क्रूरता की हदें पार करते आतंकी

Last Updated 28 Aug 2014 12:26:29 AM IST

आईएसआईएस के आंतकवादियों द्वारा अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले की हत्या ने दुनिया को झकझोर दिया है.


क्रूरता की हदें पार करते आतंकी

बर्बर आतंकियों ने फोले की गर्दन को बकरे की तरह रेता. दुनियाभर के मुस्लिम समूहों और नेताओं ने इस बर्बरता की निंदा करते हुए इसे गैर-इस्लामी करार दिया. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस्लामिक स्टेट के उग्रवादियों द्वारा द्वारा फैलाई जा रही नफरत रोके जाने की बात कहते हुए सभी बंधकों की तत्काल रिहाई की मांग की है.

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि जेम्स फाले की हत्या से पूरी दुनिया स्तब्ध है और कोई भी इस्लामिक स्टेट की इस कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकता. ओबामा ने कहा कि इस कैंसर से लड़ने के लिए दुनिया के सभी देश एक साथ आएं. दुनिया  में ऐसे अमानवीय विचारों के लिए कोई जगह नहीं है.  अमेरिका के विशेष अभियान दल ने ओबामा के निर्देश पर सीरिया में गिरफ्तार किए गए जेम्स फोले और अन्य अमेरिकी नागरिकों को बचाने के लिए गुप्त छापामारी अभियान भी चलाया था लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

कभी बीबीसी को दिए गए अपने एक इंटरव्यू में चालीस वर्षीय जेम्स फाले ने कहा था, ‘मैं युद्ध क्षेत्र की अनसुनी कहानियों को दुनिया के सामने लाना चाहता हूं. पत्रकारिता में आने से पहले वह एरिजोना, मैसाच्युसेट्स और शिकागो में अध्यापक थे. लेकिन इराक जैसे देशों की हकीकत जानने की उत्सुकता ने उन्हें अमेरिकी सैनिकों के बीच पत्रकारिता की राह का राही बना दिया. जेम्स सीरिया में चल रहे युद्ध का सच जानने के लिए वहां मौजूद थे. वह सीरिया जाने से पहले लीबिया में भी युद्ध कवर कर चुके थे. सीरिया में वह स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से मौजूद थे और ‘न्यूजसाइड’ ‘ग्लोबल पोस्ट’, फ्रांसीसी समाचार समिति ‘एजांस-फ्रांस’ जैसे पत्रों के लिए काम कर चुके थे.

जेम्स की निष्पक्ष निर्भीक और कुशल पत्रकारिता की सर्वत्र सराहना की जाती थी. वह किसी सरकार के एजेंट नहीं थे. न ही कोई खुफिया जासूस और न इस्लामी बागियों के खिलाफ. उनका दोष बस यही था कि वह अमेरिकी नागरिक व पत्रकार थे. इसीलिए वह अलग से पहचान लिए जाते थे. जेम्स को आईएसआईएस के आतंकियों ने सिर्फ इसलिए पकड़ लिया था क्योंकि उन्हें अमेरिका से अपना बदला निकालना था.

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, फोले को नवम्बर 2012 में उत्तरी सीरियाई प्रांत इदलिब में बंधक बनाया गया था. अहम बात यह है कि सीरिया से ‘जेम्स’ ने विपरीत हालात में रिपोर्टिंग की थी. परिवार ने उनकी खोज में ‘फाइंड जेम्स फोले’ मुहिम भी चलायी और सहायता के लिए ट्विटर अकांउट भी बनाया लेकिन उनके बारे में कोई सूचना नहीं मिली. अंतत: आतंकियों ने पिछले हफ्ते फोले की हत्या का एक वीडियो जारी कर दिया. हालांकि अब तक इसकी वैधानिकता की पुष्टि नहीं की गई है. इसे यू ट्यूब पर भी पोस्ट किया गया था जिसे बाद में हटा दिया गया. टाइटल था- ‘ए मैसेज टू अमेरिका’. वीडियो में फोले को उसी तरह का नारंगी रंग का जंपसूट पहनाया गया था जैसा अमेरिका अपने यहां के कैदियों को पहनाता है.

इराक में अमेरिकी हवाई हमलों से जिहादी समूह इस्लामिक स्टेट ने प्रतिशोध के रूप में जेम्स का सिर कलम करने का दावा किया है. अमेरिका के सबसे बड़े मुस्लिम अधिकार समूह काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस (सीएआईआर) ने कहा कि हम इन बर्बर हत्याओं की निंदा करते हैं. यह इस्लामी सिद्धांतों और संघर्ष के दौरान बंदियों तथा पत्रकारों की सुरक्षा से संबंधित वैश्विक रूप से स्वीकार किए गए अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ है.

