रेल को पटरी पर लाने की गंभीर कोशिश

Last Updated 10 Jul 2014 01:05:02 AM IST

रेल बजट को संतुलित कहना ठीक होगा. इस बार के बजट में माल भाड़े और यात्री किराये को तर्कसंगत बनाने को लेकर ठोस पहल की गई है.


रेल को पटरी पर लाने की गंभीर कोशिश

किराए में पहले ही बढ़ोतरी की गई थी इसलिए बजट में ऐसी किसी घोषणा का सवाल ही नहीं था. यात्री सुविधाओं को बढ़ावा देना और इस दिशा में सुधार की कवायद में जुटना इस बार के बजट का सबसे अहम बिंदु है. यात्रियों को इसकी उम्मीद भी थी. किराए में बढ़ोतरी के बाद यह सवाल उठना वाजिब था कि सरकार यात्रियों की सुरक्षा को लेकर क्या कर रही है.

दरअसल, किसी को चार पैसे ज्यादा खर्च करने में उतनी आपत्ति नहीं होती जितनी सुविधाओं का टोटा होने का कारण. आज रेल के कुल योजनागत खर्च का केवल 1.5 प्रतिशत ही यात्री सुविधाओं पर खर्च हो रहा है. इस बार के रेल बजट में इसे बढ़ाने पर जोर दिया गया है. सरकार को यह काम हर हाल में करना होगा अन्यथा लोगों में यह संदेश जाएगा कि सरकार आम लोगों की शुभचिंतक नहीं है, उसे बस किराया बढ़ोतरी से मतलब है.

आम लोगों के लिए पांच नई जनसाधारण ट्रेनों का चलना भी सकारात्मक है. प्रति व्यक्ति आय में लगातार बढ़ोतरी के बाद भी हम गरीबों के देश में रहते हैं. ज्यादातर यात्री आज भी दूसरी श्रेणी में यात्रा करते हैं. ऐसे में जनसाधारण ट्रेन से समाज के एक बड़े तबके को लाभ होने वाला है. रेलों में सुरक्षा के लिए बजट में सूचना तकनीक के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है. रेल मंत्री ने सूचना तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने और रेल नेटवर्क को देश के सारे हिस्सों से जोड़ने की बात कही है. देश के कई इलाके आज भी ऐसे हैं जहां रेल नहीं पहुंची है. इन इलाकों में रेल के पहुंचने से अर्थव्यवस्था को जरूर तेज गति मिलेगी.

सरकार ने आम लोगों को ध्यान में रखकर एक और बड़ा कदम यह उठाया है कि अब धार्मिक स्थलों को रेल से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा. इन स्थलों में सारे धर्मो के धार्मिक स्थल हैं. गौर करने वाली बात है कि देश में धर्म आज भी हर एक के जीवन में समाहित है और धार्मिक जगहों की यात्रा करना सभी का मकसद रहता है. यह यात्रा अगर आसान और सबके लिए सुलभ होगी तो इसके लिए तालियां बजनी ही चाहिए. वैष्णो देवी की यात्रा के लिए पहले ही कटरा तक रेल यात्रा की शुरुआत कर इस दिशा में प्रयास आरंभ हो चुका है. जब लोगों के पास पहले ही ऐसा उदाहरण हो तो घोषणा को यकीनन सकारात्मक रूप में लिया जाएगा.

बजट में माल ढुलाई के लिए रेलवे को देश के बंदरगाहों से जोड़ने की घोषणा भी की गई है. इससे निर्यात और आयात के सामान को द्रुत गति से बंदरगाहों तक ले जाने और ले आने में सहूलियत होगी. स्टेशनों पर पेयजल की सुविधा देना, टिकट खरीदने को आसान बनाना भी सकारात्मक कदम हैं. महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पहली बार कुछ खास किया गया है. चार हजार महिला सुरक्षाकर्मियों की नियुक्ति से सुरक्षा चक्र मजबूत होगा, इसमें कोई संदेह नहीं.

