भारत-अफगानिस्तान में रक्षा सहयोग

Last Updated 15 Sep 2014 04:10:22 AM IST

इस सप्ताह उर्दू प्रेस पर जम्मू कश्मीर में बाढ़ की समस्या, दिल्ली में सरकार बनाने या चुनाव कराने पर बहस, भारत-अफगान संबंधों में सहयोग की संभावनाएं और योगी आदित्यनाथ को चुनाव आयोग की फटकार सबसे ज्यादा छाए रहे.


भारत-अफगानिस्तान में रक्षा सहयोग (फाइल फोटो)

इनके अलाव तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के मीडिया विरोधी बयान पर विवाद, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ चार्जशीट की वापसी, यूके में स्कॉटलैंड की आजादी पर विवाद और इस्लाम के नाम पर आईएस आतंकवादियों की अमानवीय गतिविधियां  जैसे मुद्दों पर अनेक अखबारों ने  संपादकीय भी प्रकाशित किए हैं.

उर्दू दैनिक \'मुंसिफ\' हैदराबाद ने \'तेलंगाना की जनता को वादों के पूरा होने की प्रतीक्षा\' शीषर्क के तहत अपने संपादकीय में लिखा है कि तेलंगाना की जनता को अब भी यह एक स्वप्न ही लग रहा होगा कि अलग राज्य का उनका ख्वाब न सिर्फ पूरा हो गया है बल्कि राज्य की पहली सरकार, जिसका नेतृत्व टीआरएस कर रही है, के सौ दिन भी पूरे हो गए हैं. अलग राज्य की प्राप्ति के लिए यहां की जनता ने अनगिनत बलिदान दिए. यह बात स्वाभाविक है कि उसकी आशाएं भी बहुत ज्यादा होंगी क्योंकि पिछले कई दशकों से वह अन्याय और उपेक्षा का कष्ट अनुभव कर रही थी. आंध्र के शासक व पूंजीपति उनकी जमीनों व रोजगार पर शासन करने के उनके अधिकार पर कब्जा किए हुए थे और उन्होंने तेलंगाना की संस्कृति को अपनी संस्कृति में मिला दिया. यहां ने शिक्षित नवयुवकों को अपने यहां \'चपरासी\' के रूप में रखा. तेलंगाना के निवासियों के साथ अन्याय करने में कोई कसर उठा नहीं रखी गई. कई दशकों तक इस अन्याय को झेलने के बाद अब कहीं जाकर तेलंगाना की जनता को उसका अधिकार मिला है.

उर्दू दैनिक \'राष्ट्रीय सहारा\' ने \'भारत-अफगान रक्षा सहयोग\' शीषर्क के तहत अपने संपादकीय में लिखा है कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की अफगानिस्तान यात्रा ऐसे समय में हुई है जब वहां नए राष्ट्रपति की जल्द ही घोषणा होने वाली है और हामिद करजई 13 वर्ष बाद देश की सत्ता छोड़ रहे हैं. इसी वर्ष के अंत तक नाटो सेनाओं को भी अफगानिस्तान छोड़ देना है. इन हालात में भारत-अफगानिस्तान में रक्षा सहयोग पर रचनात्मक बातचीत दोनों ही देशों के हित में है. तालिबान के शासनकाल में भारत के अफगानिस्तान के साथ संबंध भले ही खराब रहे हों लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से भारत और अफगानिस्तान अच्छे दोस्त रहे हैं और दोनों की सांस्कृतिक धरोहर में काफी समानता है.

भारत शुरू से ही अफगानिस्तान को हर संभव सहायता देता आया है और वहां के निर्माण व विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता आया है. पिछली एक दशक से ज्यादा समय से अफगानिस्तान की विभिन्न रचनात्मक योजनाओं पर भारतीय विशेषज्ञ काम कर रहे हैं. कई क्षेत्रों में भारतीय एक्सपर्ट और इंजीनियर्स इत्यादि भी अफगानिस्तान में तमाम खतरों के बावजूद अपना कर्त्तव्य निभा रहे हैं. जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में भारत द्वारा अफगानिस्तान को दिया जाने वाला सहयोग साफ नजर आ रहा है और इसी का परिणाम है कि अफगानिस्तान में भारत को लेकर एक विशेष भावना पाई जाती है. जहां तक दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग का प्रश्न है, तो इसमें अभी काफी गुंजाइश है. वास्तव में इस वर्ष के अंत तक अफगानिस्तान से नाटो सेनाओं को विदा होना है. इसके बाद के परिदृश्य में भारत की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है.

उर्दू दैनिक \'इंकलाब\' ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के मीडिया विरोधी बयान की आलोचना करते हुए अपने संपादकीय में लिखा है कि ऐसा लगता है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री अलग राज्य के लिए अपने संघर्ष की सफलता और इस नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनने के सम्मान को पचा नहीं पा रहे हैं. उनका मीडिया विरोधी बयान इस योग्य है कि उसे आपत्तिजनक और निंदनीय करार दिया जाए. विशेष रूप से इस बयान के शब्द आपत्तिजनक हैं. उन्होंने कहा कि यदि कोई पत्रकार तेलंगाना की संस्कृति, जनता और भाषा का अपमान करता है तो वह उसे जमीन के अंदर दफन कर देंगे. वे कह सकते थे कि वह उसे सहन नहीं करेंगे, क्षमा नहीं करेंगे या उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे, परंतु किसी को दफन (गाड़ने) की चेतावनी कदापि उनको शोभा नहीं देती.

असद रजा


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