कहा जा रहा है कि जेम्स फोले की रिहाई के लिए इस्लामी स्टेट के आंतकवादियों ने फिरौती की मोटी रकम मांगी थी जिसे देने से अमेरिका ने इंकार कर दिया था. बताया जाता है कि जेम्स की रिहाई के लिए आईएसआईएस ने 13.2 करोड़ डॉलर यानी करीब 840 करोड़ रुपया और अमेरिकी जेलों में बंद कई कैदियों को छोड़ने की मांग की थी. यह फिरौती फोले के परिवार और ऑनलाइन पोर्टल ग्लोबल पोस्ट से मांगी गई थी.

ग्लोबल पोस्ट के प्रेसीडेंट और सीईओ फिलिप बालबेनी के मुताबिक जेम्स की रिहाई के लिए आतंकियों ने पहले फिरौती मांगी थी लेकिन हत्या से पहले आखिरी संदेश में कोई मांग नहीं रखी. ग्लोबल पोस्ट के मुताबिक आईएसआईएस ने जेम्स के परिवार को 12 अगस्त को ई-मेल भेजकर बदले में एक पाकिस्तानी महिला वैज्ञानिक सहित कई बंदियों की रिहाई की मांग की थी और अमेरिका को खूब धमकाया गया था.

गौरतलब है कि पेशे से न्यूरोसर्जन और मैसाच्यूसेट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की ग्रेजुएट आफिया पर आतंकी संगठन अल कायदा से रिश्ते रखने का आरोप लगा था. 2010 में आफिया को अफगानिस्तान में अमेरिकी कर्मचारियों की हत्या की कोशिश के आरोप में 86 साल की सजा सुनाई गई थी. माना जाता है कि आफिया ने 9/11 हमले के मास्टरमाइंड खालिद शेख मोहम्मद के एक रिश्तेदार से शादी कर ली थी. हालांकि ईमेल में दावा किया गया था कि अमेरिका ने अपने पत्रकार की रिहाई के बदले में की गई कई पेशकश खारिज कर दी. लेकिन आतंकवादियों के इन प्रस्तावों में धन के साथ ही बंदियों की अदला-बदली की इच्छा भी जाहिर की गई थी.

बहरहाल, आतंकी संगठन आईएसआईएस ने चेतावनी दी है कि दूसरे अमेरिकी पत्रकार के साथ भी यही सलूक किया जाएगा. सूत्रों की मानें तो करीब 24 पत्रकारों को सीरिया में बंधक बनाया गया है इनमें स्थानीय तथा विदेशी पत्रकार दोनों शामिल हैं. इन पत्रकारों में स्टीवन सॉटलॉफ भी शामिल है. स्टीवन वही पत्रकार है जिसका फोटो फोले की हत्या के वीडियो में दिखाया गया है. फोले की हत्या करने वाला आतंकवादी कह रहा है कि अगर अमेरिका के हवाई हमले जारी रहे तो स्टीवन का अंजाम भी फोले जैसा ही होगा.

गौरतलब है कि फोले तथा कुछ अन्य अमेरिकी बंदियों को आतंकवादियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए अमेरिका द्वारा सीरिया में एक खुफिया अभियान चलाया गया था लेकिन स्थिति यह रही कि न फोले हाथ लगा और न ही कोई अन्य अमेरिकी नागरिक मिल पाया. कहा यह भी जा रहा है कि अगर अमेरिकी सरकार ने फिरौती दे दी होती तो संभवत फोले की जान बच जाती.

बहरहाल, इस घटना के बाद इराक और सीरिया के बड़े भाग पर कब्जा कर चुके आईएसआईएस के हौसले और बुलंद हुए हैं. उसके नेता अबू बकर अल बगदादी का लक्ष्य अमेरिका पर हमला करने का भी हो गया लगता है. अल बगदादी का उद्देश्य और भविष्य क्या होगा, इस बहस में न पड़कर वक्त का तकाजा है कि दुनिया के सभी देश, खासकर अरब देश अपने संकीर्ण सियासी स्वार्थों को छोड़कर आईएसआईएस के आतंक को खत्म करने के लिए पूरी तरह एकजुट हों.

रवि शंकर
लेखक


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