जिंदगी संवरने के इंतजार में आम आदमी

Last Updated 02 Sep 2014 12:37:29 AM IST

यकीनन पिछले तीन महीनों में मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए जो कदम उठाए गए हैं उससे देश का आर्थिक चेहरा संवर रहा है.




जिंदगी संवरने के इंतजार में आम आदमी

28 अगस्त से शुरू प्रधानमंत्री जन-धन योजना से आम आदमी के चेहरे पर आर्थिक मुस्कराहट लाने का सराहनीय प्रयास हुआ है. लेकिन देश में मानव विकास संबंधी चमक लाना अभी चुनौतीपूर्ण कार्य है. यह कार्य कितना चुनौतीपूर्ण है, इसका अनुमान मानव विकास संबंधी कुछ महत्वपूर्ण और नवीनतम अध्ययन रिपोर्टों से लग सकता है. जुलाई 2014 में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की मानव विकास सूचकांक रिपोर्ट 2013 में 187 देशों की सूची में भारत को 135वें स्थान पर रखा गया है. बांग्लादेश और पाकिस्तान क्रमश: 142वें और 146वें स्थान पर हैं. कहा गया है कि ब्रिक्स देशों के बीच भारत का मानव विकास सूचकांक मूल्य सबसे कम है. रूस, ब्राजील, चीन व दक्षिण अफ्रीका मानव विकास सूचकांक वर्ग में क्रमश: 57वें, 79वें, 91वें और 118वें क्रम पर हैं. स्वस्थ जीवन, शिक्षा सुविधा और अच्छे जीवन स्तर पर आधारित यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक में संकेत है कि भारत को अपनी जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने की दिशा में लम्बा सफर तय करना है.

इस रिपोर्ट की तरह अमेरिका स्थित ख्यात सामाजिक शोध संस्थान ‘सोशल प्रोग्रेस इंपेरेटिव’ द्वारा दुनिया के 132 देशों के सामाजिक विकास की स्थिति को बताने वाला जो ‘सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स 2014’ प्रकाशित किया गया है, उसमें भारत 102वें पायदान पर है. इसी तरह वैश्विक भुखमरी इंडेक्स-2013 में भारत 63वें क्रम पर है. देश के करीब 21 करोड़ लोग भुखमरी से ग्रस्त हैं. विश्व दासता सूचकांक-2013 के सव्रेक्षण के अनुसार दुनिया भर के 162 देशों में तकरीबन दो करोड़ 98 लाख लोग दासता की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं. इनमें से एक करोड़ 39 लाख लोग भारत में हैं.

वस्तुत: देश में लोगों के मानवीय विकास, सामाजिक विकास एवं स्वस्थ जीवन की राह में कई बाधाएं हैं. संयुक्त राष्ट्र की सहस्रब्दि विकास लक्ष्य रिपोर्ट (मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स रिपोर्ट) 2014 के मुताबिक दुनिया के निर्धनतम लोगों की 2.2 अरब आबादी का 32.9 प्रतिशत हिस्सा भारत में है. बाल मृत्यु दर भी भारत में सर्वाधिक है. भारत में महिलाओं की घटती संख्या भी स्वस्थ जीवन की राह की चुनौती है. 2011 की जनगणना में बताती है कि हर 1000 लड़कों पर जन्म लेने वाली लड़कियों की संख्या 943 है. 1981 में 1000 लड़कों पर 962 लड़कियां जन्म ले रही थीं. अनुमानत: 1981 से 2011 के बीच एक करोड़ 20 लाख कन्या भ्रूण का गर्भपात कराया गया. स्पष्ट है, भारत में लैंगिक असमानता के मामले में देश की हालत बहुत खराब है. शिक्षा और आर्थिक समानता के मोच्रे पर तो स्थिति और भी बुरी है. शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारा देश अन्य विकासशील देशों के मुकाबले बहुत कम धन खर्च करता है.

