अपराधी की उम्र नहीं, जुर्म देखिए
यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों की उम्र की बहस से परे जाकर अब सरकार ने उनके द्वारा किए जाने वाले अपराधों की प्रकृति पर ध्यान केंद्रित किया है.
अपराधी की उम्र नहीं, जुर्म देखिए |
इसी मुद्दे को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट की ही एक बेंच ने केंद्र सरकार से जानना चाहा है कि हत्या, बलात्कार व अपहरण जैसे जघन्य अपराधों में शामिल आरोपी को क्या केवल इसलिए छोड़ देना चाहिए क्योंकि उसने अभी 18 साल की उम्र पूरी नहीं की है. शीर्ष अदालत का यह भी कहना है कि किशोरों द्वारा किए जाने वाले गंभीर और कम गंभीर अपराधों के बीच फर्क किया जाना चाहिए.
इसी के चलते पिछले दिनों केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के नाबालिग आरोपियों से वयस्क अपराधियों के समान बर्ताव किए जाने की वकालत की थी.
उनका सीधा-सा तर्क था कि 50 फीसद यौन अपराधों को किशोरों द्वारा अंजाम दिया जाता है. इसीलिए केद्र सरकार ने अब पुराने कानून के स्थान पर जूवेनाइल जस्टिस एक्ट-2014 को बनाये जाने पर अपनी सहमति जताई है. हालांकि इस एक्ट के संशोधित ड्राफ्ट पर अभी संबधित विभागों और मंत्रालयों की सहमति लेना बाकी है. परंतु सुखद यह है इस एक्ट के संशोधित ड्राफ्ट पर कानून मंत्रालय ने अपनी सहमति जता दी है.
ध्यान रहे कि कैबिनेट के सामने दो सप्ताह में पेश किए जाने वाले इस नोट पर कानून मंत्रालय की राय बहुत अहम रहने वाली है. इस संशोधन की खास बात यह है कि इसमें कानून मंत्रालय ने 16 साल से अधिक और 18 साल से कम वय के किशोरों के यौन दुष्कर्म, हत्या, तेजाबी हमले और डकैती जैसे गंभीर अपराधों में शामिल होने की दशा में सामान्य अदालत में मुकदमा चलाए जाने पर सहमति दी है.
मौजूदा समय में 18 साल से कम उम्र के किशोरों के खिलाफ जेजे एक्ट-2000 के तहत जेजे बोर्ड कार्रवाई करता है. गौरतलब है कि दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुए सामूहिक दुष्कर्म के बाद गठित जस्टिस जेएस वर्मा समिति ने किशोरों की उम्र सीमा16 साल करने के सुझाव को खारिज कर दिया था. कहना न होगा कि नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से ही जघन्य मामलों में शामिल 16 से 18 साल तक के किशारों को जेजे एक्ट में मिलने वाली छूट को खत्म करने की मांग लगातार उठ रही थी. उधर राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन के पक्ष में नहीं है.
उसका साफ कहना है कि इस कानून का मकसद बालकों को सजा देना न होकर उनको सुधारना अधिक है. शायद यही वजह है कि मंत्रालय ने नाबालिगों द्वारा किए जाने वाले अपराधों की गंभीरता का आकलन करने का दायित्व जेजे बोर्ड को सौंपा है ताकि कोई भी नाबालिग अन्याय का शिकार न हो.
इस सारी कवायद के पीछे किशोरों का लगातार जघन्य अपराधों में शामिल होना भी एक खास कारण है. इसी संदर्भ में राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से साफ है कि नाबालिग किशोरों द्वारा अंजाम दी गई बलात्कार की घटनाओं में अकेले दिल्ली में 158 फीसद की वृद्धि हुई है.
चौंकाने वाली बात यह है कि किशोरों द्वारा अंजाम दिए जाने वाले सामान्य अपराधों में यह वृद्धि मात्र 34 फीसद की ही रही. ज्यादा तकलीफदेह यह है कि चोरी व डकैती की घटनाओं में इनकी सहभागिता में 200 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है. इन अपराधों में शामिल किशोरों की उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच पाई गई. हालिया आंकड़े बताते हैं कि 2012-13 में 33 हजार से भी अधिक किशोर 25 हजार से अधिक घटनाओं में निरुद्ध हुए. उनमें एक हजार से अधिक बच्चे 7 से 12 वषर्, ग्यारह हजार बच्चे 12 से 16 वर्ष तथा शेष किशोर 16 से 18 वर्ष के आयु समूह के पाए गए. कहने की आवश्यकता नहीं कि आज लचर आपराधिक न्याय प्रणाली के चलते संगठित अपराध एक उद्योग की शक्ल अख्तियार कर चुका है .