रेल बजट इंडस्ट्री के लिए भी अनुकूल है. हालांकि कई लोग इस बात के लिए इसकी आलोचना कर रहे हैं कि बाजार ने इसे सकारात्मक ढंग से नहीं लिया. दरअसल, इस दिन शेयर बाजार में सेंसेक्स का 500 से अधिक अंक गिरना इस बात का संकेत नहीं था कि बजट ठीक नहीं. वास्तव में सरकार द्वारा पहले से उठाए गए कदमों के कारण बहुत ज्यादा आशा का माहौल बन गया था. लोगों ने चमत्कारी बजट की उम्मीद कर ली जो संभव नहीं. दूसरे, सेंसेक्स इसलिए भी गिरा कि अब लोगों को यह भान हो गया कि आम बजट को भी चमत्कारी नहीं किया जा सकता. सारे कदम ऐसे नहीं हो सकते जो सबको खुश करें.

जहां तक बात फंड की है तो इसके लिए भी सरकार ने सकारात्मक कदम उठाए हैं. दरअसल जब तक सही फंडिंग नहीं हो, घोषणा का कोई अर्थ नहीं रह जाता. अभी रेलवे 30 हजार करोड़ के राजस्व घाटे पर चल रहा है. इससे उबरे बगैर बात नहीं बनने वाली. सरकार ने इसीलिए पीपीपी मॉडल पर भरोसा जताया है. परेशान करने वाली बात यह है कि कांग्रेस इसकी आलोचना कर रही है जबकि यूपीए सरकार ने भी कई क्षेत्रों में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पर अमल किया है. रेलवे की हालत सुधारने में यह महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकता है. बजट की एक और घोषणा जो क्रांतिकारी है, वह यह कि अब रेलवे की सारी खरीद ई-टेंडर के जरिए होगी. इससे फायदा यह होगा कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी. खरीद-बिक्री में पारदर्शिता होगी.

बजट पर बारीकी से नजर डालें तो लगेगा कि सरकार ने काफी अरसे बाद रेल सुरक्षा पर ध्यान दिया है. रेलवे को दुर्घटना मुक्त करना आसान नहीं है लेकिन सरकार लगातार इस पर ध्यान बनाए रखे तो यह संभव है. इसी के तहत सरकार ने प्राथमिकता के आधार पर एंटी कोलिजन डिवाइस लगाने की बात कही है. इसके अलावा 17 हजार आरपीएफ जवानों की भर्ती होनी है. हालांकि हमें इस बात पर भी गौर करना होगा कि जवानों की भारी तादाद के बाद भी क्या कमी है कि हम सुरक्षा नहीं दे पाते.

इस समय सुरक्षाकर्मियों के मामले में भारतीय रेल दुनिया में पहले नंबर पर है. आरपीएफ और जीआरपी को मिलाकर करीब 1.15 लाख सुरक्षाकर्मी हैं. इतनी संख्या के बावजूद ये सुरक्षा बल नक्सली और आतंकी गतिविधियों से निबटने के लिए पर्याप्त नहीं. अभी ऐसी घटनाओं के लिए अर्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस के जवानों का सहारा लिया जाता है. दरअसल, सुरक्षाकर्मी बढ़ाना ही एकमात्र उपाय नहीं है. उनकी ट्रेनिंग और उन्हें दक्ष बनाने के उपाय कर उनकी संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है. इससे रेलवे के एक बड़े खच्रे पर लगाम लगेगी.

रेलवे के खर्च को नियंत्रित करना भी बेहद जरूरी है. मौजूद समय में रेलवे के कुल खर्च का 55 प्रतिशत कर्मचारियों के वेतन और पेंशन में जाता है. सातवां वेतन आयोग, जो जल्द ही आने वाला है, अगर लागू हो जाए तो यह खर्च और ज्यादा बढ़ जाएगा. हर साल रेलवे के तीन प्रतिशत कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं. अच्छा हो कि बहाली दर दो प्रतिशत कर दी जाए. पूर्व की एनडीए सरकार ने रेलकर्मियों की संख्या कम करने की अच्छी कोशिश की थी और वह इसमें सफल भी रही थी.

इस सरकार से भी ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए. इस बजट में जिस मोच्रे पर नाकामी हाथ लगी है उसमें सबसे खास है फ्रेड कॉरीडोर योजना की घोषणा का न होना. ईस्टर्न-वेस्टर्न कॉरीडोर की घोषणा 2006 में की गई थी. तब से कोई नया कॉरीडोर बनाने की बात नहीं हुई है. कॉरीडोर बनने से माल ढुलाई में व्यापक वृद्धि हो सकती है.

(लेखक रेलवे बोर्ड के चेयरमैन रहे हैं)

जेपी बत्रा
लेखक


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