इस समय देश के आर्थिक परिदृश्य पर उभरकर सामने आ रही खाद्य वस्तुओं की महंगाई, महंगी शिक्षा, महंगी स्वास्थ्य सुविधाएं, महंगा आवास व रोजगार संबंधी चुनौतियां आम आदमी की मुश्किलें बढ़ाती दिख रही हैं. एक तरफ शहरों का विकास हो रहा है लेकिन गांवों में रोजगार के साधन खत्म होते गए हैं. सरकार ने निर्धनता उन्मूलन के लिए जो योजनाएं चलाई हैं, वे भ्रष्टाचार भेंट चढ़ चुकी हैं.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस)  गरीबों को सस्ती दर पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए बनी है लेकिन आज देश भर में करीब दो करोड़ फर्जी कार्ड बने हैं जिनके जरिए पीडीएस का अनाज जरूरतमंदों तक पहुंचने की बजाय खाते-पीते लोगों की झोली में पहुंच रहा है. इसी तरह मनरेगा में भी अनियमितता की खबरें सुनने में आती रही हैं. परिणामस्वरूप देश के सामान्य लोग जीवन की खुशियों से दूर खड़े हैं.

लोग बड़ी संख्या में उद्योग-व्यवसाय में रोजगार संकट से जूझते दिख रहे हैं. भारत में  करीब 40 करोड़ श्रमबल में से केवल दस प्रतिशत ही संगठित क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जिसे आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा की छतरी उपलब्ध है. शेष 90 प्रतिशत श्रम बल को यह छतरी उपलब्ध नहीं है. इन सबसे आम आदमी के सामाजिक विकास एवं जीवनस्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. निश्चित रूप से ये विभिन्न मानव विकास रिपोर्टे हमारे लिए अवसर हैं कि आगे हम देश के प्रदर्शन को सुधारें.

ध्यान रखना होगा कि वैीकरण की चकाचौंध में यदि गरीबों और निम्न वर्ग की बुनियादी जरूरतों की यथेष्ठ पूर्ति होगी तभी इससे उनकी कार्यक्षमता बढ़ेगी और वे भी विकास में योगदान दे सकेंगे. सरकार को यह भी ध्यान देना होगा कि वह आय और धन के वितरण की भारी असमानता मिटाने के परिप्रेक्ष्य में कमजोर वर्ग के लोगों की आय बढ़ाने के कारगर प्रयास करे. रंगराजन समिति ने गरीबी की जो नई रेखा निर्धारित की है, उसके आधार पर सभी वास्तविक जरूरतमंदों को सरकारी योजनाओं के लाभ पहुंचाए जाएं. सरकार को महंगाई घटाने के ठोस उपाय करने चाहिए. थोक व खुदरा व्यापार के आधुनिकीकरण के साथ बिचौलियों की मुनाफाखोरी पर नियंत्रण से महंगाई कम करके आम आदमी को राहत दी जानी चाहिए. सरकार द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अधिक कारगर प्रयास होने चाहिए.

श्रमिकों और निजी क्षेत्र के कम वेतनभोगियों के सामाजिक विकास एवं बेहतर जीवन स्तर के लिए भी नए कदम उठाए जाएं. उद्योगपतियों व व्यवसायियों को भी स्वीकारना होगा कि उनके उद्यम-व्यवसाय की प्रगति उनके कर्मचारियों के अच्छे जीवन स्तर पर निर्भर है अत: कर्मचारियों के बेहतर जीवन स्तर के लिए प्रयास हों. देश की अर्थव्यवस्था क्योंकि पूंजीवाद, निजीकरण और उदारीकरण की डगर पर आगे बढ़ रही है, ऐसे में केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा आम आदमी के सामाजिक विकास व बेहतर जीवन स्तर के लक्ष्यों के लिए बजट आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए. ऐसे विभिन्न कदम देश में सामाजिक विकास और खुशहाली बढ़ाने में मददगार होंगे.

जरूरी होगा कि आम आदमी और गरीबों की क्षमताओं को नई दिशा देकर रोजगार के अवसरों की ओर प्रवृत्त करें. गांवों में मनरेगा को व्यापक और प्रभावी बनाया जाए. सरकार को हरसंभव प्रयास करना होगा कि आर्थिक  विकास की चमक के लाभ आम आदमी तक  भी अवश्य पहुंचें. हम आशा करें कि मोदी सरकार आने वाले वर्षो में स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के लिए रणनीतिक कदम उठाएगी जिससे आम आदमी के चेहरे पर भी कुछ मुस्कराहट आ सकेगी. ऐसा होने पर ही आने वाले वर्षो में विभिन्न मानव विकास रिपोर्टों में भारत की स्थिति संतोषजनक दिख सकेगी.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment