चुनौतियों की तुलना में नाकाफी है रक्षा बजट

Last Updated 23 Jul 2014 04:34:10 AM IST

बीती दस जुलाई को पेश आम बजट में 2014-15 के लिए रक्षा बजट को बढ़ाकर 229000 करोड़ रुपये कर दिया गया है.


चुनौतियों की तुलना में नाकाफी है रक्षा बजट

इससे पहले 2013-14 के लिए देश का रक्षा बजट 203672 करोड़ था. इस तरह पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में इसमें 12.44 फीसद की ही वृद्धि की गई है. जबकि 2012-13 की तुलना में 2013-14 के लिए 14 प्रतिशत और इससे पहले 17 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी. स्पष्ट है कि पिछले साल की तुलना में इसमें मामूली वृद्धि हुई है जबकि रक्षा चुनौतियां काफी बढ़ गई हैं. पुराने प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से जहां देश की पश्चिमी सीमा पर चुनौतियां बरकरार हैं वहीं उससे ज्यादा पूर्वोत्तर सीमा पर चीन ने उत्पन्न की हैं. समुद्र की तरफ से भी चुनौतियां मिल रही हैं.

यदि हम चीन के समकक्ष आक्रामक तौर पर मजबूत न भी बन सके तो कम से कम प्रतिरक्षात्मक तौर पर तो मजबूत होना ही चाहिए. सर्वविदित है कि पाकिस्तान व चीन सहित विश्व के कई देश भारत की तुलना में सुरक्षा पर अधिक खर्च कर रहे हैं. चीन का रक्षा बजट भारत के मुकाबले साढ़े तीन गुना ज्यादा है. चीन का हाल मे घोषित रक्षा बजट 132 अरब डॉलर, पाकिस्तान का 700 अरब रुपये, रूस का 77 अरब डॉलर व अमेरिका का 612 अरब डॉलर है. अमेरिका दुनिया के कुल रक्षा बजट का 41 प्रतिशत खर्च करता है. दूसरे स्थान पर चीन व तीसरे पर रूस है. इनकी भागीदारी क्रमश:  8.2 व 4.1 प्रतिशत है. चौंकाने वाला तथ्य यह है कि सातवें नम्बर पर रहते हुए भारत की भागीदारी मात्र 2.8 प्रतिशत है.

चीन के रक्षा बजट में सालाना वृद्धि औसतन 25 फीसद है. चीन के रक्षा विशेषज्ञ इस वृद्धि को अपने देश की रक्षा जरूरतों के मुताबिक जायज ठहराते हैं क्योंकि उनका देश क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा देश है. चीन की अन्तरराष्ट्रीय भू-सीमा 22000 किलोमीटर तथा समुद्री सीमा 18000 किलोमीटर है. कोई भी देश अपनी रक्षा तैयारियां अपनी सीमाओं की रक्षा और दुश्मन देश की ताकत से मुकाबले के लिए करता है. इसी दृष्टि से बजट में धन का प्रावधान होता है. भारत को भी अपनी रक्षा तैयारियां इसी नजरिए से करनी चाहिए. गौरतलब है कि देश के सालाना रक्षा बजट का तकरीबन 70 फीसद वेतन व आम रखरखाव पर ही खर्च हो जाता है.

इस कारण सैन्य आधुनिकीकरण के लिए रक्षा मंत्रालय के पास फंड की कमी बनी रहती है. घोषित रक्षा बजट में रक्षा मंत्रालय व सशस्त्र बलों के रोजमर्रा के खर्च तथा वेतन आदि के लिए राजस्व मद में 134412 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जबकि पूंजीगत खर्च के लिए बढ़ोत्तरी के बाद 94588 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. पिछली बार राजस्व मद में 116931 करोड़ रुपये और पूंजीगत खर्च के लिए 86741 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. इस बार के पूंजीगत परिव्यय में थलसेना के लिए 24977 करोड़, वायुसेना के लिए 36035 करोड़ तथा नौसेना के लिए 8615 करोड़ रुपये ही मिल पाए हैं. कुल हिस्सेदारी देखी जाए तो थल सेना को 92600 करोड़, वायु सेना को 20500 करोड़ एवं नौसेना को 14000 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं.

