शोध और अनुसंधान को बढ़ाने की जरूरत

Last Updated 23 Aug 2014 12:37:19 AM IST

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के एक कार्यक्रम में वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वक्त से पहले काम करना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है.


शोध और अनुसंधान को बढ़ाने की जरूरत

डीआरडीओ के कई प्रोजेक्ट्स में पिछड़ने पर प्रधानमंत्री ने सख्त संदेश देते हुए कहा कि अब ‘चलता है’ वाला रवैया बिल्कुल नहीं चलेगा और इसे छोड़ना ही होगा. वास्तव में इस डिफेंस रिसर्च बॉडी को अब समय से पहले काम पूरा करने की योजना बनानी होगी तभी हम वि में अग्रणी बन पाएंगे. असल में डीआरडीओ के लाइट कम्बैट एयरक्रॉफ्ट तेजस, नाग मिसाइल, लंबी दूरी तक सतह से हवा में मार करनेवाली मिसाइल और एयरबर्न अर्ली वार्निग ऐंड कंट्रोल सिस्टम जैसे कई प्रोजेक्ट कई सालों से लटके पड़े हैं, जिस कारण इनकी लागत भी कई गुना बढ़ गई है. कई प्रोजेक्ट्स बजट की कमी से भी लटके पड़े हैं.

परियोजनाओं में देरी और वैज्ञानिकों के पलायन का सामना कर रहे डीआरडीओ को नया रूप देने के लिए यूपीए की पिछली सरकार ने दो साल पहले रामाराव समिति गठित की थी लेकिन इस समिति की सिफारिशें भी सरकारी लालफीताशाही का शिकार हो गई. रामाराव समिति ने कई महत्वपूर्ण बातों के अलावा एक टेक्नोलॉजी कमीशन के गठन की सिफारिश की थी, जिससे इस रक्षा संगठन की कार्यपद्धति का पूरा तौर-तरीका ही बदल सकता था. फिर भी उसकी सिफारिशों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और आज हालत यह है कि डीआरडीओ की कई परियोजनाएं अधर में लटकी हैं और कई काफी देरी से ही पूरी हो पाएंगी. कुल मिलाकर रक्षा संगठन में इस तरह की कार्यस्थिति को बदलना होगा.

डीआरडीओ के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री की शोध, अनुसंधान और विकास के लिए चिंता जायज है, लेकिन सच बात तो यह है कि एनडीए की वर्तमान सरकार ने भी बजट में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की भारी उपेक्षा की है. पिछले महीने पेश केंद्रीय बजट में प्रौद्योगिकी विकास कोष के लिए मात्र 100 करोड़ रुपए आवंटित हुए हैं. बजट में देश में बुनियादी शोध, अनुसंधान और विकास के लिए कुछ खास नहीं किया गया है. कुल मिलाकर सरकार ने विज्ञान और तकनीक के पूरे क्षेत्र के लिए बजट में जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत दिया है जो उम्मीद से काफी कम है. हालांकि पिछले कई सालों से केंद्र सरकार यह कहती रही है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का कम से कम दो फीसद वाषिर्क खर्च करना चाहिए. जबकि अमेरिका, चीन सहित दुनिया के कई छोटे-बड़े देश लगातार विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र पर बजट आवंटन बढ़ाते रहे हैं. बजट की कमी की वजह से भी डीआरडीओ के कई प्रोजेक्ट अधर में लटके हुए हैं.

अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी. भारत पिछले छह दशकों के दौरान अपनी अधिकांश सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से हथियारों को खरीदकर कर रहा है. वर्तमान में हम अपनी सैन्य जरूरतों का 70 फीसद हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात कर रहे हैं. रक्षा क्षेत्र से जुड़े भावी ऑर्डरों को देखते हुए ऐसा लगता है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए मजबूत कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में भी हमारी आयात पर निर्भरता बनी रहेगी.

