरूरत है. सिर्फ रटे-रटाए ज्ञान की बदौलत हम विकसित राष्ट्र बनने का सपना साकार नहीं कर सकते. अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी. भारत  पिछले छह दशकों के दौरान अपनी अधिकांश प्रौद्योगीकीय जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से करता रहा है. देश की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय उद्योग के कौशल संसाधनों एवं प्रतिभाओं का बेहतर उपयोग करना जरूरी है. आयातित तकनीक पर निर्भरता से हम ब्लैकमेल का शिकार भी हो सकते हैं. मध्यम और लघु उद्योगों की प्रौद्योगिकी के  आधुनिकीकरण व स्वदेशीकरण में अहम भूमिका हो सकती है. देश में स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरूरत है और इस बाबत जो भी समस्याएं हैं उन्हें सरकार को अविलंब दूर करना होगा. तभी सही मायनों में हम विकसित राष्ट्र बन पाएंगे.

सर विश्वेश्वरैया ने देश के भावी इंजीनियरों को संदेश देते हुए कहा था कि मानवता की भलाई तथा देश के वातावरण को ध्यान में रखते हुए राष्ट्र निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान करें. एक व्यक्ति के तौर पर अपने कार्य और समय के प्रति जो लगन, निष्ठा, प्रतिबद्धता उनमें थी, वह शायद ही किसी और में देखने को मिले. यदि वे चाहते तो अपनी काबलियत के आधार पर विदेश में कार्य कर सकते थे, लेकिन उन्होंने भारत भूमि की सेवा को सर्वोपरि रखा. निष्ठा और लगन के कारण ही विश्वेश्वरैया आज देश के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों व अन्य बुद्धिजीवियों में पूजनीय हैं.

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय हमारा इंजीनियरिंग व प्रौद्योगिकी ढांचा न तो विकसित देशों जैसा मजबूत था और न ही संगठित. इसके बावजूद प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमने काफी कम समय में बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं. स्वतंत्रता के बाद भारत का प्रयास यही रहा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन भी लाया जाए ताकि देश के जीवन स्तर में संरचनात्मक सुधार हो सके. इस उद्देश्य में हम कुछ हद तक सफल भी रहे हैं, लेकिन अब भी इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी को आम जनमानस से पूरी तरह से जोड़ नहीं पाए हैं. आज देश को विश्वेश्वरैया जैसे इंजीनियरों की जरूरत है और इसके लिए देश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई को और आकषर्क, व्यावहारिक और रोजगारपरक बनाने की आवश्यकता है.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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