जीएसटी पर आगे बढ़ेगी सरकार

Last Updated 20 Aug 2014 12:22:09 AM IST

मोदी की सरकार ने कहा है कि इस वर्ष के अंत तक उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने का पूरा प्रयास किया जायेगा.


जीएसटी पर आगे बढ़ेगी सरकार

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ किया कि जीएसटी लागू करना सरकार की प्राथमिकता है.  गौरतलब है कि अब से पहले यूपीए सरकार जीएसटी लागू करने में विफल रही है और नई सरकार के बाद एक बार फिर जीएसटी को लेकर आशा बंधी है. महत्वपूर्ण यह है कि जीएसटी की राह में अब तक केंद्र और राज्यों के बीच पारदर्शिता और संबंधित विषय पर आपसी समझ मतभेद का मुख्य कारण रहे हैं. केंद्र से और अधिक प्रभुत्व व स्वायत्तता की मांग केंद्र और राज्यों के बीच लड़ाई का केंद्र बिंदु रहा है. राज्यों को डर है कि यदि टैक्स से जुड़े अधिकार भी राज्यों से छीन लिए जाएंगे तो उनके ही राज्य में उन्हें कौन पूछेगा!

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) आर्थिक सुधारों के एजेंडे में लंबे समय से महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है. आर्थिक सुधारों के अहम हिस्से वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) पर राज्यों के साथ सहमति बनाने के लिए केंद्र सरकार कुछ उत्पादों को इसके दायरे से बाहर रखने पर राजी हो सकती है. इसमें और देरी न हो इसके लिए राज्यों के हितों को प्राथमिकता देने को केंद्र कमोबेश तैयार है. अनुमान है कि इसके लागू होने से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसटी) में 1.5 से 2 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होगी.

इसके बावजूद इस पर केंद्र और राज्यों के बीच सहमति नहीं हो पा रही है. यूपीए सरकार इसे लागू करने का इरादा जताते-जताते चली गई. मालूम हो कि सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, एक्साइज ड्यूटी को हटाकर जीएसटी बनाया जाएगा. जीएसटी के तहत पूरे देश में एक ही रेट पर टैक्स लगेगा. पूरे देश में 12 से 16 फीसद का टैक्स रेट होगा. इससे टैक्स चोरी कम होगी और टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा. जीएसटी आने के बाद टैक्स का ढांचा पारदर्शी होगा और असमानता नहीं होगी. जीएसटी लागू होने से ढेरों टैक्स कानून और रेगुलेटरों का झंझट नहीं होगा और सब ऑनलाइन होगा.

वास्तव में वस्तु एवं सेवा कर वह कर है जो मूल्यवर्धन के प्रत्येक स्तर पर अनिवार्यत: लगाया जाता है. हर चरण में किसी भी आपूर्तिकर्ता को टैक्स क्रेडिट सिस्टम के माध्यम से इसकी भरपाई की अनुमति होती है. लेकिन जीएसटी को लेकर राज्य सरकारों की अपनी-अपनी चिंता भी है. बड़ा सवाल है कि टैक्स स्लैब क्या होगा और नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई कौन करेगा! जीएसटी का सिस्टम पूरी तरह तैयार नहीं है. इसके अलावा राज्य और केंद्र के बीच टैक्स बंटवारे को लेकर कई सवाल हैं. टैक्स बढ़ाने या घटाने का फैसला कौन करेगा, इस पर भी चिंता है.

गौरतलब है कि जीएसटी का मुद्दा यूपीए सरकार के वक्त भी काफी विवाद में था. तब एनडीए के राज्यों और केंद्र की यूपीए सरकार के बीच काफी बहस थी. अब केंद्र में एनडीए सरकार है तो भी विवाद बना हुआ है. हालांकि, मध्य प्रदेश सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर अपना रुख साफ कर दिया है और कहा है कि वह सभी राज्यों के हितों की रक्षा करने वाली जीएसटी व्यवस्था आगे बढ़ाने में सहयोग देगा. राज्य सरकार चाहती है कि नई राजग सरकार उन सभी मुद्दों का समाधान निकाले, जो पिछली संप्रग सरकार में लंबित थे. वर्ष 2009 से मध्य प्रदेश पिछली संप्रग सरकार के जीएसटी विधेयक के प्रारूप का विरोध करता रहा है, क्योंकि मसौदे में स्पष्ट कहा गया है कि राज्यों को कर की कोई स्वायत्तता नहीं होगी.

