आधुनिक होता उर्दू मीडिया

Last Updated 13 Jul 2011 09:40:27 AM IST

बड़े कारोबारी घरानों से होने वाले निवेश के बीच उर्दू मीडिया फिर बेहतर स्थिति लाने की कोशिश कर रहा है.


लेकिन पाठकों की संख्या का अभाव इसके समक्ष आज भी कायम है.

डिजिटल क्रांति के बाद उर्दू भाषा की सामग्री को प्रकाशित करना अब हिंदी और अंग्रेजी की तरह काफी आसान हो चुका है और वित्तीय समस्याएं भी अब कम हो गई हैं.

'रोजनामा राष्ट्रीय सहारा' के समूह सम्पादक अजीज बर्नी के मुताबिक बड़े कारोबारी घराने भी अब उर्दू मीडिया में प्रवेश करना चाहते हैं और इस क्षेत्र में निवेश कर रहे हैं. एक दशक पहले आप इसकी कल्पना नहीं कर सकते थे.

बर्नी ने कहा कि अब उर्दू मीडिया में बेहतर सामग्री के अभाव जैसी समस्या भी नहीं है और नौकरियों के भी काफी अवसर हैं.

रोजनामा राष्ट्रीय सहारा के देश भर में 10 अलग-अलग स्थानों से 16 संस्करण प्रकाशित होते हैं. अखबार 30 लाख से अधिक पाठक संख्या का दावा करता है. यह समूह एक साप्ताहिक समाचार पत्रिका 'आलमी सहारा' और मासिक साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रिका 'बज्म-ए-सहारा' भी प्रकाशित करता है.

उर्दू मीडिया के बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए प्रतिष्ठित समाचार पत्र दैनिक जागरण ने भी समाचार पत्र 'डेली इन्किलाब' का प्रकाशन शुरू किया है. नई दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, गोरखपुर और वाराणसी से इसके अलग-अलग संस्करण प्रकाशित होते हैं.

युनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) की उर्दू सेवा 1992 में शुरू हुई थी. तब इसके छह ग्राहक थे. आज इसके ग्राहकों की संख्या 84 से अधिक मानी जा रही है.

भारतीय अखबारों के पंजीयक के मुताबिक हिंदी और अंग्रेजी के बाद देश में उर्दू भाषा के अखबार-पत्रिकाओं का प्रकाशन सबसे अधिक हो रहा है.

उर्दू भाषा के पाठकों की घटती संख्या हालांकि एक गम्भीर चिंता का विषय है. बेंगलुरू से प्रकाशित होने वाले अखबार 'डेली सालार' के सम्पादक मुनीर आदिल उर्दू पढ़ना जानने वालों की घटती संख्या को सबसे बड़ी चुनौती मानते हैं.

मुनीर ने कहा कि हिंदी सिनेमा में उर्दू भाषा का सामान्य तौर पर इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन उर्दू पढ़ने वालों की घटती संख्या सबसे बड़ी चिंता का विषय है. समृद्ध तबका हिंदी और अंग्रेजी पढ़ना अधिक पसंद कर रहा है.

पत्रकार संघ जर्नलिज्म फॉर जस्टिस के अध्यक्ष अदील अख्तर ने कहा, "उर्दू मीडिया को आगे के विकास के लिए खोजी पत्रकारिता पर ध्यान देना चाहिए और समाचार एजेंसी पर निर्भर रहना छोड़ना चाहिए."

इसी तरह हैदराबाद में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय में जनसंचार और पत्रकारिता संकाय के एसोसिएट प्रोफेसर एहतेशाम अहमद खान ने कहा कि उर्दू मीडिया को पाठ्य सामग्री पर ध्यान देना होगा. यही सबसे प्रमुख चीज है.

उर्दू मीडिया के पत्रकार हालांकि दूसरी कई समस्याओं का जिक्र करते हैं. 'डेली सियासत' के मुहम्मद मुबाशिरुद्दीन खुर्रम ने कहा, "उर्दू मीडिया में रोजगार सुरक्षित नहीं है. न ही पत्रकारों का कोई संघ सक्रिय है."

'डेली सहाफत' के अलामुल्लाह इसलाही ने कहा कि पत्रकारों को समाचार के साथ-साथ विज्ञापन भी जुटाना होता है.

श्रीनगर के पत्रकार सरीर खालिद के मुताबिक उर्दू पत्रकारों को बेहतर प्रशिक्षण की जरूरत है. इससे एक कदम आगे बीबीसी उर्दू की रेहाना बस्तीवाला ने कहा कि बेहतर उर्दू मीडिया के लिए बेहतर उर्दू स्कूलों के विकास की जरूरत है.

उर्दू इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की स्थिति हालांकि थोड़ी बेहतर है. 'राष्ट्रीय सहारा' के मुताबिक देश में नौ करोड़ लोग उर्दू बोलते हैं. इनमें से चार करोड़ लोग टेलीविजन देखते हैं. देश में दूरदर्शन उर्दू, ईटीवी उर्दू, आलमी सहारा, मुंशिफ टीवी सहित कई उर्दू चैनलों का प्रसारण हो रहा है.

बर्नी ने कहा कि उर्दू चैनल के पास दर्शकों की बड़ी तादाद है. हिंदी जानने वाले लोग भी उर्दू के कार्यक्रम देख सकते हैं.

रेडियो के क्षेत्र में भी बीबीसी उर्दू के अलावा वॉयस ऑफ अमेरिका, रेडियो दायचे वेले और आकाशवाणी की उर्दू सेवा देश के एक बड़े हिस्से में सुनी जाती है.







 



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