सीओए ने सुप्रीम कोर्ट से BCCI के शीर्ष पदाधिकारियों को हटाने का निर्देश मांगा

Last Updated 17 Aug 2017 06:12:37 AM IST

प्रशासकों की समिति (सीओए) ने उच्चतम न्यायालय से लोढ़ा समिति के सुधारों का पालन नहीं करने के लिए भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के मौजूदा अध्यक्ष सीके खन्ना और सचिव अमिताभ चौधरी सहित मौजूदा के पदाधिकारियों को हटाने के लिए निर्देश मांगा है.


बीसीसीआई के अध्यक्ष सीके खन्ना और सचिव अमिताभ चौधरी (फाइल फोटो)

सीओए ने न्यायालय में दायर पांचवी स्थिति रिपोर्ट में कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी को भी हटाने की मांग की है. विनोद राय और डायना एडुल्जी की समिति में अपनी कड़ी रिपोर्ट में बोर्ड का चुनाव नहीं होने तक न्यायालय से  बोर्ड का शासन, प्रबंध और प्रशासन  को उनके हाथ में सौंपने की मांग की है.
इसके साथ ही मुख्य कार्यकारी अधिकारी राहुल जौहरी के नेतृत्व में काम करने वाले पेशेवर समूह को भी उन्होंने अपने अधिकार में लेने की मांग की है. सीओए की 26 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खन्ना, अमिताभ और अनिरुद्ध को उसी तरह से हटाया जाए जैसे बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के को हटाया गया था जिन्हें लोढ़ा सुधारों को लागू करने में नाकाम रहने पर बाहर कर दिया गया था.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यह सही होगा कि मौजूदा पदाधिकारियों के साथ उसी तरह का व्यवहार किया जाए जैसे कि पहले के अधिकारियों से किया गया था क्योंकि इन अधिकारियों ने जो शपथ पत्र दिया था उसके बाद अतिरिक्त छह माह बीत जाने के बाद भी  न्यायालय के निर्देशों के अनुसार सुधारों को लागू नहीं किया गया. इससे यह साफ है कि मौजूदा पदाधिकारी इस स्थिति में नहीं है कि वे न्यायालय के निर्देशों को लागू करवा पाए.’

सीओए ने इस बात का भी उल्लेख किया है कि न्यायालय के 24 जुलाई के निर्देशों का गलत तरीके से उल्लेख कर 26 जुलाई को हुई विशेष आम बैठक से जौहरी और दूसरे प्रशासनिक अधिकारियों तथा कानूनी टीम को बैठक से बाहर जाने को कह दिया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक डीडीसीए के प्रशासक न्यायाधीश (सेवानिवृत) विक्रमजीत सेन ने भी एसजीएम में कहा था कि बीसीसीआई लोढ़ा समिति की रिपोर्ट के विपरीत काम कर रहा है.
रिपोर्ट में सितम्बर 2016 में न्यायमूर्ति एपी शाह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद लोकपाल नियुक्त करने में बीसीसीआई की असफलता का भी जिक्र किया गया है. सीओए ने कहा कि बीसीसीआई को छह सेवानिवृत जजों के नाम देने के बावजूद पदाधिकारियों ने इस पर फैसला नहीं किया. इसके अलावा हितों के टकराव के नए नियमों को स्वीकार करने में नाकाम रहने का भी रिपोर्ट में जिक्र किया गया है.

भाषा


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