प्रौद्योगिकी के बदलते दौर में भी हालात ऐसे हो गए हैं कि कई साल पहले के प्रोजेक्ट्स पर अब भी काम हो रहा है. रक्षा क्षेत्र में लगातार उन्नत होती प्रौद्योगिकी की वजह से ऐसे उत्पाद बाजार में आ जाते हैं तो वर्तमान हालात से दो कदम आगे होते हैं और हम तब तक उनका अनुमान भी नहीं लगा पाते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  के अनुसार, ऐसा न हो कि किसी प्रोजेक्ट की रूपरेखा 1992 में बने और 2014 में भी हम कहें कि इसे पूरा करने में थोड़ा और समय लगेगा. उन्होंने कहा कि अगर वि किसी प्रोजेक्ट पर मिशन 2020 के तहत काम कर रहा है तो हमें उसे 2018 तक पूरा कर लेना चाहिए. रक्षा वैज्ञानिकों से प्रधानमंत्री का यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है कि क्या वे हालात के मुताबिक तैयारी कर पाने में सक्षम हैं और क्या वे वि के समक्ष कोई एजेंडा रख सकते हैं?

सच बात तो यह है कि हम वि को राह दिखाकर ही लीडर बन सकते हैं न कि उनके पदचिह्नों पर चलकर. यह समय की मांग है और वि हमारे लिए इंतजार नहीं करेगा. हमें समय से आगे चलना होगा. देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को समयबद्ध तरीके से अपने प्रोजेक्ट्स पूरे करने होंगे. बेहतर तो यही होगा कि वे समय से पहले ही पूरे हो जाएं. डीआरडीओ सहित प्रमुख सामरिक संस्थानों को ग्लोबल समुदाय को ध्यान में रखकर खुद में बदलाव लाना होगा तभी देश को नवीनतम प्रौद्योगिकी हासिल होगी. 

देश में इस समय इस्तेमाल हो रही तकनीक तकरीबन पूरी तरह आयातित है. इनमें 50 फीसद तो बिना किसी बदलाव के ज्यों की त्यों इस्तेमाल होती है और 45 फीसद थोड़ा-बहुत हेरफेर के साथ इस्तेमाल होती है. इस तरह विकसित तकनीक के लिए हमारी निर्भरता आयात पर है. इस स्थिति को बदलना होगा, तभी भारत को विकसित देश बनाने का सपना साकार हो पाएगा. देश के सर्वागीण विकास के लिए उन्नत और नवीनतम स्वदेशी प्रौद्योगिकी की जरूरत है क्योंकि आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है. देश की विकास प्रक्रिया में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विशेष महत्व है. देश की मूलभूत समस्याओं यथा जनसंख्या, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, रक्षा, पर्यावरण, ऊर्जा एवं खाद्यान्न इत्यादि के निवारण में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकता है.

अब देश के शीर्ष वैज्ञानिकों से विचार करके पांच-पांच वर्षों के लिए शोध और अनुसंधान के लक्ष्य निर्धारित किए जाने चाहिए ताकि यह जाना जा सके कि देश चरणबद्ध तरीके से आखिर कितना आगे जा सकता है और इसके लिए कितने धन की आवश्यकता होगी. इस धन की उपलब्धता आगे आने वाली हर सरकार को करनी ही होगी. सरकार को विज्ञान और अनुसंधान के लिए और अधिक धनराशि स्वीकृत करनी होगी ताकि वैज्ञानिक अनुसंधान में धन की कमी आड़े न आए और देश में वैज्ञानिक शोध और आविष्कार का एक सकारात्मक माहौल बने. मौजूदा हालात यह हैं कि डीआरडीओ में भी हर साल औसतन केवल 70 युवा वैज्ञानिक ही शामिल होते हैं.

डीआरडीओ बड़े पैमाने पर प्रतिभाओं को आगे लाता है लेकिन भारत के अशांत पड़ोस को देखते हुए यह संख्या कम ही है. पिछले पांच दशकों में डीआरडीओ ने अग्नि-5 मिसाइल, आईएनएस अरिहंत परमाणु पनडुब्बी और कई अन्य प्रणालियों के रूप में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं. लेकिन यह डीआरडीओ की योग्यता और प्रतिभा को देखते हुए कम है और इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है. देश को सुरक्षा मुहैया कराने में  प्रौद्योगिकी बड़ी भूमिका अदा करती है. इसलिए सरकार को नवीनतम प्रौद्योगिकी के अनुसंधान के लिए समयबद्ध योजनाएं बनानी चाहिए.

(लेखक तकनीकी शिक्षा से संबद्ध हैं)

शशांक द्विवेदी
लेखक


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