DLF ने सेबी की पाबंदी पर अंतरिम राहत मांगी, सैट में 30 अक्टूबर को सुनवाई

Last Updated 22 Oct 2014 07:10:52 PM IST

सेबी के पाबंदी लगाने के फैसले से बुरी तरह प्रभावित रीयल्टी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी डीएलएफ ने बुधवार को प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) से अंतरिम राहत की अपील की है.


DLF ने सेबी की पाबंदी पर मांगी राहत (फाइल फोटो)

डीएलएफ अंतरिम राहत चाहती है ताकि वह म्यूचुअल फंडों और अन्य प्रतिभूतियों में लगा अपना धन निकाल सके.
  
देश की इस सबसे बड़ी रीयल एस्टेट कंपनी ने सेबी के निर्णय के खिलाफ पिछले सप्ताह याचिका दायर की. इस पर बुधवार को सुनवाई के बाद सैट ने आगे की सुनवाई के लिए 30 अक्टूबर की तारीख तय की.
  
सैट ने अंतरिम राहत के लिए डीएलएफ की अपील पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) से जवाब मांगा है.
    
राहत की मांग करते हुए दिल्ली की रीयल्टी कंपनी ने कहा कि उसे कोष निकालने की जरूरत है. इसमें से 2000 करोड़ रुपये म्यूचुअल फंडों से निकाले जाने हैं.

इसके अलावा कंपनी हजारों करोड़ रुपये के कुछ बांड भी भुनाना चाहती है. हालांकि, सेबी ने कंपनी और उसके छह शीर्ष कार्यकारियों के पूंजी बाजार में कारोबार पर तीन साल की रोक लगा दी है.

डीएलएफ को पिछले महीने गैर परिवर्तनीय डिबेंचरों के जरिये 5,000 करोड़ रुपये तक जुटाने के लिए शेयरधारकों की मंजूरी मिली थी.
   
सैट की देवधर की अध्यक्षता वाली पूर्ण पीठ सेबी से बुधवार दोपहर तक ही जवाब चाहती थी जिससे अंतरिम राहत पर विचार किया जा सके लेकिन नियामक के वकील जमशेद कामा ने कहा कि दिवाली की छुट्टियों की वजह से सेबी का कार्यालय बंद है.

देवधर ने कहा कि सेबी को यह आदेश पारित करते समय निवेशकों पर इसके असर का आंकलन करना चाहिए था, जिन्हें यह प्रतिबंध लगाए जाने के बाद 7,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

उन्होंने कहा, ‘‘आप इन सात बरसों तक क्या करते रहे, जबकि कंपनी ने आईपीओ के लिए 2007 में आवेदन किया था. आपने क्यों नहीं अपनी कार्रवाई से निवेशकों पर पड़ने वाले असर का अंदाजा लगाया.
    
इस पर सेबी के वकील ने कहा कि यदि डीएलएफ पर भरोसा किया जाए, उन्होंने आईपीओ के दौरान तीन अनुषंगियों सुदिप्ति, शालिका और फेलिसाइट के बारे में सूचनाओं का खुलासा नहीं किया.

उसकी दलील थी कि इसका खुलासा करना कोई जरूरी नहीं लगा था.
   
सेबी ने डीएलएफ के वरिष्ठ कार्यकारियों की पत्नियों के इन कंपनियों में निवेशक बने रहने पर भी सवाल उठाया.

सेबी के 13 अक्टूबर को लगाए गए प्रतिबंध को \'बाजार से प्रतिबंध के बजाय मौत का वॉरंट करार देते हुए डीएलएफ के वकील जनक द्वारकादास ने कहा कि पूर्व में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है कि नियामक के किसी कदम से निवेशकों के हितों का संरक्षण होने के बजाय बाजार पूंजीकरण 7,500 करोड़ रुपये घट जाए\'. 

सेबी ने इस मामले में इसी माह डीएलएफ और उसके छह प्रमुख अधिकारियों को तीन साल के लिए पूंजी बाजार से प्रतिबंधित करने का निर्णय सुनाया.

डीएलएफ ने 2007 में अपने आईपीओ में 9,187 करोड़ रुपये जुटाए गए थे. उस वक्त यह देश का सबसे बड़ा आईपीओ था.
   
सेबी ने कंपनी या उसके अधिकारों पर कोई अर्थ-दंड नहीं लगाया. यह सेबी के ऐसे बिरले आदेशों में से एक है जिसमें उसने किसी बड़ी कंपनी और इसके शीर्ष प्रवर्तकों-कार्यकारियों को बाजार में प्रतिबंधित किया है.

सेबी के पूर्णकालिक सदस्य राजीव अग्रवल ने अपने 43 पन्ने के आदेश में कहा था कि नियमों का गंभीर उल्लंघन हुआ है और प्रतिभूति बाजार की सुरक्षा और विसनीयता पर इसका असर हुआ है.
   
डीएलएफ पर 30 जून 2014 को 19,000 करोड़ रुपये का रिण था. उसने पिछले मंहगे कर्जों को उतारने के लिए के बांड जारी कर 4,500 करोड़ रुपये जुटाने की योजना बना रखी थी. कंपनी का सालाना कारोबार करीब 10,000 करोड़ रुपये है.



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