इस चुनाव में सोशल मीडिया का दमखम

Last Updated 24 Mar 2014 04:47:47 AM IST

सोशल नेटवर्किग साइट्स की राजनीति के क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता अब किसी से छिपी नहीं है. गौरतलब है कि आजकल राजनेता युवा मतदाताओं को लुभाने में सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं.


चुनावों में सोशल मीडिया का दमखम

सोशल मीडिया साइट्स की इसी ताकत को भांपते हुए चुनाव आयोग ने कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इन निर्देशों के मुताबिक अब राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों द्वारा सोशल मीडिया में विज्ञापनों पर किया जाने वाले खर्च भी उनके चुनाव व्यय में जोड़ा जाएगा. साथ ही चुनाव प्रक्रिया के दौरान सोशल साइट्स पर यदि गैर कानूनी और दुर्भावनापूर्ण अथवा आचार संहिता का उल्लघंन करने वाली सामग्री पेश की जाती है तो राजनीतिक दलों और उनके प्रत्याशियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी. इसी के साथ चुनाव आयोग ने पेड न्यूज की समस्या से निबटने की भी सख्त हिदायत दी है. निर्वाचन आयोग के इस सख्त रवैये से राजनीतिज्ञों के सामने एक बार फिर बड़ी भारी चुनौती खड़ी हो गई है.

पिछले दिनों सभी राजनेताओं के सामने एक और बड़ी चुनौती आइरिश नॉलेज फाउंडेशन और इंटरनेट मोबाइल एसोसियेशन ऑफ इंडिया ने सोशल मीड़िया और लोकसभा चुनाव विषय पर एक अध्ययन करके खड़ी कर दी थी. उस अध्ययन में साफ संकेत दिए गए थे कि सोशल मीड़िया आगामी लोकसभा चुनाव में 543 सीटों में से 160 सीटों पर अपना प्रभावी असर डालेगा. गौरतलब है कि इन संस्थाओं के अध्ययन में सभी लोकसभा सीटों पर फेसबुक यूजर्स की संख्या का आकलन करते हुए पिछले चुनाव में इन सीटों पर जीत के अंतर की स्टडी करते हुए निष्कर्ष निकाले गए थे. उसमें यह भी पाया गया कि पिछले चुनाव में 160 सीटों पर जो अंतर था आज वहां उससे अधिक फेसबुक यूजर्स हैं.

खास बात यह भी है कि फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की यह संख्या इन सीटों के कुल मतदाताओं की दस फीसद या उससे अधिक हैं. इसलिए आज इन सीटों को फेसबुक से अधिक प्रभावित होने वाली सीटें कहा जा रहा है. अपनी स्टडी में इन संस्थाओं ने 67 सीटों को मध्यम श्रेणी में रखा है जहां फेसबुक यूजर्स की संख्या कुल मतदाताओं के पांच फीसद के बराबर है. साथ ही 60 सीटों को न्यूनतम प्रभाव वाली श्रेणी में रखा गया है. बाकी बची 256 सीटों को सोशल मीड़िया के प्रभाव से मुक्त बताया गया है. स्टडी बताती है कि सोशल मीडिया से प्रभावित होने वाली सबसे अधिक सीटें 21 महाराष्ट्र में, 17 सीटें गुजरात में, 14 सीटें उत्तर प्रदेश में, कर्नाटक व तमिलनाडु में 12-12 सीटें हैं. साथ में आंध्र प्रदेश में 11, केरल में 10, मध्य प्रदेश में नौ तथा दिल्ली की सभी सात सीटों के सोशल मीडिया से प्रभावित होने की पूरी संभावना है.  

विश्व में आज सोशल ब्लॉग्स, सोशल नेटवर्क्‍स, इंटरनेट फोरम, माइक्रो ब्लागिंग, विकीस, फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन व वीडियो के रूप में यू-ट्यूब्स, सोणल बुकमार्किंग तथा गूगल इत्यादि वैश्विक समाज के नए अवतार हैं. इसका प्रयोग करने वालों की अपनी एक नेटीजन सोसाइटी है जिसके माध्यम से देश-विदेश के लोगों, समुदायों और संस्थाओं के बीच आसानी से पारस्परिक संवाद स्थापित किया जा सकता है. दरअसल, वर्तमान वैश्विक दौर में सोशल मीडिया  इंसानी अभिव्यक्ति के नए क्षितिज बना रहा है. यह मीडिया के अन्य प्रकारों से इसलिए अलग है क्योंकि यह समरुचि के समुदायों एवं विषयों से दोतरफा सीधा संवाद स्थापित करता है. सोशल मीडिया में संवाद करने वाली संस्थाएं अथवा समुदाय भले ही आमने-सामने न हों, परंतु इसमें वास्तविक जगत का अहसास (वर्चुअल सोसाइटी) कराने की पूर्ण संभावनाएं हैं. यही कारण है कि आज सोशल मीडिया सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक व राजनीतिक जगत का एक बहुत बड़ा शक्ति केंद्र बनता जा रहा है. परिणामत: बच्चे, किशोर, महिलाएं, पेशेवर युवा, चिंतक, विचारक व राजनेता इससे जुड़ने को उतावले हैं. यहां गौरतलब है कि सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किग साइट फेसबुक पर नरेंद्र मोदी राजनीति के अन्य बहुचर्चित नामों को पछाड़ते हुए पहले स्थान पर पहुंच गए. आज संपूर्ण वि में एक अरब से भी अधिक लोग सोशल मीडिया से जुड़े हैं. कहना न होगा कि दुनिया का हर छठा व्यक्ति सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा है. 