गौरतलब है कि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद से वित्त मंत्री दो बार राज्यों के साथ जीएसटी पर विचार विमर्श कर चुके हैं. इसके अमल में आने के बाद ज्यादातर अप्रत्यक्ष कर इसमें शामिल हो जाएंगे. राज्यों के स्तर पर भी अप्रत्यक्ष कर इसमें समाहित हो जाएंगे. बजट भाषण में जेटली कह चुके हैं कि जीएसटी लागू करने अथवा न करने पर चर्चा अब समाप्त होनी चाहिए. पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने 2011 में जीएसटी लाने के लिए लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था. बहरहाल, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) वित्त वर्ष 2014-15 के अंत तक लागू होने की संभावना है. इससे कर प्रशासन को तर्कसंगत बनाने में मदद मिलेगी साथ ही केंद्र व राज्य स्तर पर कर संग्रहण बढ़ेगा.


बेशक, जीएसटी को अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अच्छा माना जा रहा हो, लेकिन राज्यों की तात्कालिक चिंताओं के चलते इसे लागू करने की राह में तमाम बाधाएं आ रही हैं. केंद्र की ओर से तमास प्रयासों के बावजूद गतिरोध खत्म नहीं हो पा रहा है. राज्यों में कर हमेशा बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहे हैं और ऐसे में पूरे देश में एक समान कर जैसे प्रावधान से पड़ने वाले राजनीतिक प्रभाव को कोई भी दल अनदेखा नहीं कर सकता है. जीएसटी के दायरे में अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किए जाने के प्रस्ताव के बाद से ही राज्य सरकारें राजस्व के नुकसान के नाम पर कुछ बिंदुओं का विरोध कर रही हैं.

कुछ राज्य कर अधिकार छोड़ने को लेकर चिंतित हैं तो कुछ उचित मुआवजा चाहते हैं. करों और कर राजस्व के मामले में हर राज्य की अपनी तस्वीर है. जहां कुछ राज्य पर्यटन पर निर्भर हैं वहीं कुछ आबकारी से मिलने वाले कर से राजकोष भरते हैं.  ऐसे में राज्यों का कहना है कि जीएसटी लागू होने से उनके राजस्व में नुकसान होगा. राज्य राजस्व के इस नुकसान की भरपाई के लिए केंद्र की ओर से स्पष्ट प्रावधान की मांग कर रहे हैं हालांकि, वित्त मंत्री ने सभी राज्यों को पूरा भरोसा दिलाया है. राज्य लगातार कुछ पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखने का दबाव केंद्र पर बना रहे हैं. राज्यों के साथ हो रही बातचीत में सहमति बनाने की दिशा में ये उत्पाद रोड़ा बनते रहे हैं. यही वजह है कि इसके लागू करने का लक्ष्य चार साल पीछे छूट चुका है. जीएसटी को लेकर केंद्र व राज्यों के साथ करीब सात साल से बातचीत चल रही है.

हालांकि वित्तीय मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने भी जीएसटी की क्षतिपूर्ति के लिए अलग से कोष बनाने का सुझाव दिया था लेकिन केंद्र सरकार ने संविधान संसोधन विधेयक में इसे शामिल नहीं किया है. नुकसान की भरपाई का स्पष्ट प्रावधान न होने के कारण राज्यों की सहमति नहीं बन रही है. दरअसल, सरकार राज्य और केन्द्र के स्तर पर लगने वाले अधिकांश करों को इसमें शामिल करने का प्रयास कर रही है. इन सभी को मिलाकर स्लैब के आधार पर पूरे देश में एक समान दर लागू होगी. लेकिन समग्र जीएसटी की दर तय करके उसमें से केन्द्र और राज्य की दर तय की जाएगी. जीएसटी मौजूदा वैट की तरह ही लागू होगा.

रवि शंकर
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment