जीएम फसल परीक्षण को मंजूरी खतरनाक

Last Updated 16 Apr 2014 12:37:04 AM IST

लगता है कि भारत में जीएम (जीन संवर्धित) फसलों को फैलाने पर तुली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दखल भारत सरकार में बहुत ऊपर तक है.


जीएम फसल परीक्षण को मंजूरी खतरनाक

तभी तो विश्व भर में जीएम फसलों के खतरों के बारे में उपलब्ध होने वाली तमाम महवपूर्ण जानकारियों के बावजूद एक के बाद एक इन फसलों के पक्ष में निर्णय लिए जा रहे हैं.

फरवरी में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अनेक जीएम फसलों के सीमित फील्ड परीक्षण को हरी झंडी दिखाई थी, तो 21 मार्च को जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी ने 10 जीएम किस्मों का ‘वेलीडिटी’ समय समाप्त होने के बाद इसे ‘रीवेलिडेट’ कर दिया है जिससे दूसरे चरण के परीक्षण अधिक बड़े क्षेत्र में हो सकेंगे, हालांकि इसके लिए राज्य सरकारों की अनुमति चाहिए होगी. यहां यह बताना जरूरी है कि जीएम फसलों से जो व्यापक स्तर के स्वास्थ्य, पर्यावरण व खेती-किसानी के लिए खतरे बताए गए हैं उनका संदर्भ केवल इन फसलों के व्यापारिक प्रसार से ही नहीं है अपितु फील्ड परीक्षणों से भी जेनेटिक प्रदूषण फैल सकता है.

इस विचार को इंडिपेंडेंट साइंस पैनल (स्वतंत्र विज्ञान मंच) ने बहुत सारगर्भित ढंग से व्यक्त किया है. इस पैनल में एकत्र हुए विश्व के अनेक देशों के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों ने जीएम फसलों पर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया जिसके निष्कर्ष में उन्होंने कहा है- अब इस बारे में व्यापक सहमति है कि इन फसलों का प्रसार होने पर ट्रांसजेनिक प्रदूषण से बचा नहीं जा सकता है. अत: जीएम फसलों व गैर जीएम फसलों का सहअस्तित्व नहीं हो सकता है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जीएम फसलों की सुरक्षा प्रमाणित नहीं हो सकी है. इसके विपरीत पर्याप्त प्रमाण प्राप्त हो चुके हैं जिनसे इन फसलों को लेकर सुरक्षा संबंधी गंभीर चिंताएं उत्पन्न होती हैं. यदि इनकी उपेक्षा की गई तो स्वास्थ्य व पर्यावरण की क्षति होगी जिसकी भरपाई नहीं हो सकती है.

इन फसलों से जुड़े खतरे का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष कई वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि जो खतरे पर्यावरण में फैलेंगे, उन पर हमारा नियंत्रण नहीं रह जाएगा व बहुत दुष्परिणाम सामने आने पर भी हम इनकी क्षतिपूर्ति नहीं कर पाएंगे. जेनेटिक प्रदूषण का मूल चरित्र ही ऐसा है. वायु प्रदूषण व जल प्रदूषण की गंभीरता पता चलने पर कारणों का पता लगाकर उन्हें नियंत्रित कर सकते हैं, पर जेनेटिक प्रदूषण यदि पर्यावरण में चला गया तो वह हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाता है.

जानी-मानी बायोकेमिस्ट व पोषण विशेषज्ञ प्रोफेसर सूसन बारडोक्ज ने कहा है- अब तक की सब तकनीकें ऐसी थीं जो नियंत्रित हो सकती थीं. पर मानव इतिहास में जीएम पहली तकनीक है जिससे खतरा उत्पन्न होने पर क्षति को रोका नहीं जा सकता है. जब एक जीएम आरगनिज्म या जीएमओ को रिलीज कर दिया जाता है तो वह नियंत्रण से बाहर हो जाता है, हमारे पास उसे लौटा लाने का कोई उपाय नहीं है.  इसके मनुष्य व अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

जीएम फसलों के प्रसार से सामान्य फसलों में जेनेटिक प्रदूषण का बहुत प्रतिकूल असर हो सकता है. दुनिया के बहुत से देश ऐसे खाद्य चाहते हैं जो जीएम फसलों के असर से मुक्त हों. यदि हमारे यहां जीएम फसलों का प्रसार होगा तो इन देशों का बाजार हमसे छिन जाएगा. कृषि व खाद्य क्षेत्र में जेनेटिक इंजीनियरिंग की तकनीक मात्र लगभग छह-सात बहुराष्ट्रीय कंपनियों व उनकी सहयोगी या उप-कंपनियों के हाथ में केंद्रित हैं. इन कंपनियों का मूल आधार पश्चिमी देशों व विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका में है. इनका उद्देश्य जेनेटिक इंजीनियरिंग के माध्यम से विश्व कृषि व खाद्य व्यवस्था पर ऐसा नियंत्रण स्थापित करना है जैसा विश्व इतिहास में आज तक संभव नहीं हुआ है.

भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने जैव तकनीक के ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक प्रो. पुष्प भार्गव को जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी के कार्य पर निगरानी रखने के लिए नियुक्त किया था. अपने एक चर्चित लेख में विश्व ख्यातिप्राप्त इस वैज्ञानिक ने देश को चेतावनी दी है कि चंद शक्तिशाली व्यक्तियों द्वारा अपने व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को जेनेटिक रूप से बदली गई जीएम फसलों के माध्यम से आगे बढ़ाने के प्रयासों से सावधान रहे. उन्होंने आगे कहा है कि इस प्रयास का अंतिम लक्ष्य भारतीय कृषि व खाद्य उत्पादन पर नियंत्रण प्राप्त करना है. उन्होंने कहा कि इस षड्यंत्र से जुड़ी एक मुख्य कंपनी का कानून तोड़ने व अनैतिक कार्यों का चार दशक का रिकॉर्ड है.

प्रो. भार्गव ने मुताबिक भारतीय रेगुलेटर एजेंसियों ने इस कंपनी के रिकॉर्ड पर न तो सवाल उठाए हैं न ही अनेक प्रतिष्ठित, निष्ठावान वैज्ञानिकों के अनुसंधान को ध्यान में रखा है. इन वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठित अनुसंधान पत्रिाकाओं में प्रकाशित रिपोटरे से यह स्पष्ट है कि जीएम फसलों के मामलों में अत्यधिक बरतीन सावधानी चाहिए क्योंकि एक बार वे वातावरण में रिलीज हो गई तो फिर वे कितनी भी क्षति करें, उन्हें पूरी तरह लौटाना संभव नहीं है.

यह ध्यान में रखना बहुत जरूरी है कि जीएम फसलों का थोड़ा बहुत प्रसार व परीक्षण भी बहुत घातक हो सकता है. सवाल यह नहीं है कि उन फसलों को थोड़ा-बहुत उगाने से उत्पादकता बढ़ने के नतीजे मिलेंगे या नहीं. मूल मुद्दा यह है कि इनसे जो सामान्य फसलें हैं वे भी प्रदूषित हो सकती हैं. यदि एक बार जेनेटिक प्रदूषण फैल गया तो दुनिया भर में अच्छी गुणवत्ता व सुरक्षित खाद्यों का जो बाजार है, जिसमें फसलों की बेहतर कीमत मिलती है, वह हमसे छिन जाएगा.

आने वाले समय के लक्षण अभी से दिख रहे हैं कि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग दुनिया भर में रासायनिक व जेनेटिक प्रदूषण से मुक्त खाद्यों के लिए बेहतर कीमत देने को तैयार है. यदि जेनेटिक प्रदूषण को न रोका गया तो किसानों का यह बाजार उनसे छिन जाएगा.

विश्व के 17 विख्यात वैज्ञानिकों ने भारत के प्रधानमंत्री को कुछ समय पहले एक पत्र लिखकर कहा कि भारत के सरकारी रेग्यूलेटर स्वतंत्र जैव-सुरक्षा टैस्ट को जरूरी नहीं मानते हैं.

जो कंपनी अपने जीएम उत्पाद के व्यापारिक प्रसार की स्वीकृति प्राप्त करना चाहती है, उसके द्वारा किए गए अनुसंधान को ही बिना आलोचना के सुरक्षा का प्रमाण मान लिया जाता है. भारत के 24 प्रतिष्ठित नागरिकों ने कुछ समय पहले प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा कि सरकारी रेग्यूलेटर ठीक से काम नहीं कर रहे हैं व नीति-निर्धारकों को गुमराह कर रहे हैं. पत्र के अनुसार इन रेग्यूलेटरों को मानसैंटों जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्रभावित कर रही हैं जिन्हें गंभीर अपराधों का दोषी पाया जा चुका है.

ऐसे में सरकारी स्तर पर गंभीर खतरों की उपेक्षा क्यों हो रही है? इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि विश्व  की सबसे बड़ी जीएम कंपनी द्वारा बड़े पैमाने पर अपना कार्य करवाने के लिए रित देने की बात सामने आ चुकी है व इसके लिए वह दंडित भी हो चुकी है. इसके बावजूद जब तमाम प्रमाणों व अध्ययनों की अवहेलना करते हुए उसके उत्पादों के खतरों को अधिकारी व मंत्रती नजरअंदाज करते हैं तो क्या सरकार को सतर्क होकर इसकी जांच नहीं करवानी चाहिए?

भारत डोगरा
लेखक


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