आईएनजी वैश्य बैंक का 15,000 करोड़ रुपये में अधिग्रहण करेगा कोटक महिंद्रा बैंक
बैंकिंग क्षेत्र में एक बड़े अधिग्रहण को अंजाम देते हुये कोटक महिंद्रा बैंक ने निजी क्षेत्र के आईएनजी वैश्य बैंक का 15,000 करोड़ रुपये में अधिग्रहण करने की घोषणा की.
आईएनजी वैश्य बैंक (फाइल फोटो) |
इस विलय से देश में बैंकिंग क्षेत्र में अगले साल नये बैंकों के आने से पहले निजी क्षेत्र का चौथा सबसे बड़े बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक एक बड़े बैंक के रूप में सामने आयेगा.
यह पूरा सौदा शेयरों के जरिये होगा. इसके तहत आईएनजी वैश्य बैंक के शेयरधारकों को 10-10 रपये के प्रत्येक 1,000 शेयर के बदले कोटक महिंद्रा के 5-5 रपये अंकित मूल्य के 725 इक्विटी शेयर जारी किये जाएंगे.
विलय के बाद नीदरलैंड के बैंक आईएनजी समूह एनवी की कोटक महिंद्रा बैंक में 6.5 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दूसरा सबसे बड़ा हिस्सेदार हो जाएगा. फिलहाल उसकी आईएनजी वैश्य में हिस्सेदारी 42.73 प्रतिशत है.
इस विलय के बाद उदय कोटक की होल्डिंग भी 39.71 प्रतिशत से कम होकर 34 प्रतिशत हो जाएगी. इस सौदे से उन्हें रिजर्व बैंक के उस निर्देश का अनुपालन करने में मदद मिलेगी जिसमें 2016 के अंत तक हिस्सेदारी कम कर 30 प्रतिशत पर लाने को कहा गया है.
इस विलय के बाद बनने वाले बैंक की शाखाओं की संख्या देश भर में 1,214 हो जाएगी.
सौदे की घोषणा करते हुए कोटक महिंद्रा बैंक के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक उदय कोटक ने कहा कि रिजर्व बैंक तथा भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग समेत सभी इकाइयों से सांविधिक मंजूरी मिलने के बाद सौदा एक अप्रैल तक पूरा होने की संभावना है.
शेयरों की अदला-बदली की जो घोषणा की गयी है, उससे इस महीने औसत बंद मूल्य के आधार पर आईएनजी वैश्य बैंक के प्रत्येक शेयर के लिये 790 रपये कीमत है. इस आधार पर सौदा 15,000 करोड़ रपये से अधिक है.
बंबई शेयर बाजार में आईएनजी वैश्य बैंक का शेयर 7.15 प्रतिशत की तेजी के साथ 814.20 रपये के भाव पर बंद हुआ. सौदे की घोषणा कारोबार की अवधि समाप्त होने के बाद की गयी.
कोटक महिंद्रा बैंक का शेयर भी बीएसई में 7.28 प्रतिशत उछलकर 1,157.05 रपये प्रति शेयर पर बंद हुआ.
यह पहला मौका है जब 2008 की नरमी के बाद कोई लाभ कमाने वाली इकाई का विलय किया गया है. हालांकि, इस अवधि में दो और विलय हुए लेकिन उनमें परिस्थितियां अलग थी.
वर्ष 2010 में बैंक ऑफ राजस्थान का आईसीआईसीआई बैंक में विलय हुआ. बैंक ऑफ राजस्थान को घाटा हो रहा था और उसका नेटवर्थ नकारात्मक हो गया था.
इसके अलावा, एसबीआई की एक अनुषंगी स्टेट बैंक आफ इंदौर का उसी साल मूल बैंक में विलय हुआ.
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