जन-धन योजना से वंचितों को आर्थिक न्याय

Last Updated 28 Aug 2014 12:39:11 AM IST

जन-धन योजना के जरिए देश के सबसे पिछड़े और उपेक्षित तबके को भी मान्य बैंकों की सेवा का फायदा मिलने से उनके जीवन में आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण की नई सुबह का आगाज होगा.


जन-धन योजना से वंचितों को आर्थिक न्याय

इसके साथ ही देश के इस वंचित तबके को साहूकारों के चंगुल से आजाद कराने के लिए पिछले आठ सालों से चल रही तैयारी सफल हो जाएगी. देश की कुल जनसंख्या में इस तबके की आबादी करीब एक-चौथाई है. समाज के हाशिये पर जी रहे इन लोगों को आर्थिक आजादी मिलने का एहसास 28 अगस्त से होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी दिन अपनी राजग सरकार की प्रधानमंत्री जन-धन योजना का उद्घाटन करेंगे. इस योजना का ऐलान उन्होंने 15 अगस्त को बतौर प्रधानमंत्री लाल किले से अपने पहले भाषण में किया था. हालांकि इसका उल्लेख वित्तमंत्री अरुण जेटली अपने बजट भाषण में भी कर चुके हैं. इस अभियान के तहत अगले चार साल के दौरान सरकारी मान्यता प्राप्त बैंकों में सरकारी पहल पर करीब 14 करोड़ लोगों के खाते खोले जाएंगे.

यह लोग देश के अति पिछड़े और गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे सात करोड़ परिवारों के प्रतिनिधि होंगे. ऐसे हरेक परिवार से दो लोगों का खाता खोला जाएगा. यह योजना दरअसल यूपीए सरकार की डीबीटी यानी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना का ही राजगीय स्वरूप है. इस खाते को आधार कार्ड से जोड़ा जाएगा. यह इन परिवारों को विभिन्न मदों में मिलने वाली सरकारी सब्सिडी को सीधे इनके बैंक खाते के माध्यम से देने की भी मुहिम है. ऐसा माना जा रहा है कि इससे सब्सिडी का फायदा सीधे सबसे गरीब तबके को मिलेगा तथा उसकी चोरी करने वाले दलालों की छुट्टी हो जाएगी. इसीलिए इन परिवारों को खाता खोलते ही डेबिट कार्ड और एक लाख रुपए के दुर्घटना बीमा की सुविधा भी दी जाएगी. इस डेबिट कार्ड से यह परिवार सरकारी खाते से अपने खाते में सीधे आने वाली सब्सिडी यानी अनुदान की राशि निकालने अथवा उस मद में खरीदारी करने की सुविधा भी पाएंगे.

प्रधानमंत्री जन-धन योजना लागू करके मोदी सरकार अपनी गरीबनवाज छवि बनाकर उसे आगामी विधानसभा चुनावों में भी भुना सकती है. इसीलिए डीबीटी को कुछ नई सुविधाओं के साथ आनन-फानन में रीलांच किया जा रहा है. यह योजना अगले छह महीने में ही हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के प्रचार में विपक्ष द्वारा मोदी सरकार पर कॉरपोरेट की पिट्ठू सरकार होने के आरोपों की धार भोथरी करने में भी मददगार होगी. इसीलिए प्रधानमंत्री ने जन-धन योजना को राष्ट्रीय प्राथमिकता बताते हुए बैंक प्रमुखों से इसके लिए अपनी कमर कसने को कहा है. उनके अनुसार बैंकों को इसकी अहमियत समझनी होगी क्योंकि महज इस एक कमी से बाकी सभी विकास योजनाएं अटकती आ रही हैं. मोदी ने इसे अपनी पार्टी के चुनावी नारे ‘सबका साथ-सबका विकास’ पर अमल का महत्वपूर्ण अंग बताया है. उनके अनुसार बैंक में एक खाता खुलने से हरेक परिवार को बैंकिंग एवं कर्ज की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी जो उन्हें वित्तीय संकटों और साहूकारों के चंगुल से बचाएगी. प्रधानमंत्री के अनुसार आगे से इन परिवारों को बीमा और पेंशन की सुविधा भी इस खाते के माध्यम से दी जाएगी. 

प्रधानमंत्री जन-धन योजना को सफल बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक और सरकारी व्यावसायिक बैंकों ने पिछले पांच साल में कड़ी मेहनत की है. इसके लिए सरकारी व्यावसायिक बैंकों ने 2013-14 के दौरान नए इलाकों में 7840 नई शाखाएं खोली हैं. इससे पहले 2012-13 में इन बैंकों ने 4432 नई शाखाएं खोली थीं. इसी तरह जन-जन को बैंक से आसानी से नकदी निकालने की सुविधा देने के लिए सरकारी व्यावसायिक बैंक इस साल जनवरी तक ही देश भर में 96,853 स्वचालित एटीएम मशीन लगा चुके हैं. अप्रैल, 2013 से जनवरी, 2014 के बीच इन बैंकों ने करीब 30 हजार नई एटीएम मशीनें चालू करके जन-धन योजना की जमीन तैयार की है.

