कब पूरी होगी पुनर्वास की आस!

Last Updated 30 Jul 2014 12:36:11 AM IST

पिछले साल अठारह जुलाई को देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को तेजाबी हमले की शिकार महिलाओं के पुनर्वास के लिए नियम-कानून बनाने का आदेश दिया था.


कब पूरी होगी पुनर्वास की आस!

इस आदेश को आए एक साल से ज्यादा बीत चुका है लेकिन अब तक ज्यादातर राज्य सरकारें कानों में तेल डाले बैठी हैं. इस जघन्य अपराध की शिकार निर्दोष महिलाओं के पुनर्वास के संबंध में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान पिछले हफ्ते नाराज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. कागजी खानापूर्ति के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने तो राज्य सरकारों को पत्र लिखकर पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास कार्यक्रम की जानकारी मांगी है लेकिन साथ ही यह भी कह दिया है कि इस मामले में मुख्य जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है. केंद्र ने तो गत सितम्बर माह में ही सभी सूबों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी कर दिए थे. अमल का जिम्मा राज्यों का है.

सर्वोच्च न्यायालय की नाराजगी के बाद केंद्र सरकार ने सफाई दी है कि उसके सभी अस्पतालों में तेजाबी हमले की पीड़िताओं के लिए मुफ्त इलाज का प्रावधान है और राज्य सरकारों से भी ऐसा करने को कहा गया है. हमले की चपेट में आने वाली युवतियों को अक्सर प्लास्टिक सर्जरी कराने की जरूरत पड़ती है इसलिए उनके लिए अस्पतालों में बेड आरक्षित करने के लिए कदम उठाए गए हैं. तेजाब की बिक्री नियंत्रित करने के उद्देश्य से राज्यों को कहा गया है जो दुकानदार क्रेताओं के रिकॉर्ड का रजिस्टर नहीं रखेंगे, उन पर 50 हजार रुपए का जुर्माना ठोका जाएगा.

पिछले तीन माह में तेजाबी हमले की घटनाओं में अचानक इजाफा हुआ है. इसका अर्थ है कि खुले बाजार में अब भी तेजाब आसानी से उपलब्ध है और राज्य सरकारें नियमों के पालन में कोताही बरत रही हैं. इन हमलों के ज्यादातर मामले पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से जुड़े हैं. जिससे पता चलता है कि वहां प्रशासन महिलाओं की सुरक्षा के लिए कितना सचेत है? हमारे देश में तेजाबी हमलों की शिकार महिलाओं का कोई अधिकृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, पर नई दिल्ली स्थित स्टॉप एसिड अटैक ग्रुप के अनुसार भारत में प्रति सप्ताह ऐसे तीन मामले सामने आते हैं और ज्यादातर पीड़ित महिलाएं ही होती हैं. दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की अदालत ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए एक शादीशुदा महिला पर तेजाब फेंकने के दोषी को फांसी की सजा सुनाई है. देश में पहली बार किसी व्यक्ति पर तेजाब फेंकने वाले अपराधी को फांसी की सजा दी गई है.

पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार को मानना पड़ा था कि तेजाब जहर है और इसकी खुली बिक्री लड़कियों की जिन्दगी तबाह कर रही है. लड़कियों पर बढ़ते तेजाबी हमलों को जघन्य अपराध मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने करीब सात  साल पहले भी इससे निपटने के लिए कानून सख्त बनाने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए ऐसे हमलों को ‘हत्या से भी निर्मम’ करार देते हुए कहा था कि पीड़ित लड़की की जिंदगी हमेशा के लिए उजड़ जाती है. महिला संगठन भी लंबे समय से तेजाबी हमले के दोषी को दस साल से लेकर आजीवन कारावास तथा ऐसे घिनौने अपराध को अंजाम देने का प्रयास करने वाले अपराधी को सात साल की सजा देने की मांग करते रहे हैं.

तेजाबी हमले की शिकार हुई दिल्ली की लक्ष्मी ने खुले बागार में इस खतरनाक रसायन की बिक्री पर रोक लगाने की मांग करते हुए जंग छेड़ वर्ष 2006 में याचिका दायर की थी. याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश में तेजाब बेचने और खरीदने से जुड़े कड़े नियम-कायदे बनाने और तुरंत प्रभाव से उन्हें लागू करने को कहा था. साथ ही ऐसे अमानवीय कृत्य को गैर जमानती अपराध बनाने का आदेश भी दिया था.

यह भी कहा गया था कि पहचान-पत्र देखे बिना तेजाब बेचने पर प्वाइजन एक्ट-1919 के तहत केस चलेगा और दोषी को सजा भी होगी. यही नहीं, खुले बाजार में वही तेजाब बेचा जा सकेगा जो त्वचा पर बेअसर हो. गृह मंत्रालय द्वारा तैयार प्वाइजन पजेशन एंड सेल रूल्स-2013 में तेजाब को जहर की श्रेणी में रखने के बाद अब तेजाब बेचने के लिए लाइसेंस और खरीदने के लिए फोटो पहचान-पत्र व निवास प्रमाण-पत्र जरूरी है. खरीददार को अपना टेलीफोन नंबर भी देना होगा और तेजाब खरीदने की वजह बतानी होगी. सिगरेट और शराब की तरह अब तेजाब भी 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को नहीं बेचा जा सकता है.

वास्तव में तेजाबी हमले से पीड़ित लड़की का जीवन पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है. वह शारीरिक ही नहीं, मानसिक रूप से भी बुरी तरह टूट जाती है. उसे समाज में हर कदम पर भेदभाव और हिकारत का सामना करना पड़ता है. सामान्यत: नाते-रिश्तेदार, पड़ोसी और दोस्त मुंह फेर लेते हैं. उन्हें लगता है कि कहीं उनके या उनकी बेटी के साथ भी ऐसा हादसा न हो जाए. अगर लड़की स्कूल या कॉलेज में पढ़ती है तो वहां भी उसके साथ भेदभाव किया जाता है. पीड़ित महिला अगर नौकरी करती है तो ज्यादातर मामलों में उसे उससे हाथ धोना पड़ जाता है. विडम्बना यह है कि समाज पीड़िता के साथ ऐसा व्यवहार करता है मानो वही अपराधी हो.

परिणामस्वरूप दु:ख, चिंता और हीनभावना के कारण अक्सर वह अवसाद में डूब जाती है. तेजाब के ज्यादातर हमले चेहरे पर ही होते हैं जिसके कारण आंखें, कान और होंठ आदि विकृत हो जाते हैं. इन अंगों का इलाज प्लास्टिक सर्जरी होता है जिस पर भारी खर्च आता है. गरीब परिवारों की तो बात ही क्या करें, प्लास्टिक सर्जरी जैसा इलाज अच्छे खाते-पीते परिवारों की भी कमर तोड़ देता है.

फिलहाल तेजाबी हमले की शिकार के लिए तीन लाख रुपए के मुआवजे का प्रावधान रखा गया है. एक लाख रुपया हमला होने के 15 दिन के भीतर और बाकी दो लाख अगले दो महीनों के भीतर देने का नियम है लेकिन दु:ख की बात है कि ज्यादातर राज्य सरकारें इस नियम की अनदेखी कर रही हैं. वैसे स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार यह राशि बहुत कम है. नए कानून में पीड़िता के इलाज की माकूल व्यवस्था, उसकी  नौकरी सुरक्षित रखने, जो नौकरी में नहीं हैं उन्हें नौकरी देने और पीड़ित छात्राओं की शिक्षा व्यवस्था का प्रावधान होना जरूरी है.

सुषमा वर्मा
लेखक


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