पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें कम होने से उपजे सवाल और उनके जवाब

Last Updated 05 Oct 2017 05:27:30 PM IST

मोदी सरकार ने दिवाली से पहले आम जनता को तोहफा दे दिया है. पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें एक्साईज़ ड्यूटी घटा के थोड़ी कम कर दी गई हैं. सरकार के अचानक लिये गये इस फैसले से लोग खुश तो हैं मगर उनके मन में कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं.


(फाइल फोटो)

पेट्रोल-डीज़ल पर रिकार्ड एक्साईज ड्यूटी लगाने वाली मोदी सरकार को आखिर किस दबाव में अचानक यह फैसला करना पड़ा? सवाल कई हैं. हम सिलसिलेवार ढंग से उनका जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे.

1. आखिर क्या है पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें घटाने का सच? 2014 के बाद आखिर पहली बार सरकार को क्यों घटानी पड़ी एक्साइज़ ड्यूटी?

जवाब: एक्साइज़ ड्यूटी को लेकर सरकार अब तक दलील दे रही थी कि देश में इंफ्रास्ट्रकचर विकास के लिये राजस्व का बढ़ाया जाना ज़रूरी है. चूंकी कच्चे तेल की कीमतें काफी नीचे आ गई थीं इसलिये सरकार ने इसपर एक्साईज़ ड्यूटी बढ़ा दी थी. सरकार को लग रहा था कि इससे राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी और साथ ही लोगों को पेट्रोल-डीज़ल की वही कीमत देनी होगी जो अब तक वो दे रहे थे. इसके बाद सरकार ने एक और बड़ा फैसला कर पेट्रोल-डीज़ल की डेली प्राईसिंग व्यवस्था लागू कर दी. अब जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने लगीं तो देश में पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें भी आसमान छूने लगीं. जब जनता में अनरेस्ट होने लगा तो सरकार दबाव में आ गई. साथ ही इकॉनोमी पर अपने ही कई फैसलों को लेकर सरकार चौतरफा घिरती जा रही थी. विपक्ष भी अपने पंजे तेज़ कर रहा था. वहीं पिछले कुछ विधानसभा चुनावों और छात्र चुनावों में बीजेपी का ग्राफ तेज़ी से गिरा है. ऐसे में एक्साइज़ ड्यूटी कम करके सरकार लोगों को खुश करना चाहती थी ताकि जल्द ही होनेवाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी इसका फायदा उठा सके.

2. क्या इकॉनोमिक स्लो डाउन की चर्चा से सचमुच डर गई है सरकार? क्या नोटबंदी और जीएसटी से नेगेटिव माहौल बना है?

जवाब: जीडीपी की दर में लगातार कमी आ रही है. एशियाई विकास बैंक ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कह दिया कि जीडीपी कम होने की असली वजह नोटबंदी और जीएसटी का लागू होना है. जीडीपी कम होने से देश में बेरोज़गारी दर बढ़ी है. नोटबंदी करने के पीछे का कारण कालाधन को उजागर करना बताया गया था, जिस पर सरकार नाकाम रही है. लोगों ने खर्चे सीमित कर दिये जिससे उत्पादन घटा, बेरोज़गारी बढ़ी और इकॉनोमी सुस्त हुई. सुस्त होती अर्थव्यवस्था को लेकर संघ भी नाखुश चल रहा है. ऐसी चर्चाओं के बीच अचानक एक्साइज़ ड्यूटी घटाना इसी ओर इशारा करता है कि सरकार को अपने खिलाफ माहौल बनता नजर आ रहा है और आगामी चुनावों की चिंता सताने लगी है.

3.क्या पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के बयान ने झकझोरा है मोदी सरकार को?