सबसे गरीब तबके को साहूकारों के शिकंजे से मुक्त करके संस्थागत वित्तीय सुविधाएं देने की तैयारी दरअसल यूपीए सरकार के वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने शुरू की थी. उनके बाद साल 2009 में यूपीए के दुबारा चुनाव जीतने पर अपने बजट भाषण में तत्कालीन वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने इसे वित्तीय समावेशन कार्यक्रम नाम दिया था. प्रणब मुखर्जी ने देश के सबसे गरीब तबके के वित्तीय समावेशन की जरूरत बताते हुए व्यावसायिक बैंकों की शाखाएं गांवों में भी खोलने पर जोर दिया था. बजट में इसके लिए 100 करोड़ रुपए तथा उसके बाद के बजटों में और अधिक राशि का प्रावधान था.

साल 2013 तक देश के हरेक ब्लॉक में व्यावसायिक बैंक की कम से कम एक शाखा खोल दिए जाने का लक्ष्य प्रणब मुखर्जी ने तय किया था. वैसे भी तब तक व्यावसायिक बैंक बिना किसी धरोहर राशि अथवा मामूली धरोहर राशि वाले करीब सवा तीन करोड़ खाते खोल चुके थे. दूर-दराज इलाकों में बैंकों की शाखाएं खोलने की मुहिम को बढ़ाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक के नई बैंक शाखा खोलने की मंजूरी संबंधी नियमों में भी ढील दिलाई गई. इन्हीं सब प्रयासों की बदौलत इस योजना के तहत अगले चार-पांच साल में इतनी बड़ी संख्या में वंचित परिवारों को भी संस्थागत वित्त की सहूलियत मिलने लगेगी.

बैंक में खाता न होने के कारण यह वर्ग कानूनन आजादी पाने के सड़सठ साल बाद तक इस सबसे जरूरी हक से वंचित रहा है. इसी वजह से यह तबका साहूकारों के हाथों पीढ़ी दर पीढ़ी पेरा जाता रहा है. साहूकार से एक बार कर्ज लेने की खता करते ही उसके जरखरीद गुलाम बन कर बेगारी करने के अलावा कोई चारा इन लोगों के पास नहीं बचता. जाहिर है, किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसी अमानवीय प्रथाओं के लिए कोई जगह नहीं हो सकती. इसीलिए जन-धन योजना को ‘देर आयद मगर दुरुस्त आयद’ कहा जा सकता है. इससे शहरी गरीबों को भी भारी राहत मिलेगी जो आपात जरूरत होने पर सूदखोरों से दस रुपए सैकड़े की ऊंची दर पर कर्ज लेते हैं. उसे चुकाने में जाहिर है कि उनकी कमर टूट जाती है जिसका खमियाजा उनके परिवार को भी भुगतना पड़ता है.

इस योजना में बैंक खाता घर की प्रमुख महिला के नाम खोले जाने से पूरे परिवार को फायदा होगा. इसके पीछे यह मान्यता ही नहीं तथ्य भी है कि औरतें अपने हाथ का पैसा अमूमन घर और बच्चों की सही परवरिश पर खर्च करती हैं. उनके मुकाबले मदरे द्वारा अपनी कमाई अथवा अन्य मदों में मिलने वाले पैसों को अय्याशी में उड़ा देने की तलवार पूरे परिवार के सिर पर हमेशा लटकती रहती है. इस खाते के सहारे औरतों को छोटे-मोटे काम-धंधे के लिए कर्ज देने की उदार नीति भी सरकार आगे बना सकती है. केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के अनुसार इस योजना का जोर महिलाओं, मजदूरों, लघु और सीमांत किसानों जैसे समाज के सबसे कमजोर तबकों को सहारा देने पर रहेगा. वैसे किसानों के लिए सस्ती दरों पर कृषि ऋण की योजना भी केंद्र सरकार द्वारा साल 2004 से चलाई जा रही है.

इस मद में बतौर कर्ज किसानों को दी गई राशि पिछले वित्तीय साल में सात लाख करोड़ रुपए थी, जिसका लक्ष्य मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए बढ़ाकर आठ लाख करोड़ कर दिया गया है. इसके अलावा आदिवासियों के लिए जनजातीय उपयोजना मद में भी इस साल के लिए राशि बढ़ाकर 32,387 करोड़ रुपए तथा अनुसूचित जाति कल्याण योजना के तहत रकम 50,548 करोड़ रुपए कर दी गई है. देखना यह है कि भाजपा को लोकसभा में बहुमत दिलाने में कारगर रहे इन दोनों तबकों के साथ ही साथ सबसे वंचित वर्ग की आर्थिक मुक्ति की यह मुहिम क्या समाज के अंतिम आदमी का जीवन स्तर सुधारने के महात्मा गांधी के सपने को साकार कर पाएगी?
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

अनंत मित्तल
लेखक


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