‘मेक इन इंडिया’ की नई डगर

Last Updated 21 Aug 2014 12:47:26 AM IST

हाल ही में 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले स्वाधीनता दिवस संबोधन में भारत को आयात का नहीं बल्कि निर्यात का नया केंद्र और देश को दुनिया का नया मेन्यूफैक्चरिंग गढ़ बनाने का आह्वान किया.


‘मेक इन इंडिया’ की नई डगर

प्रधानमंत्री ने ग्लोबल निवेशकों और विदेशों में बसे प्रवासियों को देश में मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश करने का न्योता देते हुए कहा कि आइए, हिंदुस्तान में निर्माण कीजिए (कम, मेक इन इंडिया). जहां एक ओर उन्होंने भारत में आने के लिए ग्लोबल निवेशकों को एक अच्छा संदेश दिया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने युवाओं से उद्यमी तथा हुनरमंद बनने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत को ‘जीरो डिफेक्ट और जीरो इफेक्ट’ वाले मेन्यूफैक्चरिंग उद्योगों का गढ़ बनाया जाना चाहिए ताकि देश अपनी जरूरत पूरी करने के साथ-साथ विश्व बाजार के लिए उत्पाद विनिर्मित करने वाला केंद्र बनकर उभरे. जीरो डिफेक्ट और जीरो इफेक्ट से उनका तात्पर्य उच्च गुणवत्ता वाले विनिर्मित उत्पाद और पर्यावरण अनुकूल विनिर्माण प्रक्रिया से है.

निसंदेह देश और दुनिया के उद्योग और निवेश जगत ने प्रधानमंत्री मोदी के ‘कम, मेक इन इंडिया’ आह्वान का स्वागत किया है. ऐसे में अब देश को मेन्यूफैक्चरिंग हब और निर्यात का नया केंद्र बनाने के सपने को साकार करने के लिए तीन मंत्रों की जरूरत है. एक, देश में  कारोबार अनुकूलता की डगर आगे बढ़े; दो, वैश्विक व्यापार बढ़ाने वाले सुविधाजनक शहर तेजी से आकार ग्रहण करें; और तीन, विनिर्माण और निर्यात बढ़ाने वाली कारगर रियायतें दी जाएं. इसमें कोई दो मत नहीं है कि अब देश में कारोबार मुश्किलें कम होने की उम्मीदें उभरकर सामने आ रही हैं. भारत को बेहतर और आसान कारोबारी देश बनाने के लिए मोदी सरकार ने 40 केंद्रीय श्रम कानूनों में से 16 को सरल और कारगर बनाने की रूपरेखा तैयार की है. हाल ही में सात अगस्त को केंद्र सरकार ने श्रम कानूनों में संशोधन के लिए लोकसभा में दो विधेयक पेश किए.

इसके तहत महिलाओं को रात की पाली में काम करने के नियमों में ढील देने, ओवर टाइम की सीमा बढ़ाए जाने और गैर-स्नातक इंजीनियरों के लिए प्रशिक्षण जैसी व्यवस्था की जाएगी. सरकार ने फैक्टरीज (संशोधन) बिल, 2014 और अप्रेंटिसेज (संशोधन) बिल, 2014 पेश किया. इसी तरह से सरकार ने श्रम और कारबार क्षेत्र में ‘इंस्पेक्टर राज’ को खत्म करने का संकेत देते हुए इंस्पेक्टरों के विवेकाधीन अधिकार खत्म कर उन्हें ज्यादा जिम्मेदार बनाए जाने की बात कही है.

इस परिप्रेक्ष्य में केंद्रीय श्रम मंत्रालय शीघ्र ही नई उदार निरीक्षण योजना शुरू करने जा रहा है. जिसके तहत निरीक्षक अपनी मर्जी से जांच के लिए नहीं जा सकेगा. साथ ही निरीक्षक की अनिवार्य जांच कुछ खास मामलों तक ही सीमित होगी. इसी तरह केंद्रीय श्रम मंत्रालय के द्वारा एकीकृत वेब पोर्टल शुरू किया जाएगा. यह पोर्टल उद्योगों के लिए अनुमति प्रक्रिया को आसान बनाएगा तथा इस पोर्टल पर कंपनियां अपना सालाना रिटर्न भी दाखिल कर सकेंगी.

गौरतलब है कि पिछली कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अध्ययन रिपोटरे में यह कहा गया है कि यदि सरकार भारत को कारोबार के लिहाज से बेहतर बनाना चाहती है तो यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रशासनिक और नियामकीय सुधारों की मदद से लालफीताशाही कम हो. कई शोध अध्ययनों में यह तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि भारत में उदारीकरण की गति और प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए श्रम एवं प्रशासनिक सुधारों को गति देनी होगी.

विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय कारोबार रिपोर्ट-2013 में कहा गया है कि भारत में कारोबारी गतिविधियों में कदम-कदम पर कठिनाइयां हैं. इस रिपोर्ट में कारोबारी प्रतिकूलता के पैमाने पर भारत को 185 देशों में 132वां स्थान दिया गया है. चूँकि देश की नई आर्थिक एवं व्यावसायिक  जरूरतों के संदर्भ में पिछले दो दशकों में भारतीय उद्योगों को विश्व भर में प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के उद्देश्य से, मुद्रा-बैंकिंग, वाणिज्य, विनिमय दर और विदेशी निवेश क्षेत्र में नीतिगत बदलाव किए गए हैं. ऐसे में श्रम एवं प्रशासनिक कानूनों में बदलाव भी जरूरी दिख रहे हैं.