दरअसल, बाल अपराधियों के लिए एक अलग कानून बनाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि जब संयुक्त राष्ट्र ने बाल अधिकारों का संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया तो इस अंतरराष्ट्रीय कानून में 18 वर्ष तक के किशोर को नाबालिग घोषित किया गया था. साथ ही इसमें बच्चों की अशिक्षा, उत्पीड़न, शोषण तथा अपराध से जुड़े तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए 18 वर्ष तक के किशोरों के मौलिक अधिकार सुनिश्चित किए गए थे. तत्पश्चात ही दुनिया भर की सरकारों ने अपने-अपने देशों में बाल अधिकार से जुड़े कानून प्रतिपादित किए.
अपने यहां भी इसी संधि के तहत 1992 में संसद में यह कानून पारित कर दिया गया. उसी के अनुपालन में जेजे एक्ट-2000 बनाया गया. पूर्व में इस अधिनियम में कई दोष थे तथा इसमें किशोर की आयु भी 16 वर्ष रखी गयी थी. बाद में 2005 में इस कानून में संशोधन करके यह उम्र बढ़ाकर 18 कर दी गई. इस किशोर न्याय अधिनियम की स्थिति यह है कि 18 वर्ष से कम आयु के किशोर ने चाहे कितना ही जघन्य अपराध किया हो, परंतु उसे तीन वर्ष से अधिक की सजा नहीं हो सकती. साथ ही सजा के बाद उसे सामान्य जेल में न भेजकर किशोर संप्रेषण गृह में ही भेजा जाएगा. केस खत्म होने के बाद उस मामले से जुड़े सभी रिकॉर्ड नष्ट कर दिए जाएंगे.
दूसरी तरफ खुफिया सूत्र बताते हैं कि आज लश्करे तैयबा जैसे खूंखार आतंकवादी संगठन ने भी अपने लड़ाकों को भारत के सुरक्षाकर्मियों द्वारा पकड़े जाने पर उनको अपनी उम्र 18 साल से कम बताने के निर्देश जारी किए हैं. निश्चित ही यह देश के किशोर न्याय अधिनियम की नाकामी का बहुत बड़ा दाग है. इसी के साथ-साथ संगठित अपराध से जुड़े वयस्क अपराधी भी इस कानून का जमकर दुरुपयोग कर रहे हैं और आज इस कानून की लचर प्रक्रिया हाथ बांधे खड़ी है. इसी वजह से मंत्रालय ने किशोर की उम्र के मुद्दे से मुंह फेरकर अब किशोरों के द्वारा किए जाने वाले अपराध और उसकी प्रकृति पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है.
खास बात यह है कि मीडिया व साइबर की इस वचरुअल दुनिया में बच्चे अब छोटी उम्र में ही जवान हो रहे हैं. इसके लिए जहां साइबर कानून की लचरता जिम्मेदार है, वहीं कहीं न कहीं परिवार व स्कूल जैसी संस्थाओं का दोष भी कम नहीं है. कम उम्र में ही बच्चों के हाथों में मोबाइल व इंटरनेट थमाना घातक सिद्ध हो रहा है. निश्चित ही पिछले कुछ समय से महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ती यौन उत्पीड़न की इन घटनाओं से उपजा आक्रोश वर्तमान के किशोर न्याय कानून और इस मुद्दे पर पिछली सरकार की ढुलमुल राजनीति पर सीधे सवाल खड़े कर रहा था.
जज्बातों में बहकर अब यह मुद्दा किसी एक घटना में आरोपी किशोर के लिए आयु सीमा घटाने-बढ़ाने का नहीं है, बल्कि नाबालिगों से जुड़े अपराध के सही कारणों की खोज करने के साथ-साथ अब हमें इनसे जुड़े कानूनों में भी समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलाव करना ही चाहिए. मगर साथ ही साथ इन किशोरों द्वारा अंजाम दिए जा रहे जघन्य अपराधों की कारणात्मक प्रकृति पर भी गौर करना बहुत जरूरी हो गया है.
अगर हम इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार नहीं करते हैं तो हो सकता है इनकी मासूमियत तो हमें उद्वेलित करती रहे और हमारी इन भावनात्मक संवेदनाओं की आड़ में संगठित व यौन अपराध और अधिक फलते-फूलते रहें. इसलिए अब यह उपयुक्त समय है जब हमें पूरी शिद्दत के साथ जघन्य अपराध करने वाले किशोरों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए. परंतु दूसरी ओर इस समय समाज और सरकार की भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है कि वे इस पीढ़ी से सीधे संवाद बनाने-बढ़ाने के साथ-साथ समय से आगे दौड़ रही सूचना तकनीक के विकसित हो रहे नित नए साधनों पर भी नजर रखें ताकि यह कमसिन पीढ़ी समय से पहले जवान होने से बच सके.
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