पिछली बार के योजनागत परिव्यय में थलसेना के लिए 81000 करोड़ से अधिक, वायुसेना के लिए 18000 करोड़ से अधिक, नौसेना के लिए 12195 करोड़ व 5500 करोड़ रुपये रक्षा मंत्रालय के लिए थे. इसी तरह पूंजीगत परिव्यय में पिछली बार वायुसेना का हिस्सा अकेले 38556 करोड़ था. इसके अलावा थलसेना के मद में खरीदारी हेतु 17640 करोड़ व नौसेना की खरीदारी के लिए 9625 करोड़ रुपये निर्धारित थे. अलग-अलग हिस्सेदारियों में थलसेना को 101836 करोड़, वायुसेना को 50918 करोड़, नौसेना को 38697 करोड़ व रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन को लगभग 12220 करोड़ रुपये प्राप्त हुए थे. इसके बावजूद सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया प्रभावित रही थी.

मौजूदा वित्त वर्ष में आर्थिक तंगी के बीच रक्षा बजट में की गई कम बढ़ोत्तरी से तीनों सेनाओं के आधुनिकीकरण की योजनाओं के प्रभावित होने का अंदेशा है. सेनाओं के आधुनिकीकरण व सैन्य उपकरणों की खरीद पर नजर डालें तो वायुसेना का खर्च सबसे ज्यादा एवं महत्वपूर्ण है क्योंकि उसे 126 बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों के अलावा अन्य लड़ाकू विमानों की जरूरत है. जब वायुसेना के विमानों के सडन बढ़ेंगे तभी पाकिस्तान व चीन की सीमा पर विमानों की तैनाती बढ़ायी जा सकेगी. इसके लिए सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों का बेड़ा बढ़ाया जाना है. भारतीय वायुसेना को 40 करोड़ डॉलर की लागत के प्राथमिक प्रशिक्षण विमान भी खरीदने हैं. इसी तरह तेजस विमान के उत्पादन के अलावा वायुसेना को लगभग 300 हेलीकाप्टरों की जरूरत है. इनकी खरीद के लिए धन की जरूरत होगी.

थलसेना के तोपखाने को भी मजबूती देनी है. इसके लिए 155 मिलीमीटर की अल्ट्रा लाइट होवित्जर तोपों की खरीद का सौदा अमेरिका से पूरा होना है. भारत को ऐसी 400 तोपों की जरूरत है. इसके साथ ही थलसेना का हेलीकाप्टर बेड़ा मजबूत किया जाना है. जिसके लिए 197 हल्के उपयोग वाले हेलीकाप्टरों की खरीदारी होनी है. इन दोनों सौदों में बड़ी रकम खर्च होगी. इसके अलावा बड़ी संख्या में टैकों, असाल्ट राइफलों, स्नो स्कूटर, सुरंगरोधी वाहनों, बुलेटप्रूफ जैकेटों, राकेट लांचरों व नाइटविजन चश्मों की जरूरत है जिनकी खरीदारी का खर्च 20000 करोड़ रुपये से ज्यादा होगा. थलसेना को दो लाख कारबाइन व 1500 मशीनगनों की जरूरत है.

यह आयुध प्रणालियां सीमित बजट से कैसे पूरी होंगी! नौसेना की ताकत बढ़ाने के लिए 12 टोही विमान खरीदने की योजना है. इसके अलावा 49 युद्धपोत तैयार किए जाने के आदेश विभिन्न शिपयार्डों के पास हैं. नौसेना की प्रस्तावित खरीदारी में लैंडिंग पंटून गोदी, कामोव-31 हेलीकाप्टर, नए बहुउद्देश्यीय हेलीकाप्टर व पनडुब्बी निरोधक बम शामिल हैं. भविष्य में पुराने चेतक हेलीकाप्टरों की जगह नए हल्के हेलीकाप्टरों की खरीद होनी है जो इस बजट से तो संभव नहीं लगता. मिसाइल क्षेत्र में भारत को बढ़त हासिल करनी है लेकिन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन को अधिक धन नहीं दिया गया. आने वाले दिनों में भारत को अपनी रक्षा तैयारी बढ़ाने के लिए रक्षात्मक मिसाइलों पर विशेष प्रावधान की जरूरत है. बेशक रक्षा बजट बढ़ाया गया है लेकिन इसे और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत थी, तभी सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण संभव है.

लक्ष्मी शंकर यादव
लेखक


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