पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने को क्यों मजबूर हुई सरकार

Last Updated 05 Oct 2017 09:35:56 AM IST

पेट्रोल और डीजल की कीमतों में दो रु पए की कमी कर सरकार ने जनता को दिवाली से पहले ही तोहफा दे दिया है. दाम कम होने से लोग खुश भी हैं लेकिन सरकार के अचानक लिए गए इस फैसले से कई सवाल भी उठ खड़े हुए हैं.


फाइल फोटो

आखिर क्यों मोदी सरकार को आपाधापी में पेट्रोल की कीमतें कम करने का फैसला करना पड़ा? जो वित्त मंत्री कल तक राज्यों को पेट्रोल पर वैट कम करने की सलाह दे रहे थे, अचानक क्या हुआ कि वह उत्पाद शुल्क घटाकर 13,000 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान उठाने को तैयार हो गए ? क्या यह जनता के लिए सरकार का ताजा उमड़ा प्रेम है या फिर कुछ और?

पिछले कुछ समय से जनता यह जरूर जानना चाह रही थी कि कच्चे तेल की कीमतें जब 125 डालर के आसपास थीं तब भी पेट्रोल की कीमत 70-72 रुपए लीटर थी. आज जब कच्चा तेल 50 डालर के पास बना हुआ है तब भी देश में पेट्रोल की कीमतें इतनी ही क्यों बनी हुई हैं ? दरअसल सचाई यह थी कि सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क बेतरतीब तरीके से बढ़ाकर 21.50 और 17 फीसद कर रखा है जो मनमोहन सरकार के समय मात्र 9.50 और 3.5 फीसद थी. सरकार की दलील है कि देश में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए राजस्व का बढ़ाया जाना जरूरी है. लेकिन अब सरकार ने पेट्रोल-डीजल दोनों पर उत्पाद शुल्क दो-दो फीसद घटा दिया है.

दरअसल, एक साथ ऐसी कई घटनाएं हुई जिसकी वजह से मोदी सरकार को यह कदम उठाना पड़ा. जीडीपी की दर में लगातार कमी आ रही थी. पिछले हफ्ते ही एशियाई विकास बैंक ने भी भारत के लिए वृद्धि दर का अपना अनुमान 7.6 फीसद से घटाकर सात फीसद कर दिया है. जीडीपी कम होने का सीधा असर रोजगार पर पड़ता है. यानी देश में बेरोजगारी की दर बढ़ती है. आम जनता इससे जूझ रही है. एशियाई विकास बैंक ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कह दिया कि जीडीपी कम होने की असली वजह नोटबंदी और जीएसटी का लागू होना है.

नोटबंदी को लेकर सरकार पहले ही अपने बयान इतनी बार बदल चुकी है कि अब उसे इस मुद्दे पर अपना बचाव करना भी भारी पड़ रहा था. 99 फीसद से अधिक पुराने नोटों के बैंकों में वापस आ जाने से कालाधन वाली सरकार की दलील पर पहले ही पानी पड़ चुका है. समय-समय पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर राजन भी यह बता चुके हैं कि वह नोटबंदी के हक में नहीं थे, इसीलिए वापस चले गए. फिर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया का जाना भी सरकार के कई फैसलों पर लग रहे प्रश्नचिन्ह को बोल्ड और अंडरलाइन कर रहा था.

इधर संघ भी अरुण जेटली के काम करने के तरीके से खुश नहीं था. पिछले शनिवार को ही संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बातों-बातों में यह इशारा कर दिया था कि सुस्त होती अर्थव्यवस्था सरकार के लिए अच्छा संकेत नहीं है. इसके दो दिन बाद ही पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा का इकोनामी के मुद्दे पर सरकार की कड़ी आलोचना करना बिना संघ की अनुमति के तो संभव नहीं था.  फिर कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव भी मोदी सरकार के गिरते ग्राफ पर भारी पड़ सकते थे. कुल मिलाकर मोदी सरकार इकोनामी पर अपने ही किए फैसलों के जाल में चौतरफा घिरती जा रही थी.

चुनावों में गिरा ग्राफ : पिछले कुछ विधानसभा उपचुनावों और छात्र संघ चुनावों में भी बीजेपी का ग्राफ तेजी से गिरा है. ऐसे में विपक्ष अपने हमले तेज करे इससे पहले ही सरकार ने पेट्रेल-डीजल की कीमतें कम करके लोगों को फीलगुड कराने का काम शुरू कर दिया है. अब सवाल यह है कि क्या पेट्रोल के दाम आगे और भी कम होंगे ? उत्पाद शुल्क सिर्फ  दो रुपए घटाने से सालाना 26,000 करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान होगा. यानी बचे हुए आधे वित्त वर्ष में 13,000 करोड़ रुपए का नुकसान. राजस्व घाटा अभी लक्ष्य के 96 फीसद से ऊपर है जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 76 फीसद था. राजस्व घाटा सरकार की कमाई और खर्च के बीच का अंतर.

क्या और जोखिम लेगी सरकार : अगर सरकार उत्पाद शुल्क और कम करके लोगों को खुश करती है तो जल्द ही होने वाले विधानसभा चुनावों में इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है. लेकिन इससे जो राजस्व वसूली कम होगी वह सरकार की विकास परियोजनाओं पर असर डालेगी. फिर साल-डेढ़ साल में लोकसभा चुनाव भी होने हैं तो उस वक्त जनता के लिए सरकार के पास देने को कौनसा तोहफा होगा? यह देखना दिलचस्प होगा. फिलहाल तो हम उम्मीद कर सकते हैं कि आने वाले कुछ महीनों में सरकार तेल की कीमतें और कम कर सकती है.

हर्ष रंजन


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