ट्रांसजेंडर समुदाय की बड़ी जीत

Last Updated 17 Apr 2014 12:34:07 AM IST

देश के शीर्ष न्यायालय ने मानवीय आधार पर एक महत्वपूर्ण और बड़ा निर्णय सुनाते हुए हिजड़ों या ट्रांसजेंडर्स के लिए तीसरे लिंग का प्रावधान कर दिया है.


ट्रांसजेंडर समुदाय की बड़ी जीत

यानी हिजड़े लिंग के तौर पर महिला और पुरुष के बाद तीसरी श्रेणी में गिने जाएंगे. इससे पहले उन्हें कानूनी तौर पर मजबूरी में अपना जेंडर पुरुष या महिला बताना पड़ता था. गौरतलब है कि अब तक शोषित और उपेक्षा का शिकार हिजड़ा वर्ग सदियों से अपनी अलग पहचान का मोहताज रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही ट्रांस जेंडर्स को सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर तबके के रूप में पहचान करने के लिए कहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 14, 16 और 21 का हवाला देते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर देश के सामान्य नागरिक हैं और शिक्षा, रोजगार एवं सामाजिक स्वीकार्यता पर उनका बराबर का अधिकार है. न्यायालय ने केंद्र एवं राज्य सरकारों को निर्देश दिए कि वे पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं रोजगार के अवसर प्रदान कर इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए जरूरी कदम उठाएं. न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की पीठ ने समाज में किन्नरों के साथ होने वाले भेदभाव एवं उनके उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त की और उनके कल्याण के लिए कई निर्देश दिए.

न्यायालय ने कहा कि पहले समाज में हिजड़ों का सम्मान किया जाता था लेकिन आज के दौर में  स्थिति बदल गई है और अब उन्हें भेदभाव एवं उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. पीठ ने कहा कि पुलिस एवं अन्य प्राधिकारी वर्ग द्वारा अक्सर भारतीय दंड संहिता की धारा 377 का उनके खिलाफ दुरुपयोग होता रहता है तथा उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं है. वे समाज का मुख्य हिस्सा हैं और सरकार को उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाने चाहिए.

उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा दायर जनिहत याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश सुनाया है. एनएएलएसए ने अदालत से अपील की थी कि ट्रांसजेंडर को लिंग के तीसरे वर्ग के रूप में मान्यता देकर उन्हें अलग पहचान मिलनी चाहिए. पीठ के अनुसार तीसरे लिंग को ओबीसी माना जाएगा. इन्हें शिक्षा और नौकरी में ओबीसी के तौर पर रिजर्वेशन भी दिया जाएगा. पीठ ने यह भी कहा कि अगर कोई अपना सेक्स चेंज करवाता है, तो उसे उसके नए सेक्स की पहचान मिलेगी और इसमें कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता.
मुख्य रूप से शादी-ब्याह या अन्य मांगलिक अवसरों पर या किसी घर में बच्चा पैदा होने पर उसे बधाई देने के नाम पर नाच-गाकर या अन्य किसी प्रकार के नेग द्वारा जीवन-यापन करने वाला यह मानव समूह हमेशा से ही समाज की नजरों में तिरस्कृत और उपेक्षित रहा है.

यहां तक कि वर्गों की राजनीति करने वाले राजनेताओं के लिए भी यह वर्ग कभी महत्वपूर्ण वोट वैंक नहीं बन पाया. खैर, बाट बैंक यह बनता भी कैसे! इसी साल फरवरी में चुनाव आयोग ने वोटिंग के लिए रजिस्र्टड हिजड़ों की संख्या का खुलासा किया था. आयोग के मुताबिक, देश भर में कुल 28,241 लोगों ने ही इस बारे में जानकारी दी. 81 करोड़ वोटरों वाले इस देश में यह संख्या बेहद कम है. वास्तविकता यह है कि संख्या बल के आधार पर यदि इस वर्ग का अच्छा-खासा वोट बैंक होता तो शायद इन्हें अपनी पहचान का संकट नहीं होता और तमाम राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए इनके बारे में पैरवी कर रहे होते.

हालांकि 2011 की जनगणना में किन्नरों को भी शामिल करने का फैसला किया गया था. इसके तहत किन्नरों को अलग कैटिगरी में गिनने का फैसला लिया गया. ‘अदर्स‘ कैटिगरी में इनकी गिनती करने के फैसले का इस समुदाय के लोगों के अलावा तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी खुले दिल से स्वागत किया. क्योंकि यह पहल कहीं न कहीं उनके अस्तित्व और मानवाधिकारों की पहल थी. हिजड़ों को अलग कैटिगरी में गिनने से जुड़े टेक्निकल एडवाइजरी कमेटी के सुझावों को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी थी. कुछ साल पहले रजिस्टर जनरल ऑफ इंडिया ने एक आरटीआई के जवाब में इस बारे में जानकारी दी थी.

वैिक स्तर पर देखें तो अमेरिका में करीब सात लाख ट्रांसजेंडर्स हैं. बीते मार्च महीने में ही यहां ह्वाइट हाउस में एक ऑनलाइन याचिका दायर की गई, जिसमें ट्रांसजेंडर्स को अलग से नई सामाजिक पहचान देने की वकालत की गई. लेकिन अमेरिका में हिजड़ा समुदाय को लेकर अब तक र्थड जेंडर जैसी कोई व्यवस्था फिलहाल नहीं है. ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ दिन पहले ही हिजड़ों को बतौर र्थड जेंडर वरीयता देने का आदेश जारी हुआ है. दिसम्बर 2007 में नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि देश के लैंगिक अल्पसंख्यकों को आम नागरिकों की तरह ही अधिकार दिए जाएं. 2009 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने हिजड़ों को मतगणना में शामिल करने का आदेश दिया था. इस मायने में भारत हिजड़ों को र्थड जेंडर के तौर पर मान्यता देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है.

यह तो समय ही बताएगा कि किन्नरों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय का उनके सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक भविष्य पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा किन्तु ट्रांसजेंडर्स को सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से मिले इस हक के संबंध में अहम भूमिका निभाने वाली लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी हिजड़ों के भविष्य को लेकर जरूर आशान्वित हैं. उन्होंने ट्विटर पर अपनी खुशी जाहिर की है. महाराष्ट्र के ठाणो में जन्मी लक्ष्मी ने मीठीबाई कॉलेज से ग्रेजुएशन किया है.

वह प्रशिक्षित क्लासिकल डांसर हैं. इसके अलावा उन्होंने भरतनाट्यम में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री भी ली है. लक्ष्मी ने कई स्टेज शो और म्यूजिक एलबमों के लिए कोरियोग्राफी भी की है. अपने इस हुनर के अलावा लक्ष्मी ‘बिग बॉस सीजन-5’ में भी शामिल हो चुकी हैं, साथ ही ‘सच का सामना’, ‘दस का दम’ और ‘राज पिछले जन्म का’ जैसे टीवी कार्यक्रमों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुकी हैं.

लक्ष्मी पहली ऐसी ट्रांसजेंडर हैं जो संयुक्त राष्ट्र में एशिया प्रशांत का प्रतिनिधत्व कर चुकी हैं. वह एलजीबीटी वर्ग के लिए काम कर रहे कई एनजीओ के साथ भी जुड़ी  हैं. 2002 में वह दक्षिण एशिया में हिजड़ों के लिए काम करने वाले पहले एनजीओ (दाई) की अध्यक्ष बनीं. उनकी लड़ाई आज किन्नर समुदाय के लिए बड़ी जीत लेकर आई है.

सिद्धार्थ शंकर गौतम
लेखक


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