जहां तक भारत का सवाल है तो यहां आज इंटरनेट यूजर्स की संख्या 12 करोड़ के करीब है. यहां सोशल मीडिया से जुड़े यूजर्स  की संख्या भी 11 करोड़ को पार कर गई है. देश में फेसबुक का प्रयोग करने वाले 14 से 45 वर्ष तक के युवाओं की संख्या नौ करोड़ से अधिक है. इनमें एक तिहाई यूजर्स मध्यम शहरों तथा 11 फीसद यूजर्स छोटे शहरों से आते हैं. सोशल मीडिया से जुड़े इन यूजर्स का मकसद उस पर केवल निजी बातचीत या मनोरंजन करना ही नहीं है, बल्कि 45 फीसद से भी अधिक यूजर्स इस पर सघन राजनीतिक विमर्श भी खुलकर करते हैं. इसी तरह तथ्य यह भी बताते हैं कि सोशल मीडिया में फेसबुक, आर्कुट तथा लिंक्डइन जैसी सोशल साइट्स का प्रयोग विश्व के अन्य देशों के मुकाबले भारत में सर्वाधिक किया जाता है. यहां ध्यान देने की बात यह है कि सोशल मीडिया ने देश में एक ऐसे ऑनलाइन नेटीजन समाज का ढांचा विकसित कर दिया है जो है तो वचरुअल, परंतु उसका प्रभाव आमने-सामने वाले समाज से भी अधिक प्रभावी है.

वर्तमान में सोशल मीडिया संवाद और विचार-विमर्श का एक ऐसा सशक्त माध्यम बनकर उभर रहा है जो लोगों की सामाजिक सोच को सीधे रूप में प्रभावित करने की ताकत रखता है. यही वजह है कि पिछले दिनों मिस्र, लीबिया, सीरिया तथा बहरीन जैसे देशों में सोशल मीडिया के माध्यम से ही वहां की जनता आंदोलन के लिए उठ खड़ी हुई. अमेरिका जैसे ताकतवार देश में होने वाले ‘आक्यूपाई वॉलस्ट्रीट’ जैसे बड़े आंदोलन को भी सोशल मीडिया ने ही मुकाम तक पहुंचाया. दिल्ली के बहुचर्चित गैंगरेप मामले में युवा आंदोलन को आक्रामक आवाज देने में सोशल मीडिया ने ही अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

आज स्थिति यह है कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद लोकतांत्रिक सरकारें तक अवाम में जनमत विकसित करने के लिए सोशल मीडिया का जमकर प्रयोग कर रही है. मसला चाहे समुदायों पर ऑनलाइन दबाव का हो अथवा किसी विचार को आवाज देने का अथवा किसी उत्पाद की गुणवत्ता को जांचने व परखने का अथवा चाहे वह मुद्दा विभिन्न पेशेवर कंपनियों द्वारा अपने कर्मचारियों के सामाजिक चरित्र को जानने से ही क्यों न जुड़ा हो; इन सभी मुद्दों पर सोशल मीडिया की भारी ताकत उभरकर सामने आ रही है. हालांकि  पिछले दिनों असम तथा म्यांमार में धार्मिक टकराव के होने और तत्पश्चात भारत के अनेक शहरों में विरोध प्रदान के लिए भी सोशल मीडिया को ही दोषी करार दिया गया था.

आज पूरे देश की निगाहें युवाओं पर हैं. कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया की वजह से चार-पांच फीसद युवा मतदाता आने वाले चुनाव में 24 राज्यों के लोगों का मन बदल सकते हैं. यही वजह है कि आज हरेक राजनीतिक पार्टी  इन सोशल साइट्स से जुड़ने को लालायित है और सोशल मीडिया के प्रबंधन में जुटी हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि आज जनमत का निर्माण करने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका है. परंतु चुनाव आयोग ने जिस तरह सोशल मीडिया की निगरानी का एक तंत्र बनाया है उसके आधार पर अब राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों को भी इसके प्रयोग में चौकसी बरतनी बहुत जरूरी है.

डॉ. विशेष गुप्ता
लेखक


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