आप की पार्टी अब किस की पार्टी है

Last Updated 13 Jul 2014 02:39:09 AM IST

अपनी एक भूल को अरविंद केजरीवाल स्वीकार करने लगे हैं. वैसे यह एकदम भूल भी नहीं थी. कांग्रेस के समर्थन पर टिकी आप सरकार को दो-तीन महीने में भंग होना ही था.


आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल (फाइल फोटो)

जिस भविष्य की दुंदुभि दिल्ली ही नहीं, देश-विदेश में बजने लगी थी, जिसे दूसरी आजादी का दर्जा दिया जा रहा था, जिसमें शामिल होने के लिए देश की बड़ी-बड़ी हस्तियां आतुर थीं, जिसने मेधा पाटकर जैसी सतत आंदोलनकारी को चुनाव लड़ने को बाध्य कर दिया, जिसे युवा शक्ति का उत्सव माना जा रहा था, वह आप की पार्टी यानी आप किस वटवृक्ष की छाया में सुस्ता रही है? यद्यपि लोकसभा चुनाव में उसे अच्छा-खासा वोट मिला, पर पंजाब के बाहर सीट उसे एक भी नहीं मिल सकी और राजनीति में सीट का महत्व वोट प्रतिशत से कहीं ज्यादा होता है. लेकिन हर सदमे की एक उम्र होती है. आप अपने सदमे को बेवजह इतनी लंबाई क्यों दे रही है? आप के सभी सदस्यों को रोज सुबह स्वामी विवेकानंद की सूक्ति- उठो, जागो, उत्तिष्ठ होओ- का जाप करना चाहिए.

अपनी एक भूल को अरविंद केजरीवाल स्वीकार करने लगे हैं. वैसे यह एकदम भूल भी नहीं थी. कांग्रेस के समर्थन पर टिकी आप सरकार को दो-तीन महीने में भंग होना ही था. जाहिर है, कांग्रेस का समर्थन रणनीतिक होता है, राजनीतिक नहीं. अरविंद को फख्र था कि उन्होंने समर्थन मांगा नहीं था, वह अपने आप मिला था, क्योंकि चुनाव हो जाए और कोई सरकार न बन पाए, यह लोकतंत्र की एक बड़ी मनहूसियत है. आप की सरकार बड़े धूमधाम से शुरू हुई थी और लोगों को भाने भी लगी थी. परंतु इतनी बड़ी पूंजी अरविंद ने एक छोटे-से जुए में गंवा दी. काश, उन्होंने जनलोकपाल की जगह किसी अन्य बड़े लोक मुद्दे पर दांव लगाया होता, जिसके बाद सरकार गिराने वालों के लिए आम आदमी की आंखों में आंखें मिलाकर चलना मुश्किल हो जाता. दुश्मन को मात देने के कई तरीके होते हैं: सबसे मजेदार तरीका यह होता है कि वह खुद पानी-पानी हो जाए.

पता नहीं आप को अपनी दूसरी गलती का एहसास हो पाया है नहीं. पार्टी को लोकसभा में चार सौ सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए था या नहीं, इस पर पार्टी के भीतर निष्ठुर विवाद है. मेरे खयाल से, यह पचास ग्राम हल्दी के बल पर पंसारी बनने की भोली अदा थी. अगर आप ने सिर्फ  दस-पंद्रह सीटों पर अपने को आजमाया होता और अरविंद केजरीवाल को वाराणसी में चुनाव हारने के लिए छोड़ दिया होता, तो आज संसद में सिर्फ  एक व्यक्ति के लिए कानून बदलने वाले विधेयक का विरोध करने वाले कुछ सांसद और होते.

घटनाओं का यह पाठ पूरी तरह सही नहीं है कि नरेंद्र मोदी की लहर थी, कोई क्या करता. जनता यह पूछना चाहेगी कि मोदी की लहर थी, पर आप की लहर क्यों नहीं बन पाई? पिछले चुनाव में ये ही दोनों नई हस्तियां थीं, पर इस चुनाव को मोदी बनाम आप नहीं बनाया जा सका: यह मोदी बनाम अन्य होकर रह गया. मोदी राष्ट्रीय सत्ता के लिए लड़ रहे थे, पर अरविंद वाराणसी शहर का होकर रह गए थे. यह एक गलती पर दूसरी गलती थी. जब इतनी अधिक सीटों पर आप ने उम्मीदवार खड़े किए थे, तो उन्हें उनकी किस्मत पर छोड़ नहीं देना चाहिए था. 

गलती करना और उसे स्वीकार करना, यह एक सामान्य व्यक्ति को शोभा देता है. लेकिन जो आदमी मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनना चाहता है और इतने बड़े देश का नेतृत्व करना चाहता है, उसे गलती करने का अधिकार नहीं है. एक व्यक्ति अपनी गलती के कारण अपने भविष्य के साथ खेल रहा होता है, पर शासक या शासक बनने की इच्छा रखने वाला नेता अपनी गलती से पूरे राष्ट्र के भविष्य के साथ खेलता है. शासक की एक गलती भी मतदाताओं को चौकन्ना कर देती है, उनके मन में गंभीर शक पैदा हो जाता है. जो नेता दूसरी बार भी गलती करता है, लोकतांत्रिक कायदे से उसे राजनीति छोड़ ही देनी चाहिए.

लेकिन इस नियम का भी अपवाद है. जिसमें दृढ़ संकल्प और सेवा करने की आकांक्षा हो, उसके लिए गलतियों के बाद भी जीवन होता है. इस समय आप के नेता या कार्यकर्ता क्या कर रहे हैं? अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं से तो कुछ पता नहीं चल रहा है. अगर वे सो रहे हैं तो उन्हें सोने का अधिकार है, लेकिन तब उन्हें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि विधानसभा चुनावों की घोषणा होगी, तो झुंड के झुंड मतदाता उनके पक्ष में अपनी उंगली पर काला चिह्न लगवाने आएंगे. जादूगर एक ही जादू बार-बार दिखा सकता है, पर राजनीति में ऐसा नहीं होता. दिल्ली विधानसभा के चुनाव का इंतजार सभी दल कर रहे हैं. सबसे ज्यादा तो भाजपा कर रही है कि कहीं चुनाव के पहले मोदी का जादू छिन्न-भिन्न न होने लग जाए. ऐसी स्थिति में आप का विशेष कर्तव्य है. उसे फिर से उसी सक्रियता का परिचय देना होगा जो उसने पिछले विधानसभा चुनाव के पहले दिखाई थी. उस समय जो ‘अन्ना हजारे इफेक्ट’ काम कर रहा था, वह अब अनुपस्थित है. इसलिए आप को अपना एजेंडा खुद बनाना होगा.

दिल्ली की जन समस्याएं कम नहीं हैं. कीमतों का बढ़ना अपने आप में एक रहस्य है. थोक मंडियों में जो टमाटर दस रु पए किलो बिक रहा है, वह मुहल्ले में आकर चालीस रु पए किलो बिक रहा है. आप के कार्यकर्ता इसमें हस्तक्षेप कर सकते हैं. बहुत-से इलाकों में बिजली और पानी की गंभीर समस्या है. आप के संघर्ष की एक जमीन यह भी है. हिरासत में पुलिस का अमानवीय व्यवहार कम नहीं हुआ है. मेट्रो ट्रेनों से लोगों को बहुत राहत है, पर मेट्रो वाले इलाकों में बसों की संख्या बहुत कम कर दी गई है. इस तरह के दर्जनों सवाल सिर उठाए आप के नेताओं और कार्यकर्ताओं की सक्रियता का इंतजार कर रहे हैं. उनके लिए यह एक निमंत्रण है: बरसने के पहले बादलों को गरजना पड़ता है, यह आप की पार्टी क्यों भूल जा रही है?

राजकिशोर
लेखक


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