चुनावी राजनीति का गिरता स्तर

Last Updated 21 Apr 2014 04:26:30 AM IST

इस सप्ताह उर्दू अखबारों में लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण का मतदान, मालेगांव विस्फोट केस में न्याय की प्रतीक्षा, देश में राजनीति का गिरता स्तर, नरेंद्र मोदी और गुजरात का सच सबसे ज्यादा छाए रहे.


चुनावी राजनीति का गिरता स्तर (फाइल फोटो)

इनके अलावा, अफगानिस्तान में चुनाव, सीरिया में खून-खराबे का जिम्मेदार अमेरिका व उसके सहयोगी देश और इस्रइली व फिलीस्तीनी शासकों में शांति वार्ता जैसे मुद्दे ही अधिक छाए रहे और इन्हीं पर उर्दू दैनिकों ने संपादकीय भी प्रकाशित किए हैं.

उर्दू दैनिक \'राष्ट्रीय सहारा\' ने \'राजनीति का गिरता स्तर\' शीषर्क के तहत अपने संपादकीय में लिखा है कि जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की गतिविधियां बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे सियासी पार्टियों ने एक-दूसरे पर हमले तेज कर दिए हैं. राजनीति में गड़े मुर्दे उखाड़ना और विरोधियों को आलोचना का निशाना बनाना कोई नई बात नहीं है. पूरी दुनिया में जहां-जहां लोकतंत्र है वहां हर सियासी पार्टी या उम्मीदवार विरोधियों में कमियां तलाश करते हैं और अपने लिए वोट मांगते हैं. लेकिन भारत के 16वें लोकसभा चुनाव इस दृष्टि से पिछले सभी चुनावों से बिल्कुल अलग हैं कि इनमें सियासी पार्टियों ने एक-दूसरे पर जिस तरह के निचले स्तर के हमले किए हैं और एक-दूसरे को आलोचना का निशाना बनाया है, उसमें नैतिक मूल्यों को बहुत पीछे छोड़ दिया गया है. लगभग सभी पार्टियां इस मामले में एक-दूसरे पर बढ़त लेती नजर आती हैं.

उर्दू दैनिक \'मुंसिफ\' ने \'मालेगांव बम धमाका केस और इंसाफ का इंतजार\' शीषर्क के तहत अपने संपादकीय में लिखा है कि मालेगांव बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार आठ मुस्लिम युवक अभी तक अपनी रिहाई की प्रतीक्षा में हैं. हालांकि लगभग एक वर्ष पहले ही इन नौजवानों को बरी करने का फैसला किया गया था क्योंकि तहकीकात करने वाली एजेंसी एनआईए और एसआईटी की ओर से इन जवानों के खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं किया जा सका और मकोका की विशेष अदालत से एनआईए के वकील ने उपरोक्त आठ नौजवानों को बरी करने की अपील की थी. लेकिन इसी दौरान मालेगांव बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार दो अन्य आरोपियों की ओर से अदालत में मुस्लिम नौजवानों की रिहाई के विरुद्ध प्रार्थनापत्र दाखिल किया गया और यह मामला खटाई में पड़ गया था.

आठों मुस्लिम युवक पिछले एक वर्ष से जेल की मुसीबतें सहन कर रहे हैं जो कि निश्चय ही इंसाफ की मांग के विरुद्ध है क्योंकि जांच करने वाले एजेंसी की ओर से इन नौजवानों पर लगाए गए आरोपों को साबित नहीं किया गया और स्वयं एनआईए ने स्वीकार किया कि वे निर्दोष हैं. इस सिलसिले में एक बार फिर एनआईए ने मकोका की विशेष अदालत में एक प्रार्थनापत्र दाखिल करते हुए इन नौजवानों की रिहाई की अपील की है. एनआईए की महिला वकील ने इस बात को दोहराया है कि इन नौजवानों के बारे में एजेंसी अपने पूर्व बयान पर कायम है और पुन: तहकीकात के बाद भी उनके दोषी होने का कोई सबूत नहीं मिला है.

उर्दू दैनिक \'इंक लाब\' ने पांचवें चरण के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं के उत्साह की प्रशंसा करते हुए अपने संपादकीय में लिखा है कि अब तक जहां-जहां मतदान हुआ है वहां से जो खबरें मिली हैं लगभग सभी उत्साहजनक हैं. जहां मतदान अभी नहीं हुआ, उन क्षेत्रों से भी जो खबरें मिल रही है वह भी बहुत उम्मीद बंधाती हैं. इसका कारण सांप्रदायिकता का वह बढ़ता हुआ खतरा है जिसने धर्मनिरपेक्ष जनता की तरह मुस्लिम मतदाताओं को भी चेताया है कि यदि इस खतरे को रोकना है तो इसके लिए जागरूक और सक्रिय होना आवश्यक है.

बेहतर उम्मीदवार कौन है इसका फैसला करने के साथ-साथ मतदाता यह भी सोच रहे हैं कि क्या वह सांप्रदायिकता की बाढ़ को रोकने में सहायक होगा. हमारे विचार में यह सोच और अमल अच्छा शगुन है और इसके कारण सांप्रदायिक लोगों की महत्वाकाक्षांओं को नाकाम बनाने में बड़ी सहायता मिलेगी. दरअसल, धर्मनिरपेक्ष वोटों का विभाजन ही सांप्रदायिक लोगों का रास्ता प्रशस्त करता है. यह न हो तो क्या मजाल कि किसी सांप्रदायिक दल का कोई भी उम्मीदवार लोकसभा चुनाव में कामयाब हो जाए. फिरकापरस्तों के वोट तो एक ही पार्टी को जाते हैं लेकिन धर्मनिरपेक्ष वोटरों की ताकत और हैसियत बिखर जाती है.

असद रजा


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