निश्चित रूप से वैीकरण के  इस दौर में तेजी से औद्योगिक व कारोबारी विकास के लिए श्रम और प्रशासनिक सुधारों की ओर से आंखें मूंदना बेमानी है. इस परिप्रेक्ष्य में हम चीन का उदाहरण सामने रख सकते हैं. चीन में श्रम कानूनों को अत्यधिक उदार और लचीला बनाकर नई कार्य संस्कृति विकसित की गई है. पुराने व बंद उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों को नई जरूरतों के अनुरूप काम करने के लिए प्रशिक्षण देने की नीति भी अपनाई गई है.

निश्चित रूप से औद्योगिक उत्पादन और निर्यात बढ़ाने के लिए देश में सक्षम शहरों की जरूरत है. इन दिनों भारतीय शहरों के बारे में जो अध्ययन रिपोर्टे प्रस्तुत हो रही हैं उनसे दो महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं. एक, अब भारत में तीव्र शहरीकरण को नहीं रोका जा सकता है; और दो, वैीकरण से उपजे लाभों को मुट्ठी में करने के  लिए भारत के शहरों को संवारना होगा. यद्यपि एक ओर भारत के लिए शहरीकरण की चुनौतियां हैं, लेकिन दूसरी ओर आर्थिक  विकास और वैश्विक व्यापार बढ़ाने की भी भारी संभावनाएं हैं.

इतिहास के पन्ने इस बात के  गवाह हैं कि जिन देशों में शहरों की जितनी अधिक  प्रगति होती है, वहां आर्थिक अवसरों की उपलब्धता उतनी ही अधिक  होती है. यह माना जाता है कि  शहर किसी भी राष्ट्र के  विकास के आधार स्तंभ होते हैं. जैसे-जैसे शहरों का विकास होता है, वैसे-वैसे उसके  साथ नया बाजार तैयार होता है.

एक ऐसे समय में जब दुनिया के कई देश शहरीकरण से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करने एवं अपने देश के  शहरों को वैश्विक  लाभ हेतु सजाने और संवारने के  लिए योजनाएं बना रहे हैं, तब हमें भी देश में मौजूदा शहरों को मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर और निर्यातक इकाइयों की दृष्टि से उपयुक्त बनाने और अच्छे नए शहरों के निर्माण के लिए तेजी से कदम बढ़ाने होंगे. इस प्ररिप्रेक्ष्य में उल्लेखनीय है कि हाल ही में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2014-15 का आम बजट पेश करते हुए 100 स्मार्ट सिटी बसाने की योजना प्रस्तुत की है. ये स्मार्ट सिटी बड़े तथा मझले शहरों के आधुनिक उपनगर के रूप में विकसित की जाएंगी.

हमें कुछ चमकते हुए शहरों को ही नियोजित शहर बनाने के साथ-साथ वर्ष 2014-15 के नए बजट में चिह्नित नए स्मार्ट शहरों के निर्माण पर विशेष ध्यान देना होगा. चूंकि ठसाठस आबादी और अनियोजित विकास वाले शहरों में बुनियादी ढांचा निर्माण काफी महंगा होता है और इसमें समय भी काफी लगता है, कुछ अर्थ विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि भारत का असली विकास तो नए शहरों के निर्माण में है.

वैश्विक जरूरतों की पूर्ति करने वाले शहरों के विकास की दृष्टि से भारत के लिए यह एक अच्छा संयोग है कि अभी देश में ज्यादातर शहरी ढांचे का निर्माण बाकी है और शहरीकरण की चुनौतियों के मद्देनजर देश के पास शहरी मॉडल को परिवर्तित करने और बेहतर सोच के साथ शहरों के विकास का पर्याप्त समय अभी मौजूद है. 

इन दोनों मंत्रों के साथ-साथ देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘कम, मेक इन इंडिया’ के सपने को साकार करने के लिए सरकार को ऐसी रणनीति पर भी काम करना होगा जिसके तहत घरेलू मेन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने की भरपूर कोशिश की जाए. लाइसेंसिंग में ढिलाई दी जाए और जमीन अधिग्रहण कानून में बदलाव किए जाएं.

विदेशों में एफडीआई की नीति और निवेश के फायदे का प्रचार-प्रसार किया जाए. तैयार माल के मुकाबले कच्चे माल पर कम आयात शुल्क लगाया जाए. हम आशा करें कि मोदी सरकार देश में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ दुनिया के बाजार में भारतीय निर्यात बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी. उम्मीद है कि मोदी सरकार में विनिर्माताओं, निर्यातकों और निवेशकों का बढ़ा हुआ भरोसा और सरकार के इस दिशा में कारगर प्रयास भारत को दुनिया का चमकता हुआ विनिर्माण केंद्र और निर्यात का नया केंद्र बनाएंगे. 

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)

जयंतीलाल भंडारी
लेखक


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