जवाब: यशवंत सिन्हा का बयान केवल उनका बयान नहीं है. बिना संघ की अनुमति वो सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ बयान नहीं देंगे. आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी नोटबंदी के हक में नहीं थे. फिर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के जाने से भी सरकार के कई फैसलों पर सवालिया निशान लगे हैं. ऐसे में यशवंत सिन्हा का इकॉनोमी के मुद्दे पर सरकार की कड़ी आलोचना करने से मोदी सरकार को अपने बचाव में मजबूत दलीलें दे पाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.

4. क्या हिमाचल और गुजरात चुनाव से पहले सरकार जनता को लुभाना चाहती है? क्या यह पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में गिरावट की शुरुआत है? क्या 40 रुपए प्रति लीटर की दर से बिकेगा पेट्रोल?

जवाब: नोटबंदी और जीएसटी के चलते सुस्त हुई अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी को विपक्ष मुद्दा बना रही है. हिमाचल और गुजरात के चुनावों में ये मुद्दे बीजेपी को भारी पड़ सकते हैं ये बात पार्टी की समझ में आने लगी थीं. नाखुश जनता को राहत देने का फिलहाल सरकार को यही विकल्प समझ आया. एक्साइज़ ड्यूटी कम करने का फायदा सरकार को आगामी विधानसभा चुनावों में मिल सकता है. ऐसी भी उम्मीद की जा रही है कि आने वाले कुछ महीनों में सरकार पेट्रोल-डीज़ल पर एक्साईज़ ड्यूटी और कम कर सकती है. लेकिन कच्चे तेल की कीमतें बढ़ गईं तो जनता को इसका फायदा मिलना मुश्किल होगा.

5. क्या सरकार पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाएगी?

जवाब: शायद नहीं. केन्द्र चाहे भी तो राज्य सरकारें इस पक्ष में नहीं होंगी. पेट्रोल-डीज़ल पर अभी वैट लगता है जिसका नियंत्रण यानी घटाना-बढ़ाना राज्य सरकारों के हाथ में है. राज्य सरकारें अपना यह हक़ आसानी से नहीं खोना चाहेंगी. अलबत्ता केन्द्र को डेली प्राईसिंग व्यवस्था पर दुबारा सोचना पड़ सकता है अगर कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती रहीं तो.

6. क्या सरकार 13 हजार करोड़ का बोझ उठाने को तैयार है?

जवाब: बिल्कुल नहीं. सरकार को यह राजस्व नुकसान काफी भारी पड़ेगा. जिस तरीके से मोदी सरकार ने नई परियोजनाओं की शुरुआत की है और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाया है उस नज़रिये से देखें तो फिसकल डेफिसिट और बढ़ जायेगा. फिसकल डेफिसिट यानि सरकारा की कमाई और खर्च का अंतर. पिछले साल यह 76 प्रतिशत था जो कि इस साल 20 फीसदी बढ़ कर 96 प्रतिशत से अधिक का हो गया है.

7. इन सबसे निपटने के लिये सरकार का नया फार्मूला क्या होगा?

जवाब: नरेंद्र मोदी सरकार अगले कुछ महीने में मुनाफा देने वाले कई संयंत्रों के शेयर बेचने की तैयारी में है. ये कवायद नई नहीं है. हाल ही में जीएसटी का दबाव, गिरती जीडीपी और इनसे सरकार की कमाई पर लगे ग्रहण को देखते हुए मोदी सरकार ने 2016 की अपनी विनिवेश नीति की पुरानी फाइल एक बार फिर खोल ली है. जिन कंपनियों से मोदी सरकार पल्ला झाड़कर अपनी कमाई बढ़ाने की कवायद करने जा रही है उनमें बीईएमएल, पवन हंस, ब्रिज एंड रूफ कंपनी इंडिया और हिंदुस्तान प्रीफैब्स प्रमुख हैं. इन कंपनियों समेत सरकार की विनिवेश लिस्ट में 20 कंपनियां शामिल हैं जिन्हें अक्टूबर 2016 में ही मोदी कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है.
 

समयलाइव डेस्क


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